एक चिड़िया
नींबू की डाली से उतर
मुंडेर के प्याले पर बैठ गई
इधर-उधर मुंडी हिलाई,
पूँछ उठाई
फिर गड़ा दिए चोंच प्याले में और..
उड़ गई।
हाय!
प्याले में पानी नहीं है।
यह तो वह
देख ही रही होगी ऊपर से
फिर उसने इतनी मेहनत क्यों की?
शायद
मुझसे पानी मांगने का
उसके पास
यही आसान तरीका था!
मैने दौड़कर
प्याले में पानी भरा और छुपकर
उसकी प्रतीक्षा करने लगा
चिड़िया फिर आई
प्याले पर बैठी,
इधर-उधर मुंडी हिलाई,
पूँछ उठाई फिर फुदककर
कूद गई प्याली में!
फर्र-फर्र पंख फड़फड़ाती,
छींटे उड़ाती
पानी से
खेलती रही देर तक।
हांय!
प्यासी नहीं थी,
यह तो बड़ी
चालाक निकली
नहाने लगी!!!
सावधान!
प्यासा समझकर पानी पिलाओ
तो आजकल
नहाने लगती हैं
चिड़ियाँ।
.......
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सशक्त और सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनमोहक सृजन।
वाह ! जमाने की हवा उन्हें भी लग गयी है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवह !
ReplyDeleteप्यासा समझकर पानी पिलाओ तो नहाने लगती हैं चिड़ियाँ !
बहुत खूब कविराज ! चिड़िया गज़ब का हुनर रखती हैं -- रेतमें नहाती हैं और आने वाली बारिश का पता रखती हैं | हार्दिक शुभकामनाएं| आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा |