11.10.09

वज़न


बचपन में 'कागज की नाव'
लड़कपन में 'तास के महल'
ज़वानी में 'बालू के घर'
हमने भी बनाए हैं
इनके डूबने, गिरने, या ढह जाने का दर्द
हमें भी हुआ है
राह चलते ठोकरें हमने भी खाई हैं
मगर नहीं आया
कभी कोई 'शक्तिमान'
मेरी पीठ थपथपाने
लोगों ने उड़ाया है मेरा भी मजाक
मगर नहीं आया कभी
किसी दूसरे ग्रह का प्राणी
करने मुझ पर 'जादू'
मेरे घर में भी बहुत सी मकड़ियाँ हैं
मगर नहीं काटा मुझे
कभी किसी मकड़ी ने
नहीं बनाया मुझे
'स्पाइडर मैन'

और अब मैं जान गया हूँजीवन
दूसरों की शक्तियों के सहारे नहीं चलता।


हम
जितने हल्के होते जाएंगे
उतने बिखरते चले जाएंगे

धरती पर टिक रहने के लिए जरूरी है
वज़नी होना
और मैं
यह भी जान गया हूँ
कि मनुष्य का वज़नी होना
'गुरूत्वाकर्षण' के सिध्दांत पर नहीं
बल्कि चरित्र के उस
'गुरू-आकर्षण' के सिध्दांत पर निर्भर करता है
जिसके बल पर
'इंद्र' का आसन भी
पत्ते की तरह कांपने लगता है।

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8 comments:

  1. और मैं
    यह भी जान गया हूँ
    कि मनुष्य का वज़नी होना
    'गुरूत्वाकर्षण' के सिध्दांत पर नहीं
    बल्कि चरित्र के उस
    'गुरू-आकर्षण' के सिध्दांत पर निर्भर करता है
    जिसके बल पर
    'इंद्र' का आसन भी
    पत्ते की तरह कांपने लगता है। .good

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  2. और अब मैं जान गया हूँ
    कि जीवन
    दूसरों की शक्ति के सहारे नहीं चलता........

    BAHOOT HI SHASHAKT LIHKHA HAI .... SATEEK AUR SAARTKAH .... APNA RAASTA KHUD HI TALAASHNA PADHTA HAI ....PRAKHAR SANDESH CHIPA HAI AAPKI IS RACHNA MEIN ...

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  3. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णू....

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  4. बल्कि चरित्र के उस
    'गुरू-आकर्षण' के सिध्दांत पर निर्भर करता है
    जिसके बल पर
    'इंद्र' का आसन भी
    पत्ते की तरह कांपने लगता है।

    सही सारांश,बढ़िया प्रस्तुति.


    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर

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  5. बहुत अच्छे विचार ! अच्छी कविता !

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  6. कि जीवन
    दूसरों की शक्ति के सहारे नहीं चलता।
    बेहतरीन भाव और जीवन के सत्य को उजागर करती बहुत खूबसूरत कविता

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  7. bahut sunder soch hai aapakee. tabhee itanee sahajata se itna sashakt likh pate hai aap . Badhai .
    mai bhee is blog kee duniya me nai hoo aapake blog ka aaj hee pata chala . dheere dheere blogs se parichay ho hee jaega .

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