11.10.10

लैपटॉप



            आज लैपटॉपआया तो मन हुआ, देखूं कि कैसे इन पर उंगलियाँ चलती हैं ! कठिन लग रहा है ..शब्द भाग रहे हैं। कभी इधर तो कभी उधर। सोच रहा हूँ कि सुविधा के चक्कर में नया झमेला तो नहीं मोल ले लिया सर पर !  कितने संवेदनशील हैं इसके बटन ! जरा सा छुओ तो काम चालू ! घंटे भर में लिखो और चुटकी  मे गोल ! फिर सोचता हूँ, सभी तो लिखते हैं इस पर ! फिर मैं क्यों नहीं लिख सकता..! हाँ, अब कुछ मान रहीं हैं कहना मेरा मेरी उंगलियाँ...जो चाहता हूँ वही लिख रही हैं। हैं ! ये क्या खुल गया अचानक से ! कैसिंल करना पड़ेगा। उंगलियाँ चलाऊँ..चूहा नहीं है। उंगलियों को ही चूहा बनाना पड़ेगा..ये करसर क्यों भाग रहा है ? अरे ! सब गायब ! हाय राम ! इतनी देर से लिखा सब बेकार...! बेटा.s.s. अब क्या करूँ..? सब गायब हो गया.s.s.! सी.टी.आर.एल. प्लस जेड दबाइए पापा..s..s आ जाएगा। ओह, यह तो हमे भी पता था क्या बेवकूफों की तरह पूछने लगता हूँ...!  अरे वाह ! सब आ गया..! उंह कौन सा न आता तो मेरा बड़ा भारी नुकसान होता..! कौन सी बढ़िया बात लिख दी थी मैने ! काम चलाऊ लिख ले रहा हूँ। अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। जीवन में कितना कुछ है सीखने के लिए ! उम्र कितनी कम ! कैसे तो लोग समय बर्बाद करते हैं ! कैसे तो लोग इक दूजे से झगड़ते रहते हैं..! क्या यह भी समय बर्बाद करना नहीं..! मुर्ख, मुर्खता में और बुद्धिमान, बुद्धिमानी में ! वह बुद्धि किस काम की जो किसी काम न आ सके..! जिससे किसी का भला न हो ! लिखने और करने में कितना फर्क है ! कवि जितना लिखता है उतना करता क्यों नहीं ! नहीं करता तो फिर क्यों लिखता है ? दूसरे करें..! दूसरे सुधरें..! जग सुधरेगा पर हम नहीं सुधरेंगे..! मंच पर किस कुशलता से समाज सुधार, कुरीतियों पर कटु प्रभार करते हुए मानवता की शिक्षा देंगे ! मंच से नीचे नीचे उतरते ही, मिलने वाले लिफाफे के लिए एक दूसरे से हाथापाई तक की नौबत ! लोभ, मोह, क्रोधसभी का एक साथ निर्लज्ज प्रदर्शन ! वाह रे उपदेशक ! अभी उस कवि सम्मेलन की  बात है, अपने मधुर गीत से मंच की वाह वाही लूटने वाले गीतकार महोदय, कितनी क्रूरता से  शेष न आए साथी कवि का लिफाफा भी झटकने के लिए आयोजक से उलझ रहे थे ! हास्य रस के कवि कितना क्रोध कर रहे थे ! कह रहे थे, मैं न आता तो तुम सब का करूण क्रंदन सुन, श्रोता श्मशान सिधार गए होते ! आधे माल पर तो मेरा ही हक बनता है। वीर-रस के देश भक्त कवि, देश भक्ति छोड़ कितना घिघिया रहे थे संचालक से ! मेरी पत्नी मेरी बाट जोह रही है, मैं वीरता पूर्वक यहां आपके बुलावे पर आ गया..! ऐसा ना कीजिए..! सोचिए जरा..हास्य रस वाले से कुछ कम ताली नहीं बजी थी मेरी कविता पर !” इक-इक ताली के दाम मांगे जा रहे थे..! अरे, मैं कहाँ भटक गया ! दरअसल कुछ चलने लगी हैं उंगलियाँ लैपटॉप पर। बैठकर लिखना कठिन हो गया था लगता है कुछ बात बन रही है। आज इतना ही अभ्यास काफी है। रात के 12 बज रहे हैं। शनीवार है तो क्या हुआ ! कल सुबह मार्निंग वॉक पर नहीं गया तो डार्लिंग ताने देगी...! बस हो गई आपकी घुमाई ? अब क्या पूछना है ! अब तो लैबटॉप भी कीन लिए ! करते रहिए ब्लॉगिंग रात-रात भर..! अरे ! ई का, वो अभीये आ रही हैं ! जाने कैसे जाग गईं ! भगवान भी चैन की नींद देना भूल गए का.. ई पति भक्त पत्नियों को। बस रात-दिन पतियों की चिंता में घुली जाती हैं ! अरे बंद करो रे.s.s..शुभ रात्रि।

