13.9.24

हे गणेश


वक्रतुंड महाकाय!

शक्ति दो

कर सकें सवारी

हम भी

चूहे पर।


चंचलता के प्रतीक

चूहे पर 

सवारी करना क्या सरल है?

सवारी क्या

इसे तो पकड़ना ही

कठिन है।


रोटी का लालच दे

कुछ समय के लिए

फंसा तो सकते हो

चूहेदानी में 

लेकिन कब तक?

क्या केवल

एक ही चूहा है 

घर में?

एक को पकड़ा और बाकी

सारी उम्र

ऊधम मचाते रहें!

दूसरे को फंसाने के लिए

पहले को 

छोड़ना ही पड़ेगा।


हत्या कर सकते हो

यह आसान है

जहर की पुड़िया खरीदी

आटे के घोल में मिलाया

और.. 

धोखे से खिला दिया!

क्या फिर 

नहीं आ जाते,

समाप्त हो जाते हैं

पूरी तरह?


चूहे को 

मोदक खिलाकर

खूब मोटाते हुए स्वतंत्र छोड़कर

बुद्धि से 

अपने वश में करके

उस पर 

आजीवन सवारी करना!

यह तो 

गणेश जी ही कर सकते हैं।


हे बुद्धि विनायक!

शक्ति दो

कर सकें सवारी 

हम भी

मन पर।

.........

10.9.24

कोरोना काल

कोरोना काल, सितंबर 2020 का पहला सप्ताह कठिन मानसिक यातना वाला गुजरा था। घर से दूर रहने के कारण मैं तो बच गया था, पूरा घर कोरोना पॉजिटिव हो गया था।  सभी घर में ही आइसोलेशन में थे। पूरा घर सील था। बनारस में रहकर भी मैं घर नहीं जा सकता था। घर से थोड़ी दूर एक मित्र के घर रहकर परिवार को दवा, भोजन की व्यवस्था कर रहा था। एक सप्ताह बाद सभी के हालत में सुधार दिख रहा था, लेकिन हालत गंभीर बने हुए थे। 


15 अगस्त 2020 को नाना बना था। सभी बारी-बारी से हॉस्पिटल आ/जा रहे थे। सिजेरियन ऑपरेशन था। अस्पताल में 9 दिन रुकना पड़ा था। मेरा पुत्र जो होली से 15 अगस्त तक कभी घर से बाहर नहीं निकला, वर्क फ्रॉम होम ही करता रहा, वह भी अस्पताल गया था और 2,3 दिन जग गया। वहीं, कहीं या आने-जाने में संक्रमित हो गया। पहले तो बुखार आया, दूसरे दिन सूँघने की क्षमता खतम हो गई। डॉक्टर ने तुरंत कोरोना टेस्ट की सलाह दी। 2 दिन बाद जब तक उसका रिपोर्ट आता सभी में वही लक्षण आने लगे। 


श्रीमती जी भयंकर सावधानी रखती थीं। मैं दूसरे शहर से सप्ताह में एक या दो दिन के लिए घर आता तो मुझे अलग कमरे में कोरेन्टीन कर देतीं। बाकी सब आपस मे हिले मिले रहते थे। बीच मे एक दो सप्ताह तो घर भी नहीं जाता था कि जब वहाँ जाकर कैद ही होना है तो जाने से भी क्या फायदा! परिणाम यह हुआ कि मैं बच गया और सभी संक्रमित हो गए।  


मेरा बचना भी अच्छा रहा। मैं सबकी देख-भाल कर पा रहा था। मैं भी संक्रमित हो गया होता तो कौन मदद करता? सरकारी हॉस्पिटल के ऊपर इतना बोझ था कि वहाँ सब भगवान भरोसे था। प्राइवेट हॉस्पिटल  इतने महँगे थे कि फीस पूछ कर ही हिम्मत जवाब दे जाती थी। कुछ ईश्वर की कृपा और कुछ मित्रों की दुआएँ कि धीरे-धीरे मुसीबत टल रही थी। सबसे कष्ट में 20 दिन के बच्चे को लेकर बड़ी बिटिया थी। 


यह बीमारी जो थी, सो थी, सबको पता ही है लेकिन मेरा अनुभव यह रहा कि इसमें मानसिक संतुलन भी डगमगाने लगा था। पड़ोसी दूरी बनाकर आपका हाल पूछते थे। मुसीबत में कोई साथ नहीं देता था। कुछ तो हाल पूछते भी डरते थे ...कहीं मदद लेने घर में आ गया तो? 


आपके मित्रों/रिश्तेदारों में ही कोई आपके साथ खड़ा हो सकता था। यह बीमारी बड़ी घातक थी। सब कुछ सही रहा, ईश्वर की कृपा रही, होम आइसोलेशन में ही आप स्वस्थ हो गए तो भी आपको एक कठिन मानसिक यातना से गुजरना पड़ता था। इसलिए अच्छा यह था कि शुरू से ही पूरी सावधानी बरतते हुए अपनी शारीरिक क्षमता/सहन शक्ति में वृद्धि की जाय। कोरोना हो ही न, इसी में सबकी भलाई थी। ईश्वर से रोज प्रार्थना करता कि यह कष्ट किसी को न सहना करना पड़े।


15 सितंबर तक घर सील था, उसके बाद घुसने की सोच रहा था। यह बीस दिन के नाती के साथ बिटिया की तस्वीर है, जो कई दिनों बाद सो पाई थी, तस्वीर बेटे ने अपने मोबाइल से लिया था।


2.9.24

सृजन के फूल

कल शाम स्याही प्रकाशन के सभागार में श्री नन्द लाल राजभर 'नन्दू' के काव्य संग्रह 'सृजन के फूल' का भव्य लोकार्पण समारोह मनाया गया। समारोह की अध्यक्षता जौनपुर से आए साहित्यकार श्री द्विवेदी जी एवं कुशल संचालन श्री टीकाराम जी ने किया। 

सभा को सेवा निवृत्त विकास अधिकारी श्री दयाराम विश्वकर्मा, सेवानिवृत्त लेखाधिकारी श्री एन. बी. सिंह, सेवा निवृत्त जज आदरणीय श्री चंद्रभाल सुकुमार जी, आकाशवाणी वाराणसी के श्री..... एवं पुस्तक के सम्पादक श्री छतिस द्विवेदी जी ने अपने उदबोधन से आयोजन को सदा स्मरणीय बना दिया।

इस सफल आयोजन में जनपद के कई वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे।









वीडियो का लिंक यह रहा...

https://youtu.be/TzEF2lXsjyI?si=3Q2nASElTnxOCwBG