3.3.18

लोहे का घर-37

39gtc गोरखा रेजीमेंट की मिलेट्री छावनी के किनारे किनारे चल रही है अपनी ट्रेन। काले नाली सी वरुणा नदी के पार भी हैं बबूल के जंगल। ये कांटे भरे जंगल के बाढ़ सुरक्षा की दृष्टि से लगाए गए होंगे।
शिवपुर स्टेशन पर नहीं रुकती ट्रेन। प्लेटफॉर्म के किनारे - किनारे रखे थे सीमेंट के बोरे। अब शहर को पार कर सरसों/अरहर के खेतों के किनारे पटरी पर भाग रही है ट्रेन।
अगला स्टेशन बीरापट्टी है। लगभग हर छोटे स्टेशनों पर रुकते हुए पैसिंजर की तरह चलती है अपनी फोट्टी नाइन। उजाड़ सा स्टेशन है। स्टेशन के किनारे रेलवे कर्मियों के आवास हैं। एकाध को छोड़ बाकी खंडहर में बदल चुके दिखते हैं।
सरसों और अरहर के बीच अब गेहूं भी दिखने लगे हैं। चारों तरफ हरियाली है। आराम से दाना चुग रहे पंछी इंजन के शोर से उड़ते/भागते दिखते हैं। ट्रेन की खिड़की से पटरियों के किनारे बने मकानों में आम आदमी की बिखरी गृहस्ती दिखती है। खड़ी खाट पर सूख रही कथरी, हैंड पाइप के पास रखे जूठे बर्तन, बिटिया के बाल संवारने में लगी मां और दातून करते खेतों की मेड़ पर चल रहे दद्दू, सब दिखते हैं।
बाबतपुर स्टेशन पर रुकी है ट्रेन। यहां हवाई अड्डा है। कुछ लोग भागते हुए चढ़े हैं। कुछ उतर कर सामान गिन रहे हैं। चाय वाले, मटर वाले कई प्रकार के लोकल वेंडर चढ़े हैं बोगी में। ट्रेन यहां से भी चल दी। मसाले वाले मटर की गंध घुल गई है बोगी में। आम के बाग दिख रहे हैं। पीले सरसों के खेतों के ऊपर से उड़कर भागे हैं कुछ पंछी। ये बूढ़े वृक्ष भी दंग हो जाते होंगे धरती के बदलते परिधान देख कर। ये बिचारे एक जैसे और हर मौसम में रंग बदलती धरती।
पिंडरा हाल्ट पर एक मिनट के लिए रुकती है ट्रेन। भड़भूजे की झोपडी में कोई नहीं था। एक बूढ़ा दोनों हाथों में पानी की बाल्टी लिए ठहर ठहर चला जा रहा था। आगे एक सूखी नहर दिखी। एक किनारे बूढ़ा बरगद और दूसरे किनारे सरसों के पीले फूल। नहर में पानी होता तो और भी खूबसूरत सीन होता।
पिंडरा हाल्ट के बाद अगला स्टेशन खालिसपुर। यहां रेलवे का कारखाना है। पटरियों पर बिछने वाले स्लीपर बनते हैं यहां। यहां से शुरू हो जाती है जौनपुर की सीमा।
त्रिलोचन महादेव। इस स्टेशन पर भी नहीं रुकती अपनी ट्रेन। बनारस से जौनपुर मार्ग में शिवपुर और त्रिलोचन महादेव यही दो छोटे स्टेशन हैं जिन पर नहीं रुकती अपनी एक्सप्रेस वरना तो हर छोटे स्टेशनों पर पैसिंजर की तरह रुकते हुए चलती है। कभी रुकी होगी और महादेव ने छना दिया होगा भांग! तभी शिव से घबराती है।
सई नदी के किनारे है अगला स्टेशन जलालपुर। इस नदी पर जो पुल बना है उसे लोग जलालगंज का पुल कहते हैं। ट्रेन जब पुल से गुजरती है तो सामने दो और पुल दिखाई पड़ते हैं सड़क यातायात के लिए। एक पुराना है अंग्रेजों के जमाने का दूसरा नया है। पुराने पुल के खंबे बहुत मोटे हैं।
जलालगंज के बाद दो और स्टेशन है। सरकोनी और जफराबाद। सरकोनी में एक मिनट के लिए रुकती है ट्रेन। यहां रेलवे पटरी के किनारे फैली झाड़ियां आकर्षित करती हैं।
जफराबाद महत्वपूर्ण स्टेशन है। यहां से रेलवे के दो मार्ग शुरू होते हैं। एक जौनपुर सीटी स्टेशन, सुल्तानपुर होते हुए लखनऊ तो दूसरा जौनपुर भण्डारी, फैजाबाद होते हुए लखनऊ। जौनपुर में तीन स्टेशन हैं और तीनों में जफराबाद सबसे महत्वपूर्ण है। यह अलग बात है कि शहर से दूर होने के कारण इसका विकास बाकी दो की तुलना में कम हुआ है। बनारस जाने के लिए जफराबाद में दोनो तरफ से आने वाली ट्रेनें मिल जाती हैं। सड़क मार्ग बढ़िया कर इस स्टेशन पर और भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
मूड ही तो है। आज बनारस जौनपुर मार्ग के स्टशनो की ही चर्चा हो गई। इन स्टेशनों के बारे में कोई मित्र कुछ और जानता हो तो उनके कमेंट का स्वागत है। जो पढ़कर बोर हुए उनसे क्षमा।

1 comment:

  1. अच्छा किया यहाँ सहेज लिया,,,,दर्ज रहेगा इतिहास हमेशा

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