22.3.15

दूर है मंजिल..

अभी 
डूबेगा सूरज 
घर जायेंगे 
बंजर माटी पर क्रिकेट खेलते बच्चे 
थक जायेगा 
मिट्टी ढोते-ढोते 
ट्रैक्टर 
आँखों से ओझल हो जायेंगे 
गेहूँ, अरहर और जौं  की खड़ी फ़सल के ऊपर 
उड़ रहे कौए
भेड़-बकरियाँ 
वही करेंगी, जो कहेगा मालिक  
अभी 
थरथाई है ट्रेन 
गुजरी है 
पुल के ऊपर से 
अभी 
दूर है मंजिल। 


11 comments:

  1. आपकी ग्राम्य परिवेश पर रचित कविताएँ जीवन के स्पंदन से पूर्ण .मनोरम चित्र अंकित कर देती हैं-!

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  2. बहुत दिनों बाद लगा कि गाँव से रूबरू हवा !

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  3. अहा ! सुन्दर !!

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  4. लगा जैसे सामने कोई फिल्म चल रही हो...और एकाएक पर्दा गिर जाये..मंजिल भले दूर हो पर कविता अपने मुकाम पर पहुंच गयी..

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  5. वाह. बहुत सुन्दर

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  6. यथार्थ कहा है आपने दूर है मंज़िल। मुझे भी यही लगता है इसलिए लगता है कि मंज़िल की प्रतीक्षा के फेर में उलझने से तो राहों का आनंद भला। आप भी एक राह तय करने का साहस जुटाने की तैयारी कर लीजिये
    विनती है एक बार dj के ब्लॉग्स एक लेखनी मेरी भी और नारी का नारी को नारी के लिए तक जाने और मेरी रचनाओं का अवलोकन करने की राह भी तय करलें।ब्लॉग जगत में नए नए कदम रखने वाले हम जैसे तथाकथित लेखकों को आपके मार्गदर्शन की परम आवश्यकता है।
    http://lekhaniblog.blogspot.in/ एक लेखनी मेरी भी
    http://lekhaniblogdj.blogspot.in/ नारी का नारी को नारी के लिए
    इस राह से काँटे मिले या गुलाब निसंकोच मार्गदर्शन कीजियेगा। धन्यवाद

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    1. अवश्य। अभी व्यस्तता है। फुर्सत में मिलते हैं।

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    2. अवश्य। अभी व्यस्तता है। फुर्सत में मिलते हैं।

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    3. उत्तर देने के लिए ह्रदय से धन्यवाद। आपकी फुर्सत और आपकी कोई नयी रचना पढ़ कर फिर से मुस्कुराने दोनों की प्रतीक्षा में.......
      dj

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  7. Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.

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