तीन चीटिंयाँ
एक सीधी रेखा में चल रही थीं
सुनिए
आपस में क्या कह रही थीं....!
सबसे आगे वाली ने गर्व से कहा...
वाह !
मैं सबसे आगे हूँ
मेरे पीछे दो चींटियाँ चल रही हैं !
सबसे पीछे वाली ने दुःखी होकर कहा.....
हाय !
मैं सबसे पीछे हूँ
मेरे आगे दो चींटियाँ चल रही हैं !
बीच वाली से रहा न गया
उसने गंभीरता से कहा...
मेरे आगे भी दो चींटियाँ चल रही हैं !
मेरे पीछे भी दो चींटियाँ चल रही हैं !
उसकी बातें सुनकर
आगे-पीछे वाली दोनो चींटियाँ हँसने लगीं..
मूर्ख !
क्या कहती है ?
तू तो सरासर झूठ बोलती है !
बीच वाली ने उत्तर दिया...
मुर्ख मैं नहीं, तुम दोनो हो !
जो आगे पीछे के लिए
आपस में झगड़ रही हो !
यह छोटे मुंह बड़ी बोल है
शायद तुम्हें पता नहीं
पृथ्वी गोल है ।
यहाँ हर कोई उतना ही आगे है
जितना पीछे है
उतना ही पीछे है
जितना आगे है
या यूँ कहो कि
हर कोई आगे ही आगे है
या हर कोई पीछे ही पीछे है
या फिर यह समझो
कि कोई आगे नहीं है
कोई पीछे नहीं है
सभी वहीं हैं
जहाँ उन्हें होना चाहिए !
यह आगे-पीछे का झगड़ा
मनुष्यों पर छोड़ दो
हम श्रमजीवी हैं
हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।
वाह ...बहुत अच्छी सीख दी चींटियों ने
ReplyDeleteशायद तुम्हें पता नहीं
पृथ्वी गोल है ।
यहाँ हर कोई उतना ही आगे है
जितना पीछे है
उतना ही पीछे है
जितना आगे है..
एक सही सन्देश देती पोस्ट
यह आगे-पीछे का झगड़ा
ReplyDeleteमनुष्यों पर छोड़ दो
हम श्रमजीवी हैं
हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।
Bahut achhe tareeqese apni baat kahi hai! Wah!
सच है, उनका झगड़ा हमने आयात कर लिया। संवेदनशील कविता।
ReplyDeleteवाह चीटियों के ज़रिये बहुत खूबसूरत सन्देश और रचना भी बहुत प्यारी.
ReplyDeleteग़ज़ब की थ्यौरी है...ज़बरदस्त नज़र... बेहतरीन संदेश!!देवेंद्र जी, दिल ख़ुश कर दिया..
ReplyDeleteचींटियों के बहाने बहुत अच्छी बात कही है आपने.
ReplyDeleteकाश इन नन्ही चींटियों से ही इंसान कुछ सीख लेता.
ReplyDeleteबहुत अच्छी सीख दी हैं आपने.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
देवेंद्र जी, चीटियों से पहले ही बहुत कुछ सीखा है हमने आज एक पाठ और सिखला दिया आपने. अयोध्या फैसले के बाद कई लोगों के विचार यहाँ देखने सुनने को मिले. पर यह अद्वितिय है!
ReplyDeleteवाह जी वाह ........इस छोटी सी कविता में सब कह दिया |
ReplyDeleteयहाँ हर कोई उतना ही आगे है
ReplyDeleteजितना पीछे है
उतना ही पीछे है
जितना आगे है
वाह चीँटिओं के माध्यम से सुन्दर सन्देश्। कृ्प्या यहाँ भी देखें।
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
विचारोत्तेजक / संदेशपरक पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteयहाँ हर कोई उतना ही आगे है
ReplyDeleteजितना पीछे है
उतना ही पीछे है
जितना आगे है
...vah....vichrotejak rachna.
बहुत खूब ... गहरा संदेश छिपा है इन चीटियों के वार्तालाप में .... सच कहा ... इंसान ही जड़ है बहुत सी बातों की ...
ReplyDeletebhaut hipate ki baat kahi hai aapne.
