14.9.11

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मार्निंग वॉक




चाँद
अभी डूबा नहीं
हल्का पियरा गया है
सूर्य
अभी निकला नहीं
चमक की धमक है
जारी है
घने वृक्षों की ऊँची-ऊँची फुनगियों से निकल
इत-उत भागते
पंछियों का कलरव

पवन
शीतल नहीं है
फिजाओं में गर्मी है, उमस है

मधुबन से आगे
स्वतंत्रता भवन से आगे
वीटी तक के सफर में
दिखते हैं कई चेहरे
रोगी भी
डाक्टर भी
विद्यार्थी भी
मास्टर भी
कर्मचारी भी
अधिकारी भी

सभी हैं मार्निंग वॉक पर
लेकिन सबकी चाल में फर्क है
उनकी तेज है
जिनके जिस्म हलके हैं
उनकी धीमी
जो भारी हैं

पंछियों की प्यास से बेखबर
कलरव से खुश हैं
सभी
 .
चीख रहे हैं
बड़े पंछी
चहक रहे हैं
छोटे

मौन, गंभीर हैं
घने वृक्ष
हंसते दिखते हैं
पीपल

ऐसा लगता है 
जानते हैं सभी
भारी होकर जीने से अच्छा है
हलके होकर रहना

हलके होने में
चलते रहने
चहकते रहने
हंसते रहने की
अधिक संभावना है।

 ........................................

40 comments:

  1. सुबहे बनारस की ऐसे ही शेड्स दिखाते रहिये ..
    भूले भटके ही सही ब्लॉग पर मेरे आते रहिये

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  2. बनारस भी अर्धसत्य से सुशोभित हो रहा है।

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  3. बहुत बढि़या ।

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  4. ऐसा लगता है
    जानते हैं सभी
    भारी होकर जीने से अच्छा है
    हलके होकर रहना
    badhiyaa

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  5. पांडे जी!
    पेंटिंग है यह तो.. कविता मानने को तैयार नहीं मैं!!

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  6. केनवास पे जैसे कोई चित्र उतार दिया हो ... बनारस देखा तो नहीं पर अब कल्पना करने लगा हूँ ...

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  7. देव बाबू लगता है सुबह की सैर शुरू कर दी है.........मनोरम वर्णन किया है.......ये बात तो सही है हलके होने में ही ख़ुशी अधिक है........चाहे बदन से हल्का हो या मन से हल्का हो........ हाँ जुबान या चरित्र से हल्का नहीं होना चाहिए :-)

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  8. वंदना गुप्ता जी की तरफ से सूचना

    आज 14- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
    ____________________________________

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  9. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
    बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।।
    --
    हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  10. सच में, घर हो आया मैं :)

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  11. बनारस जैसे फिर से हमारे सामने प्रस्तुत हो गया हो /////

    इशारों से बहुत कुछ कह डाला आपने.....
    अच्छी रचना....!!!

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  12. वाह वाह पाण्डे जी ! कितना कम हुआ ?
    सुप्रभात का मनोरम चित्रण ।

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  13. नितान्त अलग भावभूमि पर सुन्दर कविता के लिए बधाई...

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  14. देवेन्द्र जी आपने तो सभी को बनारस की मोर्निंग वाक करवा दी. सुंदर रचना.

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  15. हूँ....तो बेचैन आत्मा आजकल मार्निग वाक द्वारा सेहत बना रही है ......
    :))

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  16. शब्द-चित्र मनमोहक है।

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  17. बहुत खूब कहा है आपने ...।

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  18. ऐसा लगता है,
    जानते हैं सभी
    भारी होकर जीने से अच्छा है
    हल्के होकर रेहना।
    वाहा बहुत बढ़िया....
    कभी समय मिले तो आएगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  19. सुन्दर दृश्य -भाव चित्र !

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  20. बनारस की यादे ताज़ा हो गयी

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  21. कविता पढ़ते हुए लगा कि उसके साथ-साथ हम भी चल रहे हैं,यही प्रवाह कविता की सुन्दरता होती है !
    ग़नीमत हैं कि हम हल्के हैं पर ऐसी कविता पढ़कर हमें और हल्का करना चाहते हैं क्या ?
    वैसे आपकी कविता वज़नी है !!

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  22. अति सुन्दर
    चित्रकाव्य का उम्दा उदाहरण

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  23. बहुत ही सुंदरतम.

