3.12.18

ओ दिसम्बर!-2

ओ दिसम्बर!
जब से तू आया है
यादों की
गठरी लाया है।

देर शाम 
मेरी गली में 
फेरे वाला
आवाज लगाता..
चिनियाँ बादाम, गज़क!

सुबह सबेरे 
मेरी गली में
फेरी वाला
आवाज लगाता..
मलइयो है!

पापा सुना, अनसुना कर दें
अम्मा 
कहाँ चुप रह पातीं!
ओने कोने
ढूँढ-ढाँढ कर
थोड़े से सिक्के ले आतीं

कोई रोको!
फेरी वाला
आँखों से ओझल न होवे
कोई गीनो
सिक्के सारे
कुल जमा, कितने हो जाते?

हम बच्चे
चहक-चहक कर खाते
माँ बस 
झगड़े सुलझाती थीं।

ओ दिसम्बर!
जब से तू आया है
यादों की भारी गठरी
फिर खुलने को
मचल रही है!
मेरे मन में
नए वर्ष की
नई जनवरी
उतर रही है।
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