ReplyDeletepoonam
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद
ReplyDeleteबेचारा आइना तो कुछ कहता नहीं है। सब अपना चेहरा उसमें देखते हैं और सोचते हैं यह आइना बता रहा है।
ReplyDeleteआपकी कविता में से अगर अयोध्या शीर्षक हटा दिया जाए तो पूरा दृश्य ही बदल जाता है। अभी केवल उस एक पंक्ति की वजह से लोगों के मन में जो है वे उसे कविता में देख रहे हैं।
वैसे मैं स्वतंत्र रूप से कहूं तो चींटियों का संवाद महत्वपूर्ण है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी
ReplyDeleteनमस्कार !
आगे-पीछे का झगड़ा
मनुष्यों पर छोड़ दो
कहां कहां तारीफ़ होती रहेगी मनुष्य की ?
… और नादान को एहसास भी नहीं , हो रही जगहंसाई का !!
अच्छी कविता ! अच्छा संदेश !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया .........मन का ही तो सब झगड़ा है .....मन के मत पे मत चलियो ये जीते जी मरवा देगा|
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, अच्छी शिक्षा है...
ReplyDeleteहमारा तो मानना है-
फ़ैसले के बाद
ठहरे नहीं रहेंगे सदा एक मोड़ पर
रस्ता नया खुला है संभलकर चलेंगे हम
जो फ़ैसला दिया है, अदालत ने, ठीक है
इस फ़ैसले की मिलके हिफ़ाज़त करेंगे हम
-शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
अच्छा रहा चींटी महात्मा का प्रवचन!
ReplyDeleteDevendra ji
ReplyDeleteacchi rachna ki apne...
उत्तम कविता के माध्यम से बहुत अच्छा संदेश दिया है आपने...बधाई।
ReplyDeleteचीटियों की यह कथा है तो बहुत पुरानी लेकिन आपने इसे क्या खूब आज के सन्दर्भ मे प्रस्तुत किया है ।
ReplyDeleteबिल्कुल सार्थक बात...आगे-पीछे की बात तो बस विवाद और घमंड दर्शाता है...सब बराबर है...बढ़िया आलेख ..बधाई देवेन्द्र जी
ReplyDeletebilkul sahi baat kahati rachana.... hame kuch seekhane ki zaroorat hai...
ReplyDeleteयह आगे-पीछे का झगड़ा
ReplyDeleteमनुष्यों पर छोड़ दो
हम श्रमजीवी हैं
हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।
कविता का यह अंश अपने आप में पूर्ण होने का उद्घोष करता है......चींटियों के माध्यम से अपनी बात प्रभावशाली तरीके से कहने का आभार.
यह आगे-पीछे का झगड़ा
ReplyDeleteमनुष्यों पर छोड़ दो
हम श्रमजीवी हैं
हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।
Wah chintiyun ke madhyam se apne vyanjaja shabad shakti ke madhyam se insaan ko samjahane ka khub prayas kiya hai......1
Sunder Prastuti
bahut sundar..
ReplyDeleteयह आगे-पीछे का झगड़ा
ReplyDeleteमनुष्यों पर छोड़ दो
हम श्रमजीवी हैं.....!!!!!!!!!!!!!!
चींटियों ने भी क्या वाट लगाई है आदमी की...क्या क्या कहने के बाद कामचोर भी कह डाला...
:)
यह आगे-पीछे का झगड़ा
ReplyDeleteमनुष्यों पर छोड़ दो
हम श्रमजीवी हैं
हमें आपस में नहीं झगड़ना चाहिए।
गजब आपकी कई kavitayen पढी नि:संदेह एक से बेहतर एक
लेकिन इसने नि:शब्द कर दिया ...कितनी गहरी बात आपने इतने सरल और एक नए ही अंदाज में कह दी
दाद हाज़िर है क़ुबूल करें
बहुत बहुत सही.....वाह !!!
ReplyDeletebahut khoob........
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी , अभी आपको पढ़ रही हूँ . अच्छा लग रहा है . रोचक ,मजेदार , सन्देश परक ........ है आपकी सभी रचनाएँ . देर से आई हूँ . पर वही आनंद ले रही हूँ . आपको शुभकामनायें .........
ReplyDeleteचीटीयों से,मधुमखियों से और और बहुत से जीवों से आदमी को बहुत कुछ सीखना है.
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