    रामराम.

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  24. बहुत आनंद आया पढकर.बड़े इत्मीनान से,गहिराई से अवलोकन करने के बाद का वर्णन है ये.सवेरे का लुत्फ़ उठाते रहिये और वर्णन भी करते रहिये.कुछ दिनों बाद हवा भी गुलाबी ठंडक लेके बहना शुरू करेगी.
    हलका होने में बहुत मजा है,मगर खाने में जो मजा है,उसके चलते लोग भारी हो जाते हैं और बहुत सारे लुत्फों से बेगाने हो जाते हैं.

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  25. हलके होने में
    चलते रहने
    चहकते रहने
    हंसते रहने की
    अधिक संभावना है।

    यही तो हम कहते हैं लेकिन आपकी तरह कायदे से नहीं कहते। :)

    बी.एच.यू. के किस्से याद आ गये। धनराजगिरि और राजपूताना छात्रावास के बीच दो साल गुजारे हैं अपन ने भी। :)

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  26. गलती से पोस्ट दुबारा प्रकाशित हो गई जिसे तत्काल मिटा दिया। असुविधा के लिए खेद है।

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  27. सलिल भैया....

    हिंदी दिवस के दिन मार्निंग वॉक से लौटा तो कुछ लिखने का मन हुआ। सोचा आज जो अनुभव हुआ उसी को लिखा जाय। पीपल के वृक्ष ने अधिक प्रभावित किया। इसके पत्ते हल्के होते हैं । यही कारण है कि जब थोड़ी भी हवा चलती है तो हिलने लगते हैं। अन्य घने वृक्षों से इतर, हंसते से प्रतीत होते हैं। लिखने के बाद लेबल कविता का लगा दिया। वास्तव में जो लिखा गया है वह क्या है, इसका निर्धारण तो पाठक ही बेहतर कर सकते हैं। लेबल लगाने का अधिकार भी उन्हीं को होना चाहिए। अन्य टिप्पणियों से भी आपकी बात सही सिद्ध होती है। मार्ग दर्शन के लिए आभार।

    इमरान भाई.....

    आपने सही लिखा। चाहे बदन से हल्का हो या मन से हल्का हो...हाँ जुबान या चरित्र से हल्का नहीं होना चाहिए। वैसे भारी होने का एक अर्थ हम यह भी समझते हैं...घमंड से या दुखी होकर गंभीर बने रहना। हम काशिका में कहते हैं...काहे भारी टिकल हउआ मर्दवा, कुछ बोलता काहे नाहीं?

    अनूप शुक्ल....

    आपका कायदा अधिक सही है। सीधे दिल में उतर जाता है!

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  28. मॉर्निंग वाक् का दृश्य प्रस्तुत कर दिया ..अच्छी अभिव्यक्ति

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  29. हलके होने में
    चलते रहने
    चहकते रहने
    हंसते रहने की
    अधिक संभावना है।
    ...अच्छी अभिव्यक्ति

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  30. आपने तो सभी को बनारस की मोर्निंग वाक करवा दी| धन्यवाद|

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  31. हलके होने में
    चलते रहने
    चहकते रहने
    हंसते रहने की
    अधिक संभावना है।

    बहुत सुन्दर शब्दचित्र...

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  32. I had my medical education from the beautiful city Varanasi. Million fond memories of Singh-dwar,Gudaulia, Kabirchaura, Saarnaath , dashaswamegh are still alive in my memory. Your post made me nostalgic. thanks.

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  33. सुन्दर कविता के लिए बधाई..

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  34. आपके साथ साथ मुझे भी BHU के मौर्निंग वाक की याद आ गई. आभार.

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  35. kavita kaa jawaab kavita sae achcha lagaa

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  36. खेद के साथ कहना चाहते हैं
    कि आप जो भी लिखे हैं बढ़िया लिखे हैं ................पीपल के पेड़ हमने भी देखे हैं कई बार ,अच्छे भी लगे पर उनके पत्ते हलके होते हैं और सहज ही हवा का साथ पा कर खिलने लगते हैं ,चहकने लगते हैं ये तरीका तो सिर्फ कुछ ख़ास नुमाइंदों को पता होता है ,और ऊपर वाले के एक ख़ास नुमाइंदों में से एक आप भी हैं ...................:):):):):)
    अरे खेद वाली बात ............देर से आने का खेद है :):):):)

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