16.12.18

नीम

मैं तो 
नीम हूँ
सात गाँव का
हकीम हूँ।

कोई न काटे तो
सदियों जवान रहता हूँ
पतझड़ में
कपड़े बदलता रहता हूँ।

भारत और उसके पड़ोसी देशों में
खिलता/हँसता रहता हूँ
अधिक ठंडे देशों में
मुरझा जाता हूँ
अब दूर देश के विदेशी भी
मुझे चाहने लगे हैं
मुझे लगा कर
स्वास्थ्य सुख लेने लगे हैं।

चर्म रोग हो
मेरे छाल का लेप लगा लो,
दाँत चमकाने हों या
मसूड़े स्वस्थ रखने हों
टहनियाँ तोड़ कर
दातून कर लो,
मेरी पत्तियों को
उबालकर नहा लो
अपने घाव
ठीक कर लो,
मेरी नींबोली के तेल से
मालिश कर लो,
मधुमेह की दवा हूँ,
हवा को शुद्ध रखता हूँ
कड़वा हूँ पर
नख से शिख तक
लाभकारी हूँ।

जिसने मुझे पहचाना
मेरी छाँव तले बैठकर
खूब मजा काटा,
जिसने नहीं जाना
दो गज जमीन के लिए
उखाड़ कर
खेत में मिला दिया।

मैं तो
नीम हूँ
सात गाँव का
हकीम हूँ।
............

7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-12-2018) को "कुम्भ की महिमा अपरम्पार" (चर्चा अंक-3189) (चर्चा अंक-3182) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत अच्छी रचना। अपने विद्यालय में बच्चों को याद करवाऊँगी।

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  3. मकान बनायें पर अहाते में नीम भी हो...
    बहुत अच्छी रचना.

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