आग लगती है ठन्डी हवा
तुम कहाँ हो? सजन, धूप में
हर तरफ बिछ रही चांदनी
चल रहा हूँ सजन, धूप में
मेरे पलकों ने बादल बुने
लो सजन ओढ़ लो, धूप में
बन के बदरी अगर तू चले
फिर घनी छाँव है, धूप में
दिन ढला, साँझ दीपक जले
अब कहाँ हो? सजन, धूप में
जाने कब से खड़ा द्वार पर
अब भला क्यों सजन, धूप में!
तुम कहाँ हो? सजन, धूप में
हर तरफ बिछ रही चांदनी
चल रहा हूँ सजन, धूप में
मेरे पलकों ने बादल बुने
लो सजन ओढ़ लो, धूप में
बन के बदरी अगर तू चले
फिर घनी छाँव है, धूप में
दिन ढला, साँझ दीपक जले
अब कहाँ हो? सजन, धूप में
जाने कब से खड़ा द्वार पर
अब भला क्यों सजन, धूप में!
बेहद सुन्दर!
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteइतनी बेहतरीन प्रस्तुति में भला कोई कैसे धूप में
ReplyDeleteआभार
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteकोमल भावनाओं से बुनी कविता..
ReplyDeleteबहुत खूब .. पलकों से बुने बादल तो उम्र भर ओढ़ लें सजन ...
ReplyDeleteलाजवाब है हर छंद ...
आभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय
ReplyDeleteबहुत ही शानदार और सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .... हाल दिल ...
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