भेड़ों का मालिक अक्सर अपनी भेड़ों को लेकर उस कसाई के पास जाता जो बकरे काट रहे होते..देखा! इनका मालिक कितना निर्दयी है!!! घास-फूस के बदले अपने ही प्यारे-प्यारे पालतू जानवरों को काट कर बेच देता है। भेड़ें भीतर तक सहम जातीं..आप कितने अच्छे हैं! हम अभी उन मूर्ख बकरों को अपनी मित्रता सूची से डिलीट करते हैं जो इस कसाई को ही अपना मालिक समझते हैं।
बकरों का मालिक भी ठीक यही काम करता। वह भी अपने बकरों को भेड़ों के मालिक की झलक दिखलाता और कहता...देखा! इनका मालिक कितना निर्दयी है!!! घास-फूस के बदले अपने ही प्यारे-प्यारे पालतू जानवरों की खाल उधेड़ देता है। बकरे भीतर तक सहम जाते..आप कितने अच्छे हैं! हम अभी उन मूर्ख भेड़ों को अपनी मित्रता सूची से डिलीट करते हैं जो इस कसाई को ही अपना मालिक समझते हैं।
बड़े त्योहारों के पास आने तक भेड़ों की मित्रता सूची से बकरे और बकरों की मित्रता सूची से भेड़ गायब होने लगते। दोनो अपने-अपने खाली समय में एक दूसरे पर तंज कसते, एक दूसरे को धिक्कारते और अपने मालिक की शान में कसीदे पढ़ते।
बात एक देश के कुछ जानवरों तक सीमित हो तो कुछ गनीमत थी। बात लोकतंत्र के बड़े त्योहारों तक पहुँच गई। धीरे-धीरे यह रोग, राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय, चौपायों से दो पायों तक फैलता चला गया और दुनियाँ, जहन्नुम बन गई।
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-03-2021 को चर्चा – 4,002 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
जय हो तो कह ही रही हैं फ़िर भी भेड़ें :)
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य
ReplyDeleteभेड़ और बकरियों को मालिक की चाल समझ आये तब न...
ReplyDeleteलाजवाब व्यंग।
वाह! लाजवाब व्यग्य 👌
ReplyDeleteसादर
उफ़ यह कब से चल रहा है और कब तक चलेगा, कोई बताएगा
ReplyDeleteबहुत सुंदर व्यंग्य
ReplyDeleteसामायिक परिस्थितियों पर सुंदर तंज।
ReplyDeleteओह ! ये मार्मिक व्यंग भी बहुत मारक है मान्यवर !
ReplyDeleteAWESOME POST THANKS FOR SHARE I LOVE THIS POST
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