मेहमान नवाजी शब्द में वो मजा नहीं है जो अतिथि सत्कार में है. मेहमान का स्वागत तो मोदी जी भी कर सकते है,अतिथि का कर के दिखाएँ तो जाने! मेहमान वो जो बाकायदा प्रोटोकाल दे कर आये. फलां तारीख को, फलां गाडी से, फलां समय आयेंगे. ये घूमना है, यह काम है और इतने बजे लौट जायेंगे. सब कुछ पूर्व निर्धारित. इसके उलट बिना तिथि बताये, छुट्टी और आपकी लोकेशन ताड़ कर जो सीधे आपके घर की काल बेल बजा दे वह अतिथि कहलाता है. सब काम छोड़कर इस अकस्मात टपक पड़े अतिथि का स्वागत करने में जो बहादुरी है वह प्रोटोकाल बता कर आने वाले अतिथि में कहाँ! सरल शब्दों में कहें तो भारत आने वाली ट्रम्प की बिटिया को आप मेहमान और नवाज शरीफ को बधाई देने अचानक लाहौर पहुंचे हमारेआदरणीय प्रधान मंत्री जी को आप अतिथि कह सकते हैं.
अतिथि तो हमारे पिताजी के समय आते थे. जब मोबाइल, नेट वर्क नहीं था. अब बिना तिथि बताये अतिथि बन कर आना या जाना बैड मैनर कहलाता है. अब मेहमान ही आते हैं. पहले आपसे फेसबुक में चैट करेंगे, आपकी सुविधा का ख्याल करेंगे, अपना पूरा प्रोटोकाल देंगे और फिर यदि आपकी इच्छा हो तभी ना नुकुर करते हुए मेहमान बनना स्वीकार करेंगे. इस पूर्व निर्धारित प्रोग्राम में सबसे पहले जो चीज है वह है रोमांच! यही सिरे से गायब हो जाता है. लेखक के मन में अब 'तू कब जाएगा अतिथि?' जैसे भाव आते ही नहीं तो वह इस विषय पर क्या खा कर व्यंग्य लिखेगा? लिखेगा तो कोरी गप्प मानी जायेगी. अब कोई शरद जोशी जैसा कैलेंडर की तारीखें दिखाकर प्राण फाडू ढंग से नहीं पूछ सकता..तुम कब जाओगे अतिथि?
अव्वल तो मेहमान आने ही नहीं पाते. उनको न आने देने के लिए आपके पास पहले से सौ बहाने मौजूद रहते हैं. अब आप गैरतमंद हुए, वह बहुत अजीज हुआ और मुसीबत आ ही गई तो जाने की तारिख और समय पहले से निर्धारित रहती है. मेहमान का स्वागत पान पराग से करना है या खैनी रगड़ कर चूना लगाना है सब पहले से ही तय रहता है.
यह तो मानी जानी बात है कि जब मुसीबत आती है तो सबसे पहले अपने ही साथ छोड़ जाते हैं. इधर आप ने हिम्मत करके मेहमान को आने का न्योता दिया उधर श्रीमती ने मायके जाने का निर्णय सुना दिया!...'आप स्वागत करिए मित्र का, हम तो चले अम्मा से मिलने! कई दिनों से बीमार चल रही हैं!!! चार दिन हम तो नहीं झेल सकते. अब आप चाहें तो आने वाले मेहमान को सास की बीमारी के कारण अचानक ससुराली जाने की आवश्यकता बता कर आने से रोक सकते हैं या आप में दम हो तो अकेले के दम पर मेहमान का स्वागत कर सकते हैं.
आप नेता है या अफसर हैं तो आपके लिए प्रोटोकाल निभाना कोई कठिन काम नहीं है. सारी मेहनत और खर्च आपके कार्यकर्ता या अधीनस्थ कर्मचारी करेंगे आपको तो सिर्फ अपना कीमती समय निकल कर मेहमान से गप्प लड़ाना है. नैय्या पर बैठकर गंगा आरती देखनी है या मुग़ल गार्डन में झूला झूलना है. मेहमान नवाजी में कोई कमी रही तो सारा दोष कर्मचारियों पर और सब अच्छा रहा तो क्रेडिट आपकी! आपके कुशल संचालन में क्या बेहतरीन ट्रिप रही!!!
मेहमान नवाजी बड़े लोगों के लिए मौज मस्ती, आम लोगों के लिए मुसीबत का सबब और गरीबों के लिए किस्मत की बात होती है. आम आदमी के पूरे माह का बजट बिगड़ जाता है लेकिन अतिथि के आने से गरीब के भाग जाग जाते हैं ! गरीब अतिथि को एक भेली गुड़, ठंडा पानी और पूड़ी-सब्जी, दाल-भात खिलाकर इतना प्रसन्न होता है कि आज उसके घर भगवान पधारे! मेहमान के जाने पर उसके साथ पत्नी और बच्चे भी दुखी होते हैं और जाते समय हाथ जोड़ कर दिल से पूछते हैं..अब कब आयेंगे? हमने मोबाइल खरीद लिया है, बता कर आते तो रजाई भी मंगा लेते. आपको ठंडी भी नहीं लगती. खैर कोई बात नहीं..जल्दी आइयेगा. मुनौवां को छोड़ दीजिये एक दो महीने के लिए यहाँ. बच्चों के साथ खूब हिल मिल गया है. हमारी पत्नी को अम्मा कहता है.
मेहमान नवाजी का लुत्फ लेना है तो किसी गरीब के घर प्रेम की गठरी कंधे पर लादे, खूब समय निकल कर इत्मीनान से, बिना किसी प्रोटोकाल के अतिथि बन कर जाइये. वैसे अब कोई किसी के घर प्रेम से सिर्फ मिलने के उद्देश्य से नहीं जाता. किसी शहर में घूमने या काम से गया तो रहने का ठिकाना ढूँढता है और मित्र भी मेहमान का हिडेन एजेंडा भांप कर कन्नी काटता है. दोनों साथ-साथ नहीं चलता. प्रेम और स्वार्थ एक साथ कहाँ रह पाते हैं! स्वार्थी की भेंट प्रेमी से कैसे हो सकती है? मेहमान नवाजी के महल तो प्रेम के बुनियाद पर टिके हैं.
बढ़िया :)
ReplyDeleteसच अब पहले जैसा समय नहीं रहा
ReplyDeleteअब तो अतिथि शब्द के मायने ही बदल गए है, सब कुछ पूर्व निर्धारित
बहुत अच्छी प्रस्तुति
आप लोगों की ब्लॉग में निरंतर सक्रियता मेरा उत्साह बढ़ती है.
ReplyDelete