30.5.10

नव गीत





रिश्तों के सब तार बह गए
हम नदिया की धार बह गए.

अरमानों की अनगिन नावें
विश्वासों की दो पतवारें
जग जीतेंगे सोच रहे थे
ऊँची लहरों को ललकारें

सुविधाओं के भंवर जाल में
जाने कब मझधार बह गए.

बहुत कठिन है नैया अपनी
धारा के विपरीत चलाना
अरे..! कहाँ संभव है प्यारे
बिन डूबे मोती पा जाना

मंजिल के लघु पथ कटान में
जीवन के सब सार बह गए.

एक लक्ष्य हो, एक नाव हो
कर्मशील हों, धैर्य अपरिमित
मंजिल उनके चरण चूमती
जो साहस से रहें समर्पित

दो नावों पर चलने वाले
करके हाहाकार बह गए.

(लघु पथ कटान =shortcut roots , चित्र गूगल से साभार.)



40 comments:

  1. दो नावों पर चलने वाले
    करके हाहाकार बह गए.

    बहुत सुन्दर। शब्द और भाव का अच्छा संयोजन।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. दो नावों पर चलने वाले
    करके हाहाकार बह गए.

    bahut badhiya!

    ReplyDelete
  3. बहुत सही!! बढ़िया!

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर कविता!
    जिस में शब्द हैं ,प्रवाह है ,अर्थ है
    अर्थात सारे नियमों को पूरा करती हुई सम्पूर्ण कविता
    बधाई

    ReplyDelete
  5. मंजिल के लघु पथ कटान में
    जीवन के सब सार बह गए.

    सुविधाओं के भंवर जाल में
    जाने कब मझधार बह गए.

    bahut hee sunder abhivykti........

    ReplyDelete
  6. @ अरमानों के कई नाव थे
    --- यहाँ कुछ खटकाता है , नाव स्त्रीलिंग शब्द है !
    @ दो नावों पर चलने वाले
    करके हाहाकार बह गए
    --- दो नावों पर पैर रखने वाले की टंगिया नहीं फटी ?
    आभार !

    ReplyDelete
  7. सुविधाओं के भंवर जाल में
    जाने कब मझधार बह गए.

    सही कहा है । सुन्दर रचना ।

    ReplyDelete
  8. "मंजिल के लघु पथ कटान में
    जीवन के सब सार बह गए."

    देवेन्द्र भाई
    वैसे तो पूरी कविता शानदार की श्रेणी में रखी है पर उसमे से दो पंक्तियां सवा सोलह आने मानकर चिपकाई गई...

    आप इतना गहरा सोचियेगा तो हमें ईर्ष्या हो जायेगी !

    ReplyDelete
  9. प्रेरक रचना... बच्चन जी की ‘राह चुने तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला’ याद आ गई. साथ ही एक शेरः
    जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
    हमने तो कभी मील का पत्थर नहीं देखा.

    ReplyDelete
  10. सच को कहती सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  11. एक सम्पूर्ण कविता जो बहुत सुन्दर है और जिसमें शब्द और भाव का अच्छा संयोजन है।

    ReplyDelete
  12. बहुत कठिन है नैया अपनी
    धारा के विपरीत चलाना
    अरे..! कहाँ संभव है प्यारे
    बिन डूबे मोती पा जाना

    आशा .. उमीद और प्रेरणा का संचार करती आपकी रचना ... लाजवाब है ...

    ReplyDelete
  13. सुविधाओं के भंवर जाल में
    जाने कब मझधार बह गए.
    बहुत खुब जी, सही कहा,
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  14. जो साहस
    एक लक्ष्य हो, एक नाव हो
    कर्मशील हों, धैर्य अपरिमित
    मंजिल उनके चरण चूमती
    से रहें समर्पित


    दो नावों पर चलने वाले
    करके हाहाकार बह गए.

    -सौ फीसदी सही. हालांकि आज के समय में दो नावों पर चलना ही समझदारी कही जाती है.एक सुन्दर कविता के लिए साधुवाद.

    ReplyDelete
  15. दो नावों पर चलने वाले
    करके हाहाकार बह गए.

    लाजवाब रचना...

    ReplyDelete
  16. सुविधाओं के भंवर जाल में ,जाने कब मझधार बह गए ....बहुत सुन्दर लाइन की सृष्टी हुई है आपकी कलम से.सुविधाओं के चक्कर में हम उस किनारे पे रह गए जहां दिल लगता नहीं.मझधार में डूबे होते तो मंजिल पे होते.वाह ....बहुत खूब.

    ReplyDelete
  17. @ अमरेन्द्र जी,

    नाव स्त्रीलिंग शब्द है!...ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया. "अरमानों की कई नाव थी".. लिखना भी खटक रहा है.सुधारने का प्रयास किया हूँ.
    ..सही है या अभी और डूबना बाकी है..?

    ReplyDelete
  18. sudhar se geet aurbhi khoobasurat ban gaya hai.

    ReplyDelete
  19. bahut acchhi kavita....jiwan ki majburi aur raaste batati kavita.

    ReplyDelete
  20. सुन्दर भाव बेहतरीन शब्द संयोजन.जीवन के सत्य का एक पहलू. बेहतरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  21. एक लक्ष्य हो, एक नाव हो
    कर्मशील हों, धैर्य अपरिमित
    मंजिल उनके चरण चूमती
    जो साहस से रहें समर्पित
    ....bahut badhiya, shikshaatmak.

