23.3.19

सूरज डूबने के बाद

भागो भागो चीखती
सहम कर
घोसलों में दुबक गईं
चिड़ियां।

जुगाली करने लगीं
गाय भैंसें
उठने लगा
झोपडिय़ों से
धुआं।

गाजी कीरा और
चार मुन्नियों से छुपाकर
धनियां
जल्दी-जल्दी खिलाने लगी
मुन्ने को
दूध भात।

उल्लुओं की नज़र
घने वृक्षों के बीच छुपे
जुगनुओं पर
पड़ने लगी
चमकने लगा
एक टुकड़ा चांद।

गाड़ी ने पटरी बदली
गांव से चलकर
बड़े शहर के टेसन पर आकर
रुक गई ट्रेन।

शहर में भी
सूरज नहीं था
रात थी मगर अंधेरा भी न था
कंकरीट के जंगल थे
चारों तरफ रौशनी थी
न उल्लू
न जुगनू
न धुआं
न गाजी कीरा
दूर दूर तक
कहीं कोई न था।

सूरज डूबने के बाद
परिंदों की तरह
घरों की ओर भागते
आदमियों की भीड़ थी
मैं था और...
आकाश में
वही एक टुकड़ा
चांद था।
...........

2 comments:

  1. शहर में भी
    सूरज नहीं था
    शहर में सूरज आया ही कब जो होगा .....

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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