खेल रहे थे, न सो रहे थे
एक घाट में तीन कुत्ते
आपस में अपना दुखड़ा रो रहे थे।
बीच से दाएं वाले ने कहा...
दूर-दूर तक कोई यात्री नहीं दिखता।
जो दिख भी रहे हैं
मुँह में पट्टी बाँधे घूम रहे हैं।
ऐसा लगता है
इन्होंने कुछ न खाने का प्रण ले लिया है!
खाएंगे नहीं तो खिलाएंगे क्या?
अपने तो मरेंगे ही
हमको भी भूखा मारेंगे।
अपनी बात समाप्त कर उसने लंबी जम्हाई ली और सोने का प्रयास करने लगा।
बीच से बाएँ वाले ने कहा...
मुझे तो ये उस बंदर की औलाद लगते हैं
जो एक बार घाटों में घूम-घूम कर सबको समझा रहा था..
मीठा न बोल सको तो चुप रहो
बुरा मत बोलो! बुरा मत बोलो! बुरा मत बोलो!
बीच वाला अपने साथियों पर गुर्राया...
तुम सब मूर्ख हो!
भूख अच्छे अच्छों को मक्कार बना देती है।
तुम सब
सूँघने की शक्ति खो कर
चोर/साधु, दुखी/सुखी, अपने/पराए में भेद कर पाना,
भूल चुके हो।
भूख ने तुम्हें
उन गुणों से ही वंचित कर दिया है
जिनके कारण
मनुष्य
अपने भाई से अधिक
हम पर विश्वास करता है।
मनुष्य जाति पर कोई बड़ा संकट आया है
रोटी की तलाश में,
जान जोखिम में डालकर,
कल मैं
श्मशान घाट तक गया था।
वहाँ का दृश्य देखकर
मेरे आंखों में आँसू आ गए
जिधर देखो उधर लाशें जल रही थीं
अपनों को जलाने के लिए
ये दो पाए, लाइन लगाए खड़े थे
वहीं मैने सुना
जो नहीं जला पाए वे
अपनो के शव
नदी किनारे मिट्टी में गाड़ कर या
गङ्गा में बहाकर चले गए।
मनुष्य अभी दुखी हैं
सभी प्राणियों की भलाई के लिए
मनुष्यों का प्रेम से रहना और सुखी होना आवश्यक है।
आओ!
मनुष्यों की भलाई के लिए
ईश्वर से प्रार्थना करें।
इनकी बातें सुनकर
मेरे मन ने प्रश्न किया...
तुम्हारी मनुष्यता कब जागेगी?
क्या ये कुत्ते
भूख से मर जाएंगे?
................
वाह।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबढ़िया ! बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने ब्लॉग में आपने। इसके लिए आपका दिल से धन्यवाद। Visit Our Blog Zee Talwara
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