बसंत आया
सरसों के फूल खिले
गेहूँ की बालियाँ लहलहाईं
झूमने लगे अरहर
सूखी सनाठी को पकड़कर
इक-दूजे से
लिपटने लगीं लताएँ
धरती माँ ने
अपने दुलारे
सबसे बूढ़े पीपल को भी
उबटन लगाकर
लौटा दिया
उसका बचपन।
हर बार की तरह
इस बार भी
पकृति ने रंग जमाया
अंकुरित होती
जवान होती
खिलती-फूलती
नाचती-गाती
नखरे दिखाती
आ गई होली।
प्रकृति के बदलते तेवर देख
मन मचला
तन बहका
पुराने वस्त्रों को
नकली रंगों से
खूब किया मैला और..
छुड़ाते रहे देर तक
पुराने चमड़े की
नई कालिख!
नए वस्त्र पहने
गुलाल लगाया
एक ढूँढो
हजार मिलते हैं
कई थे
अपने जैसे
मस्ती में डूबे
सबसे गले मिले
खूब किया बचपना
लगा कि अपनी
हो गई होली।
हाय!
हम पीपल न हुए
न लगा पाये
उसके जैसा उबटन
न लौटा पाये बचपन
न हो पाये जवान
पचपन के थे
पचपन के ही रहे
जस के तस
महंगाई से परेशान
ब्लड प्रेशर और शुगर के मरीज
जवान होती बेटियों की चिंता में घुले रहने वाले
बाबूजी।
................
बहुत ही उत्कृष्ट और मार्मिक रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
हूँ :-(
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना ..
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें...
बाबू जी का इसके सिवाय और कोई इलाज है भी नहीं फिलहाल :) Belated Happy Holi !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
--
होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आभार।
Deleteबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteहोली पर्व की शुभकामनाएँ...
कहाँ से कहाँ तक सफ़र कर गयी रचना.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!!!
सादर
अनु
होली के अवसर पर समूची प्रकृति को रंगों के खुबसूरत अहसास में पिरोती भावपूर्ण कविता...
ReplyDeleteवाह कवि जी।
ReplyDeleteहमेशा की तरह बढ़िया रचना।
होली की शुभकामनायें।
उत्कृष्ट लाजबाब रचना,,,बधाई
ReplyDeleteआपको होली की हार्दिक शुभकामनाए,,,
Recent post: होली की हुडदंग काव्यान्जलि के संग,
उत्स से शुरू और मर्मांतक पर खत्म!! बडी सम्वेदनशील रचना!!
ReplyDeleteबहुत अपील है इस होली में ।
ReplyDeleteप्रासंगिक, सच भी ....
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए आपको बधाई
ReplyDeleteगहरे भावों की उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteसबकी होली बस सुख लाये..
ReplyDeleteतन धुला मन सूखा रह गया सी कविता !
ReplyDeleteओह!
Deleteबहुत सुन्दर अभिब्यक्ति ,प्रकृति ही वास्तव में होली खेलती है. आदमी क्या ख़ाक होली खेलता है !
ReplyDeleteक्षणिक सुख, कुछ पलों का बचपन, हल्का सा सुकून, बस हो ली होली| अब हर कोई पीपल तो नहीं हो सकता न|
ReplyDeleteसादर
संवेदना के अंत में खड़ी थी होली ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteसच! जीवन में जिम्मेदारियों को निभाने की आपाधापी में कहां होली कहां दीवाली।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना। आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🖍️🖍️💐💐
होली का उल्लास तो था पर चिंताओं का बोझ कुछ ज्यादा भारी था।
ReplyDeleteमर्म को छूती रचना ।
होली पर हार्दिक शुभकामनाएं।
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सटीक...
हम पीपल न हुए प्रकृति सा उबटन जो नहीं हमारे पास।
लाजवाब सृजन।
नए वस्त्र पहने
ReplyDeleteगुलाल लगाया
एक ढूँढो
हजार मिलते हैं
कई थे
अपने जैसे
मस्ती में डूबे
सबसे गले मिले
खूब किया बचपना
लगा कि अपनी
हो गई होली। … हमेशा की तरह बहुत सुन्दर रचना👌👌
ReplyDeleteनए वस्त्र पहने
गुलाल लगाया
एक ढूँढो
हजार मिलते हैं
कई थे
अपने जैसे
मस्ती में डूबे
सबसे गले मिले
खूब किया बचपना
लगा कि अपनी
हो गई होली। … हमेशा की तरह बहुत सुन्दर रचना👌👌
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