12.6.16

गाय

‘प्रणाम’ कपिला’ आर्य प्रकाशन मंडल नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक है जिसका संकलन एवं संपादन श्री देवेन्द्र दीपक जी द्वारा किया गया है. इस पुस्तक में मेरी इस कविता सहित ‘गाय’ पर केन्द्रित कुल १३४ कवियों की १४५ कवितायेँ हैं. यह कविता मैंने ७-८ साल पहले लिखी थी जब इस पुस्तक के लिए मुझसे गाय विषय पर कविता लिखने का आदेश मिला था. कल जब यह पुस्तक मिली तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ. यह अपने ढंग की अनूठी पुस्तक है कि इसमें एक ही विषय ‘गाय’ पर अलग-अलग कवियों की कविताओं का संग्रह है. 

गाय 
.........
गाय हमारी माता है,
सफ़ेद, काली, चितकबरी, सुन्दर,
हमेशा मीठा दूध देने वाली,
माँ.
मगर एक प्रश्न
हमेशा सालता है
कि क्या गाय
‘दूध' हमारे लिए देती है?
क्या दुनियाँ की कोई माँ
दूसरों के बच्चों के लिए
दूध देती है?
कहीं ऐसा तो नहीं
कि हम
उसके बच्चों का दूध
खुद पी जाते हैं
इसलिए कि वह
बहुत सीधी है!

मैंने देखे हैं
ठण्ड से ठिठुरकर मरते
गायों के ‘नर’ बच्चे
मैंने देखा है
अपना बच्चा समझकर
लकड़ी के पुतले को
चाटती, पुचकारती, खूंटे से बंधी गाय
और
उसके दोनों पैरों को बाँध कर
दूध दुहता
आदम पुत्र!

क्यों जिन्दा रह जाते हैं
गाय के मादा बच्चे?
क्यों मर जाते हैं
‘नर’ ?
कहीं इसलिए तो नहीं
कि अब हमारे खेत
ट्रैक्टर से जोते जाते हैं!
“गाय हमारी माता है.”
सुनने में कितना अच्छा लगता है
यह वाक्य,
लगता है जैसे हम कितने महान हैं
जो जानवरों को भी
‘माँ’ का दर्जा देना जानते हैं.
मगर एक प्रश्न
गाय हमारी माता है
तो क्यों थन सूखने के बाद
छोड़ दी जाती हैं गलियों में
कूड़ाघरों से पौलीथीन के
गंदे थैले खाने के लिए?

निःसंदेह
‘माँ’ की तरह
सब कुछ न्योछावर करती है ‘गाय’
न होती तो
दूध के लिए
तरस कर रह जाते
हमारे बच्चे!
दुःख इस बात का है कि
नहीं पिला पाती अभागी
सिर्फ अपने बच्चों को ही
जी भर के दूध
पी जाते हैं सब के सब आदमजात.

क्या करते हैं हम
‘गोमाता’ के लिए
ले-देकर
जी बहलाने के लिए
यही एक संतोष
कि हम अच्छे हैं उनसे
जो करते हैं
गो हत्या!

क्षमा करना ‘माँ’
जो मुझसे कोई तकलीफ पहुँची हो
शर्मिन्दा हूँ
कि नहीं चुका पाया आज तक
तुम्हारे दूध का मूल्य
नहीं कर पाया
तुम्हारी रक्षा.
...................

4 comments:

  1. कविता पढ़कर आँखों में आँसु आ गये , आदमी के स्वार्थी स्वभाव का बयान करती एक ख़ूबसूरत रचना !

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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