वे पहले बहुत हँसमुख थे, अब मास्क मुख हो गए हैं। जब तक उनकी झील सी गहरी आँखों में न झाँको, पहचान में ही नहीं आते। बारिश में भीगते हुए, पुलिया पर बैठकर, चीनियाँ बदाम फोड़ रहे थे!
मैने पूछा..पगला गए हैं का शर्मा जी! बारिश में भींगकर कोई मूँगफली खाता है?
वे क्रोध से आँखें तरेर कर बोले..आपको नहीं न मालूम की जहाँ हमारे सैनिक शहीद हुए हैं, वहाँ कितनी ठंड पड़ती है!
मूँगफली से शहीदों का क्या संबंध?
ई मूँगफली नहीं, चीनियाँ बदाम है। एक दाना तोड़ते हैं तो ऐसी फिलिंग आती है जैसे चीनियों की खोपड़िया फोड़ रहे हैं!
मैं गम्भीर हो गया। सचमुच पगला गए हैं शर्माजी! चीनियाँ बादाम को भी चीनियों से जोड़ दिए!
अपना मोबाइल तो नहीं फोड़ दिए?
मोबाइल क्यों फोड़ेंगे? बुड़बक हैं का? लेकिन तय कर लिए हैं.. चीन का कोई समान नहीं खरीदना है तो नहीं खरीदना है।
तब चीनियाँ बदाम क्यों खरीदे?
ई त हमरे देश की खेती है। इसका नाम चीनियाँ पड़ा तो जरूर इसमें चीन की कोई बात होगी। देखिए! जैसे चीनी नाटे-छोटे, गोल मटोल होते हैं, वैसे ही होते हैं इसके दाने। शायद इसीलिए...
नहीं भाई शर्मा जी! यह बादाम की एक प्रजाति है। अब यह तो हमको भी नहीं पता कि इसका का नाम चीनियाँ क्यों पड़ा लेकिन इतना जानते हैं कि इससे चीन का कोई लेना देना नहीं है। चीन से हम भी नाराज हैं, शहीदों की याद में हम भी दुखी हैं लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि हम बारिश में भीग कर चीनियाँ बदाम फोड़कर समझें कि हमने चीनियों की खोपड़ी फोड़ दी! यह तो पागलपन हुआ।
तब का करें? इस उमर में बंदूक लेकर लद्दाख जाएं?
नहीं.... धैर्य बनाइए और अपने देश के प्रधानमंत्री पर भरोसा कीजिए। वो जो करने को कहें वही कीजिए। अभी तो आप घर जाइए और कोरोना से बचिए। जान है तो जहान है।
आप तो भक्त हैं। आप तो वही करेंगे जो मोदी जी कहेंगे!
अरे भाई! मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं। किसी देश का प्रधानमंत्री जब बोलता है तो उसके शब्दों में देश के विशेषज्ञों, विद्वान सलाहकारों के विचार शामिल होते हैं। वह सबसे सलाह लेकर ही कुछ बोलता है। हमें चुनावी भाषण और आपातकाल में दिए गए भाषणों में फर्क करना सीखना चाहिए और संकट के समय उनकी कही हर बात माननी चाहिए। इसी में देश की और सभी की भलाई है। जैसे नदी की धार में, नाव पर बैठे यात्री माझी की बात न मानें और उठकर अपने मन से इधर-उधर चलने/बैठने लगें तो नाव पलट जाती है वैसे ही संकट के समय देश के प्रधानमंत्री की सलाह मानने में ही भलाई है। नाव किनारे लग जाय तो फिर गलतियाँ गिनाकर उसे दिनभर कोसते रहना।
शर्मा जी को मेरी बात समझ में आ गई। वे पुलिया से उतरकर घर चले गए। पता नहीं विरोधियों को यह बात कब समझ में आएगी!
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सही बात। ये ही तो हम सब को सीखने की जरुरूत है।
ReplyDeleteपढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद।
Deleteआ गई समझ में। एक के आ गयी औरों के भी आ जायेगी। :) :)
ReplyDeleteपढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteयोग दिवस और पितृ दिवस की बधाई हो।
आपको भी बधाई।
Deleteकाश कि शर्मा जी की तरह सभी समझ पाते!
ReplyDeleteबहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति
पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद।
Deleteसही सुझाव
ReplyDeleteपढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteवाह , बहुत सही लिखा है . रोचक और अर्थपूर्ण
ReplyDeleteअपना तो वैसे ही चीनी का परहेज़ है!
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