यह पोखरा-नेपाल की झील - फेवा ताल है। इस झील में नाव चलाते हुए मैने इसकी तुलना गंगा जी से की तो इस गीत का जन्म हुआ। आप भी देखिए और गीत से जुड़ने का प्रयास कीजिए।
ये गहरी झील की नावें
नदी की धार क्या जानें !
रहती हैं ये पहरों में,
डरती हैं ये लहरों से।
उछलती हैं किनारों में,
थिरकती हैं हवाओं से।
जो आशिक हैं किनारों के
भला मझधार क्या जाने !
वो गिरना तुंग शिखरों से,
अज़ब का दौड़ मैदानी।
फ़ना होना समन्दर में,
गज़ब का प्रेम हैरानी।
ये ठहरे नीर की नावें
नदी का प्यार क्या जानें !
अगर है मौत रूकना तो,
बहना ही तो जीवन है।
यदि हों शूल भी पथ में,
चलना ही तो जीवन है।
जो डरते हैं खड़े हो कर
भला संसार क्या जाने !
ये गहरी झील की नावें
चकाचक है! ऊपर वाली भी, नीचे वाली भी और ऊपर वाली और नीचे वाली के बीच वाली भी (कविता) ।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 19-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1068 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
चित्र के साथ साथ कविता भी बहुत सुंदर और प्रेरणा देने वाली है ....
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteचित्रात्मक प्रस्तुति
http://pachhuapawan.blogspot.in/2012/11/blog-post_16.html
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजो डरते है खड़े हो कर
ReplyDeleteभला संसार क्या जाने .....बेहतरीन !!!
नदी का प्यार ....ये लाईन बहुत अच्छी लगी...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआभार भाई देवेन्द्र जी ।।
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteचित्र भी बहुत सुन्दर है....
:-)
सुरसरि का क्या मुकाबला ?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteझील जल जायेगी नदी की इस तरफदारी से.....
:-)
अनु
कितना सुन्दर गीत ...और चित्र तो हमेशा की तरह लाजबाब .
ReplyDeleteवाह जी सुंदर गीत है
ReplyDeleteइतनी सुन्दर झील का आनंद ले आए . अब काहे कहे बिसरावत हैं . :)
ReplyDeleteउन्हें इस पार लाती हैं
ReplyDeleteहमें खुद से मिलाती हैं
हों कितने पाट ये चौड़े
दूरी ए दिल मिटाती हैं
वाह!
Deleteमिल गई जितनी की आपकी ब्योंत नहीं है .
ReplyDeleteये ठहरे नीर की नावें ,नदी का प्यार क्या जाने ,
शानदार छायानाकन के साथ जानदार रचना .बधाई .
ये गहरी झील की नावें ,
ReplyDeleteनदी की धार क्या जाने
नदी का प्यार क्या जाने !
बहुत खूब !
तस्वीरें बहुत खूबसूरत है . नेपाल यात्रा की याद ताजा हो गयी !
बेहद उम्दा.
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सुंदर...हाइगा के लिए चित्र ले जा रही हूँ|
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
ये गहरी झील की नावें,
नदी की धार क्या जानें...
वाकई...
...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सुन्दर सन्देश देती हुई बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआपके हाइगा इस लिंक पर
ReplyDeletehttp://hindihaiga.blogspot.in/2012/11/blog-post_19.html
गहरी,पर्वतों के बीच की झील का सौंदर्य,मैदान में बहती नदी में नहीं.ये वही नदी यहाँ पे सुस्ताने के बाद मैदान में बहती है.
ReplyDeleteझील के सौंदर्य पे भी एक कविता हो जाय.
हेडर बहुत सुन्दर,और झील का फोटो भी लाजवाब है.
नदियाँ और किनारे पर लगी नावों के बिम्ब से एक बहुत ही सुन्दर दार्शनिक विचार प्रस्तुत किया है. लेकिन बेचारी नावों को उलाहना देने से पहले, उनकी ये व्यथा तो सुनी होती:
ReplyDeleteसफर दिन रात का करके,
नदी के धार पर चलके,
जो सुस्ताने को हम आयीं
किनारे से टिकाकर सिर,
कवि देकर गया ताना
कि हम आशिक किनारों के,
अभी फिर से हमें लहरों
के है आगोश में जाना
यही दिन रात का संघर्ष
कवि देवेन्द्र क्या जाने!!
/
क्षमा देवेन्द्र भाई!!
अच्छा है नावें निर्जीव हैं वरना आपके कमेंट के बाद तो मेरा जीना हराम कर देतीं।..आभार।
Deleteकविता ओर चित्र ... सटीक मिलान है दोनों का ...
ReplyDelete