    ReplyDelete
  22. रिश्तों के सब तार बह गए
    हम नदिया की धार बह गए.
    अरमानों की अनगिन नावें
    विश्वासों की दो पतवारें
    जग जीतेंगे सोच रहे थे
    ऊँची लहरों को ललकारें..
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब और शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  23. BEHATAREEN ........
    DHANYAWAAD.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

    ReplyDelete
  24. सुधार तो हुआ ही है साथ ही साथ एक रवानी भी आई है !
    '' सुविधाओं के भंवर जाल में
    जाने कब मझधार बह गए .. ''
    --- ये पंक्तियाँ सुन्दर लग रही हैं , मैं अपने विद्यार्थी जीवन के अभावों के
    दिनों में ज्यादा तल्लीन होकर पढ़ पाता था , अब जबसे सुविधाएं मिलने
    लगी हैं , तल्लीनता घट गयी है ! इसका अफ़सोस होता रहता है !

    ReplyDelete
  25. shandar rachana...chacha ji jiwan prerak bhav se bhari badhiya rachana...badhai

    ReplyDelete
  26. दो नावों पर चलने वाले
    करके हाहाकार बह गए.
    सही कहा ....दो नावों पर पैर रखने वाले अक्सर डूब जाते हैं ......

    सुंदर भाव ......!!

    ऐसा भी कर सकते हैं ......

    अरमानों की नावें कई
    और विश्वासों की दो पतवारे

    ReplyDelete
  27. हम रास्ते में खड़े थे मगर

    जैसे ही मौका मिला हम दरिया पार कर बह गए।
    http://udbhavna.blogspot.com/

    ReplyDelete
  28. बार-बार पढ़ा गया है यह गीत..और मधुरता बढ़ती सी जाती रही..हर बार..आप तो हर कला के पंडित हैं..!!गीत अपनी गीतात्मकता बनाये रखने के साथ विषय के साथ पूरा न्याय करता है...सबसे पसंद तो यह पंक्तियाँ आयीं
    सुविधाओं के भंवर जाल में
    जाने कब मझधार बह गए.

    जिंदगी की मझधारों से जूझते रह कर हौसला बनाये रख पाना ही जिंदगी को उद्देश्य देता है और साहसिक बनाये रखता है...मगर एक बार जब शरीर आराम का स्वाद चख लेता है..फिर तो चांदनी मे भी बदन जलता है और पैरों तले फूल आने पर भी छाले पड़ जाते हैं..!!
    ....और अंतिम पंक्तियाँ भी बहुत धारदार हैं..मगर फिर भी हमारी जिंदगी का तमाम हिस्सा ऐसी ही नाँवों के बीच बैलेंस बनाये रखने मे बीत जाता है..और मंजिल के लघु-पथ कटान हारे हुए साहस की कथा कहते रहते हैं..

    ReplyDelete
  29. जग जीतेंगे सोच रहे थे
    ऊँची लहरों को ललकारें

    सुविधाओं के भंवर जाल में
    जाने कब मझधार बह गए ..
    जग को जीत लेने की सोचने का भी इक वक़्त हुआ करता है जब आवाज़ में इतना दम और होंसले बुलंध हुआ करते है कि दरिया में रह के भी लहरों को ललकार सकते है.पर सुविधाओं की आदत पड़ जाने पे हम इनके भंवर में फस जाते है.जग जीतने के जोश हवा हो जाते है.
    मंजिल के लघु पथ कटान में
    जीवन के सब सार बह गए.
    हमारे सारे सिद्धांत धरे के धरे रह जाते है और हम शोर्ट कट follow कर लेते है भले ही हमे रास्ता पता न हो..भावपूर्ण गीत ..

    ReplyDelete
  30. बहुत बढ़िया रचना, पहली बार इधर आया। सम्पर्क मिला मनोज कुमार जी के पोस्ट किए हुए चर्चा-मंच से।
    उनको भी आभार।
    बहुत बढ़िया रचना लगी, बधाई स्वीकारें!

    ReplyDelete
  31. sundar shabd, sunhda bhaw, sundar kavita....:)
    hamare blog pe aayen......:)
    ab aate rahunga yahan.....

    ReplyDelete
  32. अच्छी सीख दे रही है ये रचना सर...

    ReplyDelete
  33. बहुत कठिन है नैया अपनी
    धारा के विपरीत चलाना
    अरे..! कहाँ संभव है प्यारे
    बिन डूबे मोती पा जाना
    शानदार रचना, जीवन के सार को बताती हुई
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  34. जय हो। भरी गर्मी में नदी में बल भर पानी आपकी कविता में मिला। सब जगह पानी लबालब है यहां सर्वत्र जलप्लावन है। नदिया है, नाव है, साहस है। जय हो।

    ReplyDelete
  35. bahut sundar...pahli baar aapke blog par aaya aur ab main bhi ek bechain atma bn gaya hoo aapke agle post ka intjar rahega

    ReplyDelete
  36. दो नावो पर चलने वाले.......
    मुहावरे का सार्थक प्रयोग ।
    अज्ञेय जी तो कितनी नावो में.........यात्रा करते रहे ।
    प्रशंसनीय रचना ।

    ReplyDelete
  37. बहुत सुन्दर...बढ़िया रचना....सुंदर भाव .

    बहुत कठिन है नैया अपनी
    धारा के विपरीत चलाना
    अरे..! कहाँ संभव है प्यारे
    बिन डूबे मोती पा जाना....

    बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  38. आपका गीत पर बहुत अच्छा अधिकार है ...आनंद आ गया ! हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete