26.1.19

बसंत

ठंड की चादर ओढ़
दाहिने हाथ की अनामिका में
अदृश्य हो जाने वाले राजकुमार की
जादुई अंगूठी पहन कर
चुपके से धरती पर आता है
बसंत
तुमको भला कैसे दिखता?

तुम
रोज की तरह
परेशान हाल
थके मांदे घर आए
तुम्हारी उनींदी पलकों पर
हसीन ख्वाब बनने की प्रतीक्षा में
चुपके से बैठा था
तुमको भला कैसे दिखता?

परेशान न हो
अभी तो
धरती की सुंदरता देख
खुद ही मगन है!
ठंड की चादर हटेगी
छुपन छुपाई खेलते-खेलते
थक कर
बैठ जाएगा एक दिन,
अपने आप
फिसल कर गिर जाएगी
उँगली से
जादुई अंगूठी

तब
दोनो हाथों से पकड़कर
जोर से चीखना..
चोर!
......

6 comments:

  1. कभी कभी रचना निःशब्द भी कर देती है .... जैसे आज कर गयी ....

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. वाह ! उंगली से अंगूठी कब गिरती है अब तो इसकी ही प्रतीक्षा है..

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  4. इस अकाल काल मे आप मित्रों का ब्लॉग से जुड़े रहना खुश कर देता है। सभी का आभारी हूँ।

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