19.9.24

हे भगवान! तेरे कैसे-कैसे नाम!!!(2)

 'खाकी कुटि हनुमान मन्दिर' 

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कपिल धारा, ग्राम कोटवा से राजघाट की ओर बढ़ें तो आगे रास्ते में 'निशात राज द्वार' दिखाई देता है। इस द्वार से लगभग 20-30 मीटर आगे बाईं (लेफ्ट) ओर मुड़े तो लगभग 500 मीटर पर हनुमान जी का एक मन्दिर है जिसका नाम है.. खाकी कुटि।

कुछ दिन पहले पीर बाबा की पुलिया पर स्थानीय निवासी श्री राम गोपाल जी ने इस मन्दिर के बारे में बताया था। आज नमो घाट से लौटते समय मन बना कर चला कि आज तो दर्शन करना ही है। एक राह चलते आदमी से रास्ता पूछा तो उसने सराय मोहाना के सामने से एक पगडंडी वाला रास्ता दिखाते हुए बोला, "आ गयल हउआ! बस सामने लउकत हौ!" साइकिल वहीं ताला मारकर पैदल ही आगे बढ़ा तो रास्ता बहुत कठिन। जब आगे बढ़ना असम्भव दिखा तो भगवान से क्षमा मांगते हुए लौट आया। साइकिल लेकर लौटने लगा तो एक ग्रामीण महिला ने रोककर पूछा, "एहर कहाँ गयल रहला?" हमने जब बताया तो हँसकर बोली, "के तोहें उहाँ भेज देहलस! आगे पक्का रास्ता हौ, तोहार साइकिल आराम चल जाई।" महिला की बात से हिम्मत आई और फिर 'जय हनुमान जी' बोलता आगे बढ़ा और एक दूसरे आदमी के सहयोग से साइकिल चलाते हुए आराम से पहुँच गया। 

वहाँ जब स्थानीय लोगों, पुजारी जी से बात किया तो जाना यह मन्दिर सैकड़ों वर्ष पुराना है। जिसे मैं 'खाखी खुखी' बोल रहा था वह 'खाकी कुटि' है। रोचक जानकारी यह मिली की इस मन्दिर का निर्माण 'खाखी बाबा' ने किया था। वे केवल खाक (राख) खाकर जीवन यापन करते थे इसलिए लोग उन्हें खाखी बाबा कहते थे। उन्होंने इसी स्थान पर हनुमान मन्दिर बनाया इसलिए यह स्थान 'खाखी कुटि हनुमान जी' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

कालांतर में एक नेपाली बाबा भिक्षा मांगते हुए आए और यहीं रहने लगे। उन्होने भिक्षा मांगकर मन्दिर का सिलाब ढलवाया और मन्दिर को बढ़िया बनवाया! यह अचरज की बात है। क्या जमाना था! भिक्षा मांगते हुए आए और भिक्षा मांगकर दूसरे देश में जाकर मन्दिर को बढ़िया बनवा दिया! उनकी बात सुनकर महामना की याद हो आई... उन्होने तो भिक्षा मांगकर पूरा विश्वविद्यालय ही बना दिया था! हमें गर्व करना चाहिए कि हमारे पूर्वज अपने लिए नहीं, अपने समाज के लिए जीते थे। जय 'खाखी कुटि हनुमान जी' की।🙏

यू ट्यूब लिंक...

https://youtu.be/FTfAGlnOHNU?si=XAkDidfxietffKjm 

1 comment:

  1. खबर में कहीं नहीं आते ? बेचारे भगवान जी

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