26.1.15

गणतंत्र दिवस


एक समय था जब मेरे जैसे निर्धन मध्यमवर्गीय परिवार का बच्चा भी सरकारी स्कूल में न्यूनतम फीस देकर, बिना ट्यूशन किये, पढ़ाई पूरी कर सकता था और थोड़ी मेहनत करके नौकरी पा सकता था। मुझे लगता है अब यह अत्यंत कठिन है। यदि यह सच है तो मानना पड़ेगा कि हम लोकतंत्र को दोनो हाथों से गहरे गढ्ढे में धकेलते चले जा रहे हैं। मुझे यह भी लगता है कि भारत के लोकतंत्र में एक गरीब व्यक्ति प्रधान मंत्री तो बन सकता है मगर डाक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता। 

गणतंत्र दिवस के दिन ध्वजा रोहण के लिए एक सरकारी स्कूल में जाने का सौभाग्य मिला। इतने बड़़े सरकारी स्कूल में, गणतंत्र दिवस समारोह के दिन विद्यार्थियों की इतनी कम संख्या देखकर गहरी निराशा हुई। मैने प्रधानाचार्य महोदय से इसका कारण जानना चाहा तो उन्होने बताया कि एक तो रविवार के दिन 26 जनवरी पड़ गया दूसरे आज ठंड भी बहुत ज्यादा है! यह उत्तर और भी निराश करने वाला था। नई पीढ़ी क्या इतनी जल्दी भूल गई कि हमारे वीर जवानो ने अपने लहू से आजादी लिखी है!  

अवसर मिला तो मैने बच्चों से पूछा-बच्चों बताओ 26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस क्यों मनाते हैं? एक बच्चे ने उत्तर दिया-क्योंकि आज के दिन हमारा संविधान लागू हुआ था। सभी ने तालियाँ बजाईं। मुझे भी खुशी हुई। मैने बच्चों से फिर पूछा-26 जनवरी के दिन ही संविधान क्यों लागू हुआ था 25 जनवरी या 27 जनवरी को दिन क्यों नहीं? इसका उत्तर बच्चों के पास नहीं था। मैने उन्हें बताया कि 26 जनवरी, सन् 1930 को रावी नदी के तट पर कांग्रेस के अधिवेशन में भारत के प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वतंत्रता की शपथ ली गई थी। भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। स्वतंत्र भारत को चलाने के लिए एक संविधान की आवश्यकता महसूस की गई। बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की अध्यक्षता में एक समीति का गठन हुआ। इसे तैयार होने में दो वर्ष लग गये। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अंगीकृत किया गया। संविधान अंगीकृत तो कर लिया गया लेकिन अब प्रश्न उठा कि इसे लागू कब किया जाय ?  भारत के  महान सपूतों ने जिन्होने हमे आजादी दिलाई, यह तय किया कि सविंधान उस दिन लागू किया जाय जब हमने पूर्ण स्वतंत्रता की शपथ ली थी। 26 नवम्बर, 1949 के बाद आने वाली तिथि 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया। 26 जनवरी, 1950 से भारत प्रभुत्व संपन्न स्वतंत्र गणराज्य बना। यही कारण है कि 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।

समारोह के बाद घर लौटते वक्त कभी गुनगुनाता-तीन रंग ने सात रंग के सपने बुने। सपने, सच होंगे अपने। कभी सोचता- हम तो ये सात रंग तभी देख पाते हैं जब आकाश में यदा-कदा बारिश के बाद इंद्रधनुष निकलता है! वे कौन हैं जिन्होने हमारे सभी सपने चुरा लिये ?

7 comments:

  1. सामयिक चिंतनशील प्रस्तुति
    सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।

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  3. सार्थक रचना

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  4. "वे कौन हैं जिन्होंने हमारे सपने चुरा लिये" - बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है देवेन्द्र भाई! कल ही टीवी के एक प्रोग्राम में आगामी फ़िल्म का एक सम्वाद उस फ़िल्म के नायक ने विशेष तौर पर कहा - परियों की कहानियाँ क्यों सच नहीं होतीं... बड़ा होने की जल्दी में हम बच्चों की तरह सोचना बन्द कर देते हैं!
    जबसे देश प्रेम पर टोपी और कुर्सी हावी हो गई, सत्ता पाना ही किसी भी कीमत पर किसी भी राजनैतिक दल का लक्ष्य बन गया, तो फिर यह तो होना ही था. आपको तो बच्चों की बातें याद हैं कि 26 जनवरी 1950 को हमारा सम्विधान लागू हुआ था, लेकिन आज कितने ऐसे शिक्षक हैं जिन्हें गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस का अंतर नहीं पता और शर्म से झुक जाता है सर यह कहते हुये कि उन्हें राष्ट्र गान भी पूरा नहीं आता!
    आपकी चिंता जायज है, लेकिन आपके सपने का जवाब नहीं किसी के पास.

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    1. हमेशा की तरह शानदार प्रतिक्रिया। यह पोस्ट पिछले साल लिखा था। समारोह से लौटकर। ड्राफ्ट में ही पड़ा रहा। इस बार सोचा इसी को पोस्ट कर दूं।

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  5. उम्दा....बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
    मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन

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  6. एक संदेश के साथ कुछ प्रश्न उटाता हुआ लेख
    http://savanxxx.blogspot.in

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