12.6.24

कोरोना काल (1)

कोरोना काल में हम रोज के यात्रियों का बनारस से जौनपुर जाना-आना असम्भव हो गया था। ट्रेने बंद हो चुकी थीं और बस भी कम ही चलती थी। कोरोना का इतना आतंक था कि मास्क और सेनिटाइजर के प्रयोग के बाद भी किसी कोरोना वाले के सम्पर्क में आ जाने का खतरा बना हुआ था। रोज के यात्रियों की संख्या 100 से अधिक ही थी। हर आदमी का जौनपुर में अलग-अलग फ्लैट लेकर रहना कठिन था लेकिन नौकरी तो करनी थी। न जौनपुर में इतने फ्लैट थे न सभी के लिए पूरे संसाधन जुटा कर अकेले रहना ही संभव था। परिणाम यह हुआ कि 5/7 की संख्या में अपने-अपने ग्रुप बनाकर लोगों ने जौनपुर में कमरा लेकर रहना शुरू किया।

हम पाँच मित्र(जिसमें सभी अधिकारी थे) को जल्दी ही एक महलनुमा घर की तीसरी मंजिल में एक बड़ा हॉल, एक बड़ा किचन, उचित दाम में किराए पर मिल गया। घर बहुत बड़ा था और जिस मंजिल में हम रहते थे, उसमें और दूसरा कोई परिवार न था। बरामदे में नहाओ, गलियारे में नाचो, छत में घूमो, कोई पूछने वाला न था। बिस्तर-चादर सब अपने-अपने घर से ले आए थे और किचन का सामान, बर्तन भी थोड़ा-थोड़ा सभी घर से ले आए थे। विकेंड में या किसी छुट्टी के एक दिन पहले हम मोटर साइकिल चला कर, कभी कार से जौनपुर-बनारस जाते-आते थे। कोरोना काल में उस समय हमे यह सबसे सुरक्षित लगा। मास्क, हेलमेट पहनने के बाद, सुनसान सड़क पर बाइक चलाना, संभावित कोरोना से बचने का सरल उपाय था। 

भोर में उठकर घूमने जाते, चाय पीने के बाद लौटकर बरामदे में मोटे पानी की धार से नहाते, मिलकर भोजन बनाते और ऑफिस जाते। ऑफिस से आने के बाद नहाना, चाय, तास और रोज एक पार्टी। शुक्र है कि कोरोना काल में बियर/शराब की दुकाने खुल गई थीं। सभी के घर वाले चिंतित रहते कि पता नहीं कैसे रहते होंगे, कैसे बनाते, खाते होंगे और हम रोज मौज उड़ा रहे थे जिसका ज्ञान घर वालों को न था। हमने एक बड़ी आपदा को अवसर में बदल दिया था। 

यह सब अधिक दिन नहीं चला। अति हर चीज की बुरी होती है। पार्टी सप्ताह/पंद्रह दिन में एक दिन ठीक होती है लेकिन यह रोज-रोज की पार्टी से मैं घबड़ाने लगा। मेरे पढ़ने, लिखने के शौक में यह बड़ी बाधा थी। रोज शाम को अकेले में मन कचोटता, यह क्या कर रहे हो? ऑफिस के पास एक कमरे का फ्लैट ढूंढने लगा। 2/3 महीने के भीतर ही मन मुताबिक एक फ्लैट मिल गया और मैं सबसे क्षमा मांगते हुए ग्रुप से अलग हो गया। धीरे-धीरे 'एकाकी जीवन' मुझे रास आने लगा।


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3 comments:

  1. आपदा को अवसर में बदलने की कला में बहुत से लोग माहिर हैं २०२४ चुनाव उदाहरण हैं आप भी सौभाग्यशाली हुए फिर तो :)

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  2. बहुत सुंदर

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