चिड़ियाँ चहचहाती हैं
फूल खिलते हैं
सूरज निकलता है
बच्चे जगते हैं
बच्चों के खेल खिलौने होते हैं
मुठ्ठी में दिन
आँखों में
कई सपने होते हैं
पिता जब साथ होते हैं
पिता जब नहीं होते
चिड़ियाँ चीखतीं हैं
फूल चिढ़ाते हैं
खेल खिलौने कुछ नहीं रहते
सपने
धूप में झुलस जाते हैं
बच्चे
मुँह अंधेरे
काम पर निकल जाते हैं
सूरज पीठ-पीठ ढोते
शाम ढले
थककर सो जाते हैं।
पिता जब होते हैं
तितलियाँ
उँगलियों में ठिठक जाती हैं
मेढक
हाथों में ठहर जाते हैं
मछलियाँ पैरों तले गुदगुदाती हैं
भौंरे कानों में सरगोशी से
गुनगुनाते हैं
इस उम्र के
अनोखे जोश होते हैं
हाथ डैने
पैर खरगोश होते हैं
पिता जब साथ होते हैं।
पिता जब नहीं रहते
जीवन के सब रंग
तेजी से बदल जाते हैं
तितलियाँ, मेढक, मछलियाँ, भौंरे
सभी होते हैं
इस मोड़ पर
बचपने
कहीं खो जाते हैं।
जिंदगी हाथ से
रेत की तरह फिसल जाती है
पिता जब नहीं रहते
उनकी बहुत याद आती है।
पिता के होने और न होने में
एक फर्क यह भी होता है कि
पिता जब साथ होते हैं
समझ् में नहीं आते
जब नहीं होते
महान होते हैं। --देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
फूल खिलते हैं
सूरज निकलता है
बच्चे जगते हैं
बच्चों के खेल खिलौने होते हैं
मुठ्ठी में दिन
आँखों में
कई सपने होते हैं
पिता जब साथ होते हैं
पिता जब नहीं होते
चिड़ियाँ चीखतीं हैं
फूल चिढ़ाते हैं
खेल खिलौने कुछ नहीं रहते
सपने
धूप में झुलस जाते हैं
बच्चे
मुँह अंधेरे
काम पर निकल जाते हैं
सूरज पीठ-पीठ ढोते
शाम ढले
थककर सो जाते हैं।
पिता जब होते हैं
तितलियाँ
उँगलियों में ठिठक जाती हैं
मेढक
हाथों में ठहर जाते हैं
मछलियाँ पैरों तले गुदगुदाती हैं
भौंरे कानों में सरगोशी से
गुनगुनाते हैं
इस उम्र के
अनोखे जोश होते हैं
हाथ डैने
पैर खरगोश होते हैं
पिता जब साथ होते हैं।
पिता जब नहीं रहते
जीवन के सब रंग
तेजी से बदल जाते हैं
तितलियाँ, मेढक, मछलियाँ, भौंरे
सभी होते हैं
इस मोड़ पर
बचपने
कहीं खो जाते हैं।
जिंदगी हाथ से
रेत की तरह फिसल जाती है
पिता जब नहीं रहते
उनकी बहुत याद आती है।
पिता के होने और न होने में
एक फर्क यह भी होता है कि
पिता जब साथ होते हैं
समझ् में नहीं आते
जब नहीं होते
महान होते हैं। --देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
एक फर्क यह भी होता है कि
ReplyDeleteपिता जब साथ होते हैं
समझ् में नहीं आते
जब नहीं होते
महान होते हैं.........
बहुत ही गहरे भाव हैं इस रचना में ....... अलग अंदाज़ में इस रचना को मोड़ दिया है आपने ........... सच में पिता के न होने पर ही यह समझ आता है .....
vकविता के भावः मनको छु गए ,पिता का आभाव बहुत गहरा होता है । दीवाली की शुभकामनायें ।
ReplyDeleteपिता जब साथ होते हैं
ReplyDeleteसमझ् में नहीं आते
जब नहीं होते
महान होते हैं।
वाकई पिता का एहसास न होने पर सालता है. बहुत सुन्दर भाव मे पिरोया है आपने कविता को
कई सपने होते हैं
ReplyDeleteपिता जब साथ होते हैं
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पिता जब नहीं होते
चिड़ियाँ चीखतीं हैं
फूल चिढ़ाते हैं
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पैर खरगोश होते हैं
पिता जब साथ होते हैं।
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पिता के होने और न होने में
एक फर्क यह भी होता है कि
पिता जब साथ होते हैं
समझ् में नहीं आते
जब नहीं होते
महान होते हैं।
सुन्दर, अति सुन्दर, मनोभावों, कारगुजारियों का विश्लेषण ...............
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
पिता से रिश्ता माँ की तरह भावुकता का नहीं पर संरक्षण और सुदृढ़ता का होता और वह जब नहीं होता तभी समझ आता है। कविता के भाव बहुत सुन्दर बन पड़े हैं।
ReplyDeleteआपकी कविताएं तो जागृति का प्रतीक लगती हैं, फिर ब्लाग का नाम बेचैन आत्मा क्यों? चलिए आने वाली कविताओं का इन्तज़ार रहेगा।
पिता, धरती पर भगवान का साक्षात अवतार है..
ReplyDeleteपुत्र के लिए सब कुछ हँस कर सहना और पुत्र को हमेशा उसके मन की सभी सुविधा मुहैया कराना यही चाह रहती है हर पिता की ..कभी भी कोई मुश्किल ना आने पाए..हमेशा आयेज खड़े रहते हैं कठिनाइयों के वक्त..
पिता को समर्पित आपकी यही कविता दिल को छू जाती है..दुनिया में कोई भी चीज़ या कोई भी रिश्ता माँ और पिता की बराबरी नही कर सकती....बहुत सुंदर रचना..धन्यवाद देवेन्द्र जी
माँ व पिता के लिये जितनी भावपूर्ण और सुवासित शब्दांजलि दी है आपने..मेरे पास शब्द नही उसकी तारीफ़ करने के लिये..
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteवाह।
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