4.10.10

अयोध्या फैसले के बाद.....

तीन चींटियाँ


तीन चीटिंयाँ
एक सीधी रेखा में चल रही थीं
सुनिए
आपस में क्या कह रही थीं....!

सबसे आगे वाली ने गर्व से कहा...
वाह !
मैं सबसे आगे हूँ
मेरे पीछे दो चींटियाँ चल रही हैं !

सबसे पीछे वाली ने दुःखी होकर कहा.....
हाय !
मैं सबसे पीछे हूँ
मेरे आगे दो चींटियाँ चल रही हैं !

बीच वाली से रहा न गया
उसने गंभीरता से कहा...
मेरे आगे भी दो चींटियाँ चल रही हैं !
मेरे पीछे भी दो चींटियाँ चल रही हैं !

उसकी बातें सुनकर
आगे-पीछे वाली दोनो चींटियाँ हँसने लगीं..
मूर्ख !
क्या कहती है ?
तू तो सरासर झूठ बोलती है !

बीच वाली ने उत्तर दिया...
मुर्ख मैं नहीं, तुम दोनो हो !
जो आगे पीछे के लिए
आपस में झगड़ रही हो !

यह छोटे मुंह बड़ी बोल है
शायद तुम्हें पता नहीं
पृथ्वी गोल है ।

यहाँ हर कोई उतना ही आगे है
जितना पीछे है
उतना ही पीछे है
जितना आगे है
या यूँ कहो कि
हर कोई आगे ही आगे है
या हर कोई पीछे ही पीछे है
या फिर यह समझो
कि कोई आगे नहीं है
कोई पीछे नहीं है
सभी वहीं हैं
जहाँ उन्हें होना चाहिए !

यह आगे-पीछे का झगड़ा
मनुष्यों पर छोड़ दो
हम श्रमजीवी हैं
हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।

2.10.10

सबसे अच्छे बापू...!


बापू
मैं जब भी आपकी तश्वीरें देखता हूँ
आप मुझे उतने अच्छे नहीं लगते वकील के कोट में
जितने अच्छे लगते हैं
धोती या लंगोट में !

दिल की बात सच-सच कह दूँ बापू !
आप सबसे अच्छे लगते हैं
पाँच-दस नहीं,
सौ-पचास भी नहीं,
पाँच सौ भी,
जब आते हैं....
हजार रूपए के नोट में !  

