8.9.13

घर का क़ैदी

हवा तेज़ है
लगता है बारिश होगी
झर रहे हैं
घर की छत पर
सागवान के सूखे पत्ते
कदंब, गुड़हल और बेला की डालियों से
पीले पत्ते।

चाहता हूँ
साफ कर दूँ
जल्दी-जल्दी
बारिश शुरू होने से पहले
नहीं कर पाया तो
पत्तों से
जाम हो जायेंगी छत की नालियाँ
भर जायेगा पानी ।

लो!
कर दिया साफ़
शुरू हो गई बूंदा-बांदी भी
अब चलता हूँ नीचे
अरे!
यह क्या ?
फिर झरे सागवान से
चार बड़े सूखे पत्ते!
वो आठ-दस,
कदंब की डालियों से!
वो छोटे-छोटे
बेला के दो….

उफ्फ!
अब तो थक गया
कब रूकेगी हवा?
कब होगी बारिश?
बेटे को आवाज लगाता हूँ
शायद मदद करे….

क्या पापा!
अब यही फालतू काम करना बचा है?
मुझसे न होगा
बहुत पढ़ना है।

हाँ,
समझ सकता हूँ
यह उससे न होगा
मैं भी कभी
अपने बाप के घर में रहता था।

चलो!
ठोकर मारता हूँ
इन झरे हुए पत्तों को
और बिखरा देता हूँ चारों ओर
लो!
फिर गिर रहा है एक पत्ता
कैच-कैच खेलता हूँ !
नाचता हूँ
हा हा हा


अबे नालायक!
दो पल के लिए
आज़ाद नहीं हो सकता?
.............


27 comments:

  1. Lovely..
    we feel like we trapped in our own homes.
    no matter how much you try to escape.. it just pulls you back.

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  2. आजादी मुबारक! बनी रहे।

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  3. आप आज़ाद हैं ...

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  4. उफ़्फ़! ये हवा,ये पत्ते और ये सरसराहट
    बारिश की बूँदें और उनकी चमचमाहट
    गिरती हुई यादें और बेबस मन
    जाने कब तेडे़गा ये बन्धन ....

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  5. बहुत बढ़िया :-)

    अनु

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  6. बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
    आभार आपका-

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  7. मर्म को छूती है रचना जब आप ये लिखते हैं ... मैं भी कभी अपने बाप के घर रहता था ...
    इतिहास दोहराता है सदियों से अपने आप को ... सबक तो कोई भी नहीं लेता ...

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  8. बेहद मर्मस्पर्शी लाइन ......"मैं भी कभि अपने बाप के घर रहता था".......हम सबकी लगभग येक-सी कहानी है.मुझे भी यैसा ही एहसास होता रहता है गाहे-बगाहे.
    जहाँ तक आजादी का सवाल है, आप तो इसे चुराना जानते हैं.चाहे वो कुछ पलों के लिये ही क्यों न हो.

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  9. main bhi kabhi apne baap ke ghar rehta tha.....choo gayi ye line...

    bahut sundar

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  10. जब जाम हो जाएँगी , तब देखेंगे -- अभी तो हम आज़ाद हैं.

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  11. आजादी कितनी कब चाहिए बहुतों को नहीं पता

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  12. गहन अभिव्यक्ति .... बाप के घर में रहता था ..... इस पंक्ति में नयी पीढ़ी की भावनाएं दर्ज़ हैं ।

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  13. हम्म..... यही खासियत है आपकी छोटी छोटी बातों में गहरी बात कह जाते हैं.... बहुत बढ़िया |

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  14. बड़े बेचैन है आपके शब्द भी और गहरे भी
    हर बेचैन को आज़ादी का हक बनता है ....?

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    1. बेचैन तो बेचैनी ही पायेगा। कैद हो तो आज़ादी, आज़ाद हो तो कैद। यह उसकी नियति है और अपनी दुआ कि हर बेचैन को चैन आ जाये।

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  15. तन पिंजर में कैद सही , भीतर मन आज़ाद है !

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  16. आज़ादी और ज़िम्मेदारी का संतुलन आसान कहाँ है

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