8.5.23

महाब्राह्मण

भारतीय, खासकर अपने पूर्वांचल के जाति जंजाल की बेबाकी से पड़ताल करता है महाब्राह्मण। यह इतना रोचक और उत्तेजित करने वाला उपन्यास है कि जिसे शुरू करने के बाद खतम किए बिना चैन नहीं पड़ता और खतम होने के बाद अंत हैरान कर देता है! इस पुस्तक को पढ़ने से पहले तक मैं इस जाति जंजाल से सर्वथा अपरिचित तो नहीं था, थोड़ा बहुत सुना भर था लेकिन इसके दर्द की जरा भी अनुभूति नहीं थी। 


जब आप इस उपन्यास को पढ़ना प्रारंभ करेंगे तो शुरु के पन्नों से ही यह उपन्यास आपको बुरी तरह से जकड़ लेगा। कभी आप रासलीला में मगन हो जाएंगे, कभी कामलीला में उत्तेजित हो जाएंगे और कभी महापातरों के झगड़े का हिस्सा बन उलझ जाएंगे, कभी नायक से गहरी सहानुभूति हो जाएगी, कभी उसकी सज्जनता पर क्रोध आएगा और जब उपन्यास खतम होगा तो सबसे ज्यादा गुस्सा इस उपन्यास के लेखक पर ही आएगा! यदि यह सच है तो इतना सच लिखने की क्या जरूरत थी?  


गुस्से के साथ कई प्रश्न उभरेंगे मगर किसी प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिलेगा। निराश होकर एक ही प्रश्न करेंगे कि जाने/अनजाने हमारे पूर्वजों ने जाति/उपजाति में जकड़े ऐसे समाज का निर्माण क्यों किया? हम कब तक इस जाति दंश को झेलते रहेंगे? और कब सिर्फ मनुष्य बन कर जी पाएंगे? मैं इसके लेखक, गुरूदेव श्री त्रिलोक नाथ पाण्डेय  को उनके श्रम और अनूठी कृति के लिए अभी कोई बधाई देने की स्थिति में नहीं हूं क्योंकि मैने अभी उपन्यास खतम किया है और अंत पढ़कर मैं गुस्से में हूं।


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2 comments:

  1. पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख...यह पुस्तक सूची में थी...जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी...

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  2. बहुत सुंदर

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