1.10.10

जै राम जी की।


        अयोध्या प्रकरण पर माननीय उच्च न्यायालय के फैसले का हम स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि यह फैसला मुल्क की तरक्की के राह में मील का पत्थर बनेगा। लम्बे समय से चले आ रहे विवाद को समाप्त करने और भाई चारे की नई शुरूवात करने का यह सुनहरा अवसर है, हमें इसे व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए। आजकल आनंद की यादें में इतना डूबा हुआ हूँ कि नई कविता का सृजन नहीं हो पा रहा है। अब अयोध्या पर आए इस फैसले ने तो यादों के सभी तार एक ही झटके में झनझना दिए हैं। सुर-ताल गुम है।
            बाबा का दरबार कल सूना था। इतना सूना कि इसके पहले कभी नहीं देखा गया। सभी शिव भक्त राम की तलाश में गुम थे। भोले बाबा ने नंदी से पूछा, का रे बैल ! आज सब कहाँ हैं ? नंदी खुर पटक के बोले, हम हूँ जा रहे हैं..! सुना है भगवान राम का मंदिर बने वाला है !”

जै राम जी की ।         

13.9.10

आग



नदी के किनारे
'और' आग तलाशते 
एक युवक से
बुझी हुई राख ने कहा-
हाँ !
बचपन से लेकर जवानी तक
मेरे भीतर भी 
यही आग थी
जो आज 
तुम्हारे पास है।
बचपन में यह आग
दिए की लौ के समान थी
जो 'इन्कलाब जिंदाबाद' के नारे को
'तीन क्लास जिंदाबाद' कहता था
और समझता था
कि आ जाएगी एक दिन 'क्रांति'
बन जाएगी अपनी
टपकती छत !

किशोरावस्था में यह आग और तेज हुई
जब खेलता था क्रिकेट 
शहर की गलियों में
तो मन करता था
लगाऊँ एक जोर का छक्का
कि चूर-चूर हो जाएँ
इन ऊँची-ऊँची मिनारों के शीशे
जो नहीं बना सकते
हमारे लिए
खेल का मैदान !

युवावस्था में कदम रखते ही
पूरी तरह भड़क चुकी थी 
यह आग
मन करता था
नोंच लूँ उस वकील का कोट
जिसने मुझे
पिता की मृत्यु पर
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के लिए
सात महिने
कचहरी का चक्कर लगवाया !

तालाब के किनारे 
मछलियों को चारा खिलाते वक्त
अकेले में सोंचता था
कि बना सकती हैं ठहरे पानी में
अनगिन लहरियाँ
आंटे की एक छोटी गोली
तो मैं क्यों नहीं ला सकता
व्यवस्था की इस नदी में 
उफान !

मन करता था
कि सूरज को मुठ्ठी में खींचकर
दे मारूँ अँधेरे के मुँह पर
ले !
चख ले धूप !
कब तक जुगनुओं के सहारे
काटेगा अपनी रातें !

हाँ 
यही आग थी मेरे भीतर भी
जो आज
तुम्हारे पास है।

नहीं जानता
कि कब
किस घाट पर
पैर फिसला
और डूबता ही चला गया मै भी।

जब तक जिंदा रहा
मेरे गिरने पर
खुश होते रहे
मेरे अपने
जब मर गया
तो फूँककर चल दिए
यह बताते हुए कि
राम नाम सत्य है।


(हिंद-युग्म में प्रकाशित)

11.9.10

ईद मुबारक।

गगन में ईद का, घर में
तीज का चाँद निकला है
आज भारत में घूम कर देखो
हर तरफ चाँद निकला है
...ईद मुबारक।

5.9.10

जंगल राज में शिक्षा व्यवस्था

        
              आज शिक्षक दिवस है। हमारे देश-प्रदेश में शिक्षा के प्रति सभी खूब जागरूक हैं। जहाँ शिक्षक पूरी निष्ठा एवं लगन से विद्यार्थियों को शिक्षित करने में लगे हैं वहीं विद्यार्थी भी तन-मन से अध्ययनरत हैं। शासकीय एवं प्रशासनिक स्तर पर भी शिक्षा के क्षेत्र में खूब ईमानदारी देखने को मिलती है। अधिकारी-कर्मचारी मनोयोग से  रात-दिन मेहनत कर रहे हैं। परिणाम भी आप सभी के सामने है लेकिन अचानक से मेरे दिमाग में एक खयाल आया कि इन दो पायों से इतर, जरा जंगल में घूमा जाय और वहाँ कि शिक्षा-व्यवस्था पर ध्यान दिया जाय ! मैने कल्पना किया कि यदि जंगल राज हो तो वहाँ की शिक्षा व्यवस्था कैसी होगी। इन्हीं सब कल्पनाओं पर आधारित, प्रस्तुत है एक व्यंग्य रचना  जिसका शिर्षक है....

