आज सन्डे न होता तो स्कूल जाने वाले बच्चे अपने बस्ते का भारी बोझ पटक कर गहरी सांस लेते तब गुरुजी उन्हें बता देते कि आज बाल दिवस है।
लोहे के घर में एक बच्चा पैर छू कर भीख मांग रहा है। न उसे पता है कि आज बाल दिवस है न उसे जिसने डाँट कर भगा दिया बच्चे को!
पटरी-पटरी प्लास्टिक के टुकड़े बीन कर सीमेंट के खाली झोले में भरने वाले बच्चों को भी नहीं पता कि आज बाल दिवस है।
पानी की बोतल बेचने के लिए चलती ट्रेन से कूद कर उस पटरी पर खड़ी ट्रेन पर चढ़ने वाले बच्चे को भी नहीं पता।
मेले में जब चारों ओर दिए जल रहे थे दिए कुछ बच्चे बेच रहे होते हैं गुब्बारे! आज क्या वे मना पाएंगे बाल दिवस?
सुबह चाय की दुकान पर गिलास धो रहे बच्चे को तो पक्का नहीं पता होगा।
माँ के साथ महुए के पत्तों की गठरी सम्भाले रेल की पटरी पार करते बच्चों को भी नहीं पता।
और तो और मुझे ही कहाँ पता था? वो तो फेसबुक में पोस्ट दिखी तो याद आया कि आज बाल दिवस है!
अब याद आ गया तो ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी बच्चे अपना बचपन बच्चे की तरह ही जी पाएं।
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