मुझे कोई आइना दिखाता है
तो मैं
आइने में अपनी शक्ल देखने के बाद
मुँह धोने नहीं जाता!
दौड़ा कर मारना चाहता हूँ
मुझे लगता है
आइना दिखाने वाला
शैतान है!
जब वह
अपनी या भीड़ की मौत
मारा जाता है
तो मुझे एहसास होता है
क़ि उसे
सत्य का ज्ञान था!
मैं फिर भी मुँह धोने नहीं जाता
गंगा में डुबकी लगाता हूँ
और...
भगवान के बराबर
उसे बिठाकर
पूजने लगता हूँ!!!
मैं
कबीर की
इज्जत करता हूँ
क्या आप नहीं करते?
तो मैं
आइने में अपनी शक्ल देखने के बाद
मुँह धोने नहीं जाता!
दौड़ा कर मारना चाहता हूँ
मुझे लगता है
आइना दिखाने वाला
शैतान है!
जब वह
अपनी या भीड़ की मौत
मारा जाता है
तो मुझे एहसास होता है
क़ि उसे
सत्य का ज्ञान था!
मैं फिर भी मुँह धोने नहीं जाता
गंगा में डुबकी लगाता हूँ
और...
भगवान के बराबर
उसे बिठाकर
पूजने लगता हूँ!!!
मैं
कबीर की
इज्जत करता हूँ
क्या आप नहीं करते?
जबरदस्त।
ReplyDeleteबिलकुल सही , कबीर के रूपक का इस्तेमाल कर
ReplyDeleteआपने समाज को उसकी सहन शक्ति की सरहद से आशना करवा दिया
बहुत खूब :)
अच्छा लगा आपका कमेंट।
Deleteपी के जी हाँ
ReplyDeleteमैं भी कबीर
की करता हूँ
बहुत इज्जत ।
सार्थक चिंतन प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको नए साल 2015 की बहुत बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं!
नूतन वर्षाभिनन्दन.....आपकी लिखी रचना शनिवार 03 जनवरी 2015 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (03-01-2015) को "नया साल कुछ नये सवाल" (चर्चा-1847) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आज कुछ नहीं कहुँगा प्रियवर! कुछ भी कहा तो वो वज़न नहीं पैदा होगा जो आपने इसमें सृजन किया है!!
ReplyDeleteकबीर ,वह व्यक्ति है जो अपनी बात बाज़ार में खड़ा हो कर डंके की चोट पर (लिए लुकाठी हाथ)घोषित करता है ,और विरोधी 'चूँ'नहीं कर पाते -अक्खड़ और खुला सच !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जानकारी मिल रही है आपकी साईट से
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वाकई...कबीर को हमने सिर्फ पढ़ा है समझा नहीं...
ReplyDeleteजी। जितना समझा उस का अंश मात्र भी जी न पाये।
Deleteसार्थक रचना
ReplyDeleteकुछ समझ में आया नहीं मेरे.
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