यह पोस्ट पुनः प्रकाशित है। उन लोगों के लिए जिन्होने इसे नहीं पढ़ा, उन लोगों के लिए जो इसे पढ़कर भूल गये और उनके लिए भी जो पढ़कर नहीं भूले :-) काशिका में लिखी इस कविता का शीर्षक है....
वैलेनटाइन
बिसरल बसंत अब तs राजा
आयल वैलेनटाइन ।
राह चलत के हाथ पकड़ के
बोला यू आर माइन ।
फागुन कs का बात करी
झटके में चल जाला
ई त राजा प्रेम कs बूटी
चौचक में हरियाला
आन कs लागे सोन चिरैया
आपन लागे डाइन। [बिसरल बसंत…..]
काहे लइका गयल हाथ से
बापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू-ईलू गावे
पूछा तs सिर झटक के बोली
आयम वेरी फाइन । [बिसरल बसंत…..]
बाप मतारी मम्मी-डैडी
पा लागी अब टा टा
पलट के तोहें गारी दी हैं
जिन लइकन के डांटा
भांग-धतूरा छोड़ के पंडित
पीये लगलन वाइन। [बिसरल बसंत…..]
दिन में छत्तिस संझा तिरसठ
रात में नौ दू ग्यारह
वैलेन टाइन डे हो जाला
जब बज जाला बारह
निन्हकू का इनके पार्टी मा
बड़कू कइलन ज्वाइन। [बिसरल बसंत…..]
बिल्कुल नहीं भूले हैं, फिर से पढ़कर पूरा आनन्द आ गया...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना!
ReplyDelete:):)सटीक
ReplyDeleteबढिया .....
ReplyDeleteमजेदार...
समय बड़ा बलवान ... बहुत खूबसूरत रचना!
ReplyDeleteबहुत उम्दा , आंचलिक शब्द अभिव्यक्ति को और सटीक बना देते है..... :)
ReplyDeleteई सब नयका बजार की चमक हवे,जल्दी ही बुझा जइल !
ReplyDeleteप्रेम अनायास होवे वाली चीज़ है,अब प्रोग्राम बनावा जात है !
☺
ReplyDeleteई कालजयी रचना है थोडा और विस्तार चाही
ReplyDeleteआप फुरसतिया जाव ,तबै बिस्तार होई !
Deleteसार्थक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रिक हैं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रेमजी ,कभी बिना न्योते के भी आया करो !
Deleteहाथ पकड़े जो माइन होती है
ReplyDeleteपैक्ड लेदर में वाइन होती है
कितनी उत्तम गुज़ारते थे वो
अपनी तो वेरी फाइन होती है
वो बसन्ती के प्रेमलीन से थे
अपनी तो वैलेनटाइन होती है
लंबे घूंघट मुरीद थे वो सब
यां बिकनी पे लाइन होती है
क्या मारा है अली साब,
Deleteयहाँ तो बस,पंडिताइन होती है !
पाण्डेय जी, हम पहली कैटेगरी में है- जिन्होने नहीं पढ़ा था। पढ़ कर वाकई बहुत मजा आया...तीसरी कैटेगरी में भी रहे होते तो बेशक वही मजा आता।
ReplyDeleteWah! Maza aa gaya!
ReplyDeleteबढ़िया व्यंगात्मक रचना है !
ReplyDeleteVAH BHAI DEVENDR JI ......KYA KHOOB LIKHA HAI ...BILKUL TEEKHA VYANG ...SATH ME HASY BHI ...BADHAI
ReplyDelete:-) वाह! ज़बरदस्त!
ReplyDeleteवेलंताइन सांस्कृतिक उत्थान का पर्व है। :-)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteha ha ha ha ha ha ha......very nice
ReplyDeleteछा गए पांडे बाबा!!
ReplyDeleteमैंने आपकी यह पोस्ट पहले नहीं पढ़ी थी वालेंतीने दिवस के उपलक्ष में आपकी यह पोस्ट सच में बहुत ही बढ़िया और मज़ेदार रही...आभार
ReplyDeleteक्या सुन्दर.... वाह!!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई...
दिन , साँझ और रात की बात में भोत घपलात है ।
ReplyDeleteसमयोचित, सुन्दर रचना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteकवितौ पढ़ेन औ बिस्तार की मागौ! रस-लोभी मन-भौंरा भला कब अघात है, ऊ ‘अउरै-अउर’ चिल्लात है! :)
ReplyDeleteपसंद आई रचना! जै है!
”दुइ रुपया कै चीज बीस मा बिकत हवै,
मानौ बेलेन्टाइन होइगै महंगाई..!” ~ अशोक ‘अग्यानी’
एक बात समझमा आई गवा कि अमरेंदर के बोलाये बदे देवेन्दर के भोजपुरी आ अवधिये में कछु लिखे परी।:)
ReplyDeleteबहुत सही :)
ReplyDeleteदेवेंदर जी तोहार जवाब नाही
ReplyDeleteबडकू कईलन ज्वाईन ...
ReplyDeleteदिखे रहा है !
रोचक !
लेट्स एन्जॉय वैलेंटाइन ...डियर !
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी!!!!!!!तोहार ई रचना के कउनो जबाब नाही,..सिर्फ!!!!लाजबाब लाजबाब लाजबाब,..
ReplyDeleteबेहतरीन सुंदर रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,
MY NEW POST ...कामयाबी...
wah, kya baat hai
ReplyDeleteआनंद आ गया इसे पढ़ के ... जवाब नहीं इसका ....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी हिंदी शायरी थी
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