12.5.19

नदी और कंकड़

वह
घाट की ऊँची मढ़ी पर बैठ
नदी में फेंकता है
कंकड़!

नदी किनारे
नीचे घाट पर बैठे बच्चे
खुश हो, लहरें गिनने लगते हैं...
एक कंकड़
कई लहरें!
एक, दो...सात, आठ, नौ दस...बस्स!!!
वह
ऊँची मढ़ी पर बैठ
नदी में,
दूसरा कंकड़ फेंकता है..।

देखते-देखते,
गिनते-गिनते
बच्चे भी सीख जाते हैं
नदी में कंकड़ फेंकना
पहले से भी ऊँचे मढ़ी से
पहले से भी बड़े और घातक!
कोई कोई तो
पैतरे से
हाथ नचा कर
नदी में ऐसे कंकड़ चलाते हैं
कि एक कंकड़
कई-कई बार
डूबता/उछलता है!
कंकड़ के
मुकम्मल डूबने से पहले
बीच धार तक
बार-बार
बनती ही चली जाती हैं लहरें!!!

न बच्चे थकते हैं
न लहरें रुकती हैं
पीढ़ी दर पीढ़ी
खेल चलता रहता है
बस नदी
थोड़ी मैली,
थोड़ी और मैली
होती चली जाती जाती है।
...............

2 comments:

  1. वाह ! आईने के सामने रख दिया आपने
    रूबरू करवाती रचना .. इतने सरल शब्दो में

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