सबेरा
बच्चे सा
हँसने लगा
कभी पंछी
कभी तितली
कभी फूल
धूप खिली
जानवर हो गया!
जानवर हो गया!
बदलने लगा
गिरगिट की तरह रंग
कभी कुत्ता
कभी गदहा
कभी घोड़ा...
रखने लगा
पंजे में
बिच्छू डंक
झेलने लगा
सर्प दंश
शाम
भेड़-बकरी हो गई
लौटने लगी
थकी-माँदी
घर
रात
हो गई 'वणिक'
जोड़ने-घटाने लगी
नफ़ा-नुकसान
इस तरह
चार दिन की ज़िंदगी
एक दिन में
पूरी हो गई।
.....................
सुबह होती है शाम होती है,
ReplyDeleteज़िंदगी यूं तमाम होती है!
और आपने तो ज़िंदगी का खाता ही खोलकर रख दिया!! अब तो कहना पडेगा कि आपकी कविताओं पर भी आपके छायांकन का प्रभाव दिखने लगा है!!
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
नवरात्रों और नवसम्वतसर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ...!
...कितनी विषम है जिंदगी !
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह बहुत प्रभावशाली सुंदर प्रस्तुति !!! देवेन्द्र जी,,
ReplyDeleteनववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
recent post : भूल जाते है लोग,
नाफा नुकसान का भी कहाँ अंदाज़ा लग पता है ...यूं ही पूरी हो जाती है ज़िंदगी ॥
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...बेहद अर्थपूर्ण....
अनु
आह रंग बदलती जिंदगी...
ReplyDeleteयूं ही बेरंग खत्म होती जिंदगी.
ग़ज़ब की कविता, आप सिद्धहस्त हैं, दृष्टिसिद्ध हैं, बस और बस, लिखते रहिये।
ReplyDeleteओह...कितनी जल्दी कितने रंग ...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया.
क्या बात है दर्शन कहाँ से कहाँ तक होता है आपकी कविताओं में ।
ReplyDeleteकोई नाराज़गी है क्या देव बाबू ?.....अरसे से ब्लॉग पर भी दर्शन नहीं हुए हैं आपके।
वाह! बहुत खूब | अत्यंत सुन्दर रचना | नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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जबरदस्त कविता ! ये उपमान याद रहेगें !
ReplyDeleteवैसे तो हम पढ़ कर बिना कुछ बोले चले जाते हैं , लेकिन आज बिना बोले न जा सके , ! बहुत अच्छा !
सारे प्रहर नये रूपकों में बाँध दिये आपने -दिन के भी जीवन के भी,आभार !
ReplyDeleteइस कविता के लिये एक ही शब्द है - अदभुत.
ReplyDeleteनवसंवत्सर की शुभकामनाएँ.
जमाना ही हाईस्पीड का है.
ReplyDeleteसार्थक कविता
चार दिन एक ही दिन में तमाम ...
ReplyDeleteएट युग है ... गति का महत्त्व समझता है ...
ज़मीनी रचना है ...
बहुत सुन्दर ,कमाल की पैनी नजर रखते हैं आप और सूरज की तपिश को झेलते हुये उसे जीवन से जोड़ दिया.
ReplyDeleteवाह देवेन्द्र जी, रचना का पहला पैरा तो अतुलनीय है.
ReplyDeleteलाजवाब
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