शाम का समय था, श्मशान घाट में एक चिता जल रही थी। चिते के पास लगभग 70 वर्षीय बुजुर्ग के सिवा दूर-दूर तक कोई न था। कृषकाय बुजुर्ग, दोनों हाथों से अपने पिचके गालों को दबाए, फटी आँखों से जलती चिता को, एक टक देख रहे थे। पूछने पर पता चला जिसकी चिता जल रही है, वह और कोई नहीं, उसकी पत्नी थीं। पूरा दृश्य अपनी कहानी खुद कह रहा था, कुछ कहने/बताने की जरूरत न थी। चिता की आँच में चुपचाप दर्द और प्यार की एक सरिता बह रही थी।
बहुत चाहा, एक तस्वीर खींच लूँ, किसी उपन्यास पर भारी पड़ेगी यह तस्वीर। हाय! सोचता ही रह गया, देखता ही रह गया। खयालों में ऐसा खोया कि होश तब आया जब सब कुछ ठंडा पड़ चुका था। चिता ठंडी पड़ चुकी थी, वृद्ध जा चुके थे, बस एक वाक्य शेष था, 'राम नाम सत्य है।'
.......
इसी सत्य से मुह मोढ़ते मोढ़ते जिंदगी निकाल देता है इंसान
ReplyDeleteजी
Deleteयथार्थ पर गहन दृष्टि। प्रशंसनीय लघुकथा।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteसुंदर अभव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद।
Delete