जंगल राज में शिक्षा व्यवस्था 

कीचड़ में फूल खिला
जंगल में स्कूल खुला
चिडि़यों ने किया प्रचार
आज का ताजा समाचार
हम दो पायों से क्या कम !
स्कूल चलें हम, स्कूल चलें हम।

धीरे-धीरे सभी स्कूल जाने लगे
जानवरों में भी 
दो पायों के अवगुन आने लगे !

हंसों ने माथा पटक लिया
जब लोमड़ी की सलाह पर
भेड़िए ने
प्रबंधक का पद झटक लिया !

जंगल के राजा शेर ने
एक दिन स्कूल का मुआयना किया
भेड़िए ने
अपनी बुद्धि-विवेक  के अनुसार
राजा को 
सभी का परिचय दिया.....

आप खरगोशों को ऊँची कूद
घोड़ों को लम्बी कूद
चीटियों को कदमताल कराते हैं
नींद अज़गरी
रूआब अफ़सरी
परीक्षा में बाजीगरी दिखाते हैं
आप हमारे 
प्रधानाचार्य कहलाते हैं !

भेड़िया आगे बढ़ा...

आपका बड़ा मान है, सम्मान है
आपका विषय गणित और विज्ञान है
आप स्कूल से ज्यादा घर में व्यस्त रहते हैं
क्योंकि घर में आपकी
कोचिंग की दुकान है !

शेर अध्यापकों से मिलकर बड़ा प्रसन्न था
वहीं एक कौए को देखकर पूछा-
इनका यहाँ क्या काम ?
भेड़िए ने परिचय दिया....
आप हमारे संगीत अध्यापक हैं श्री मान !
इनकी बोली भले ही कर्कश हो
आधुनिक संगीत में बड़ी मांग है
इन्होने जिस सांग का सृजन किया है
उसका नाम 'पॉप सांग' है !

शेर ने कोने में खड़े एक अध्यापक को दिखाकर पूछा-
ये सबसे दुःखी अध्यापक कौन हैं ?
जबसे खड़े हैं तब से मौन हैं !

भेड़िए ने परिचय दिया....

ये हिन्दी के अध्यापक हैं
कोई इनकी कक्षा में नहीं जाता
हिन्दी क्यों जरूरी है
यह भेड़िए की समझ में नहीं आता !

शेर ने पूछा...
वे प्रथम पंक्ति में बैठे बगुले भगत यहाँ क्या करते हैं ?
मैने देखा, सभी इनसे डरते हैं !
भेड़िए ने कहा.....
इनसे तो हम भी डरते हैं !
ये बड़े कलाकारी हैं
आपके द्वारा नियुक्त
शिक्षा अधिकारी हैं !

शेर ने कहा-
अरे, नहीं S S S..
ये बड़े निरीह प्राणी होते हैं
इनसे डरने की जरूरत नहीं है
तुम्हारे सर पर हमारा हाथ है
तुमसे टकरा सकें
इतनी इनकी जुर्रत नहीं है।

परिचय के बाद
दावत का पूरा इंतजाम था
शेर को 'ताजे मेमने' का गोश्त व 'बकरियाँ' इतनी पसंद आईं
कि उसने भेड़िए को
गले से लगा लिया
बगुलों को ईमानदारी से काम करने की नसीहत दी
स्कूल में चार-चाँद लगाने का आश्वासन दिया
और पुनः आने का वादा कर चला गया।

जाते-जाते
रास्ते भर सोचता रहा...
तभी कहूँ
ये दो  पाए
स्कूल खोलने पर
इतना जोर क्यों देते हैं !