चाँद
अभी डूबा नहीं
हल्का पियरा गया
है
सूर्य
अभी निकला नहीं
चमक की धमक है
जारी है
घने वृक्षों की
ऊँची-ऊँची फुनगियों से निकल
इत-उत भागते
पंछियों का कलरव
पवन
शीतल नहीं है
फिजाओं में
गर्मी है, उमस है
मधुबन से आगे
स्वतंत्रता भवन
से आगे
वीटी तक के सफर
में
दिखते हैं कई
चेहरे
रोगी भी
डाक्टर भी
विद्यार्थी भी
मास्टर भी
कर्मचारी भी
अधिकारी भी
सभी हैं
मार्निंग वॉक पर
लेकिन सबकी चाल में
फर्क है
उनकी तेज है
जिनके जिस्म
हलके हैं
उनकी धीमी
जो भारी हैं
पंछियों की
प्यास से बेखबर
कलरव से खुश हैं
सभी
.
चीख रहे हैं
बड़े पंछी
चहक रहे हैं
छोटे
मौन, गंभीर हैं
घने वृक्ष
हंसते दिखते हैं
पीपल
ऐसा लगता है
जानते हैं सभी
भारी होकर जीने
से अच्छा है
हलके होकर रहना
हलके होने में
चलते रहने
चहकते रहने
हंसते रहने की
अधिक संभावना
है।
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