चखे लागल छोटकी चिरैय्या!
मैय्या देखा तनि, पाक गइल अमवाँ कि ना..?
चार बूँद झरल बाटे अबहिन ले मुनियाँ
चार जून रूका तनि बरसे दs बुनियाँ
अमवाँ पाक जाई हो.....
भिनसहरे दाना-पानी चिरिया के देवलू
खाई के मोटाई गइल, बाज़ अस कोयलू
मैय्या देख तनि, पाक गइल अमवाँ कि ना..?
पकलका पे हक होखे चिरिया कs पहिला
काहे घबरालू बिटिया, तोहें मिली डलिया
अमवाँ पाक जाई हो.....
काहे हक होखे पहिला चिरिया कs माई?
हम ताकत बाटी, सब कचवे ई खाई!
मैय्या देखा तनि, पाक गइल अमवाँ कि ना..?
मनई से पहिले रहल चारो ओरी जंगल
शेर, भालू, चिरई कs होत रहल दंगल
अमवाँ पाक जाई हो....
बूझ गइली माई काहे चिरिया कs हक बा
ओनहीं के पेड़ हउवे, ओनहीं क फल बा!
चिरई चखा तोहीं, पाक गइल अमवाँ कि ना..?
चखे लागल छोटकी चिरैय्या!
मैय्या देखा तनि, पाक गइल अमवाँ कि ना..?
...............................
अहा, वाह, वैसे भोजपुरी आती नहीं, पर सब समझ में आ गया।
ReplyDeleteअब तो सिर्फ़ मनई ही रह गये हैं, शेर भालू चिरैया सब आये गये, बहुत भाव विह्ल करती भोजपुरी रचना, आभार.
ReplyDeleteरामराम.
समझ में कुछ नहीं आया। लेकिन अम्बियाँ देखकर मज़ा आ गया।
ReplyDeleteबिटिया पूछ रही है माँ से..
Deleteमाँ, देखो जरा, छोटी चिड़िया भी आम चखने लगी! आम पक गया कि नहीं?
माँ कहती है...
अभी तक तो चार बूँद ही बारिश हुई है, चार दिन और रूको, जमकर बारिश की बूँदे गिरने दो, आम पक जायेगा।
फिर बिटिया मारे जलन के कहती है....
सुबह-सुबह चिड़िया को दाना-पानी देती हो, खा-खा के कोयल भी बाज़ जैसी मोटी हो गई है, आम तो जरूर पक गया होगा..पका कि नहीं?
बिटिया के जलन को भांपकर माँ समझाती है...
पके फल पर तो पंछियों का ही पहला हक होता है, तुम क्यों घबड़ाती हो, तुम्हें पूरे एक डाल का आम मिलेगा।
माँ के उत्तर को सुनकर बिटिया शंका करती है..पहला हक पंछियों का कैसे? लालच के मारे कहती है..लगता है हम ताकते रह जायेंगे और चिड़िया कच्चा ही पूरा आम खा जायेगी।
माँ फिर समझाती है..जब धरती पर आदमी नहीं था तो चारों ओर जंगल ही जंगल थे। ये वृक्ष तो इन्हीं जगंली जानवरों और पंछियों के हैं। हम तो अनाधिकार यहाँ कब्जा जमा बैठे हैं।
बिटिया को माँ की बात समझ में आ जाती है। कहती है..
हम समझ गये माँ, उन्हीं के वृक्ष, उन्हीं के फल। तब वह चि़ड़िया से ही कहती है...
चिड़िया, तुम्हीं चखकर बताओ, आम पका कि नहीं?
अब आप बताइये, डाक्टर साहब, समझ में आया कि नहीं? :)
वाह वाह ! समझ भी आ गया और ग्रहण भी कर लिया। सार्थक सन्देश देती बहुत बढ़िया उत्कृष्ट रचना है। अब तो हम भोजपुरी सीखने का प्रयास भी कर सकते हैं।
Deleteधन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर! अनुवाद के लिए आभार!
Deleteएकदम प्राकृतिक कविता।
Deleteकमेंट्स दवारा आपने ठेठ हिंदी भाषा में समझा दिया है पूरी तरह से समझ में आ गया,,,आभार
ReplyDeleteशानदार,बहुत उम्दा भोजपुरी गीत ,,,
RECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
लोक-जीवन की सारी मिठास समेटे ,प्रकृति-पर्यावरण से जुड़ी सुन्दर रचना !
ReplyDeleteपढ़कर मजा आया, और आपके समझाने के बाद समझ भी आया :)
ReplyDeleteकितना खूबसूरत पर्यावरणीय यथार्थ इन चंद लाईनों में छुपा है -मनुष्य तो बहुत बाद में धरा पर आया ही है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत है. मन मुग्ध हो गया पढ़कर. भोजपुरी में इसकी मिठास और बढ़ गई है.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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सुन्दर गीत, सुन्दर भाव...
...
वाह साहब! क्या जबरदस्त बात कह दी ! वह भी लोकगीत...
ReplyDeleteइस गीत को पढते हुए मैं चालीस-पैतालीस साल पीछे चला गया.. जब अपनी बूढ-पुरइन दादी-नानी को इस तरह गाते सुनता था.. आज भी धुन दिमाग में बजती है देवेन्द्र भाई!! शब्दों से शंड जोडकर छंद बनाती!!
ReplyDeleteजी..वैसे ही किसी धुन का प्रभाव रहा होगा जेहन में जो ऐसे लिखा गया।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजबरदस्त रचना.
ReplyDeleteहरियर भइल तुलसी के पतवा,
ReplyDeleteबरसे लागल बुनिया,
देखा तनि पाक गइल अमवाँ की ना ?
बहुत सुन्दर रचना...
आपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 12/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
वाह .. गज़ब की रचना ... और आपने जो अर्थ भी बताया तो दुगना आनद आ गया ...
ReplyDeleteभोजपुरी की बात अनोखी है ...
छोट रहनी त हमरो ढेरे गुस्सा आवत रहे ये देखेअ के कि सबसे निमन आमवा के पक्षी सब जातरअ सान
ReplyDeleteआज सभेवे समझअ में आ गइलअ
खा जातरअ सन ....
Deleteपकलका पे हक़ होला चिरैया के पहिला... आ ह ह ह ... मन गदगद हो गया... बहुत मोहक रचना है ... बधाई !!
ReplyDeleteहमको भी लगता है कि आम पक ही गए!! सुन्दर रचना।। आभार।
ReplyDeleteक्या आपको भी आते हैं इस तरह के ईनामी एसएमएस!!
नया चिठ्ठा :- Knowledgeable-World
देवेन्द्र जी आपने तो मिटटी की खुशबू परोस दिया इस सुंदर भोजपुरी रचना के माध्यम से.
ReplyDeleteअमवा त अब पक गयल होई ...