पत्ते झरते हैं तो शोर नहीं होता। पत्ते उगते हैं तो शोर नहीं होता। हम चीख कर रोते हुए जन्म लेते हैं। गूंगे पैदा हुए तो भी दूसरे शोर करते हैं..लड़का हुआ है/लड़की हुई है! मरते हैं तो भी शोर होता है..राम नाम सत्य है। नहीं, मुर्दे को नहीं सुनाते। चुपचाप खुद स्वीकार भी नहीं करते, राह चलते दूसरों को सुनाते हैं..जगत मिथ्या है, राम नाम ही सत्य है! कितने तो ढोल, नगाड़े बजा कर निकालते हैं शव यात्रा। मसान से लौटने के बाद राम नहीं सिर्फ काम ही काम। हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक एक कोलाहल है। पत्ते खामोशी से उगते, जीवन भर हँसते और एक दिन चुपचाप झर जाते हैं। हम शांतिदूत की तरह पत्ते कोई शोर नहीं करते।
सच शोर नही करता है | सुन्दर|
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteअहा! सत्य दर्शन।
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