वे अंधे थे लेकिन कान से आहट ही नहीं सुनते थे, व्यक्ति को भी पहचान लेते थे। उनके करीब से कितना भी दबे पाँव बच निकलने का प्रयास करो वे आहट से जान जाते थे कि यह फलाँ आदमी है। गाँव में सभी उन्हें सूरदास कहते थे। भिखारी नहीं थे बस भूख मिटाने के लिए उससे दो रोटी मांग लेते थे जिनपर उन्हें भरोसा था कि वह लेकर ही आयेगा। व्यक्ति को पहचानते थे। सबसे नहीं मांगते थे। एक दिन गाँव का एक लड़का उनसे बचते हुए पास से गुज़र रहा था कि सूरदास बोल पड़े-'सुनी न..अभय बाबू!' अभय के पाँव में अचानक से बेड़ी लग गई। मन मारकर उनके पास गया। सूरदास मुड़ी हिलाते, तख्ते पर हाथों से तबला बजाते, दोनो आँखें मिचमिचाते हुए धीरे से बोल पड़े-आज दू रोटी खिलाईं न ...।
अभय भाभी जी के पास गया..'सूरदास दो रोटी माँग रहे हैं!' भाभी भुनभुनाने लगीं-'इस महंगाई में घर का पेट भरना मुश्किल है, बड़े आये दानवीर बनने।' अभय ने भाभी जी से कहा.'ठीक है, हमको तो खिलाओगी न भाभी कि मेरे लिए भी रोटी नहीं है?' भाभी को अभय का उत्तर नागवार गुज़रा। आँखें तरेरते हुए चार रोटियाँ थाली में रखकर थच्च से पटक दिया। अभय ने थाली उठाई और दौड़ा-दौड़ा सूरदास के पास जा पहुँचा। दो रोटी अपने खाई, दो रोटी सूरदास को खिलाया। सूरदास बोले-'मेरे कारण भूखे रह गये न अभय बाबू?" अभय बोला-'नहीं बाबा, आज तो मन तृप्त हो गया।'
अभय बाबू अब बड़े हो चुके हैं। कहते हैं-'मेरे पास न अन्न की कमी है, न धन की। कमी है तो सिर्फ सूरदास की।' जब भी खाना खाने बैठते हैं दो रोटी उनके नाम से निकालना नहीं भूलते। फिर वह रोटी गइया खाये या कुत्ता। पत्नी पूछती है-'अपनी थाली से रोटी क्यों निकालते हैं ? क्या मुझ पर भरोसा नहीं है ! मैं खिला दूँगी न कुत्तों को।' अभय बाबू हँसते हुए कहते हैं-'रोटी न निकाली तो मेरा पेट ही नहीं भरता!'
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धन्य हैं अभया बाबू, धन्य हैं सूरदास। धन्य हैं बेचारी भाभी जिन्होंने तंगी में भी घर चला ही लिया
ReplyDeleteकिसी की भूख मिटाने की तृप्ति अद्भुत होती है।
ReplyDeleteमार्मिक . . .
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रसंग..
ReplyDeleteकहीं हो या ना हो कहाँनी में भी हो सोच बची रहे तो भी बहुत बहुत है :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भावपूर्ण प्रसंग ..
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2014/01/blog-post_21.html
ReplyDeleteमन छू गया काफी गहराई तक.
ReplyDeleteऐसा भी होता है :)
ReplyDeleteअंदर तक छू गई ।
कहाँ गए वो लोग!! इस दुनिया की बैलेंस शीट में ऐसे ही हिसाब बराबर होते हैं... अभय बाबू को मेरा प्रणाम!!
ReplyDeleteहाँ भला कर तेरा भला होगा |
ReplyDeleteमार्मिक प्रसंग.
ReplyDeleteमार्मिक प्रसंग.
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गाँव में कोई भिखारी दरवाजे से खाली हाथ नहीं लौटता।
ReplyDeleteजो खाना मांग दे तो क्या कहने। इसे पुण्य का सुअवसर माना जाता है।
मन को छू गई ... ये कहानी है या जो भी है ...
ReplyDeleteअभय बाबू किस्मत वाले हैं जिनको कोई तो मिला जो बनाए रखता है उनके दिल मे तरलता ... संवेदनशीलता ...
क्या बात है -ऐसी कहानी अर्से के बाद पढ़ी -साधुवाद!
ReplyDeleteकहानी पसंद करने के लिए आप सभी का आभार।
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वाह, क्या बात है
ReplyDeleteReally! Nice one
ReplyDeleteGrand story
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