29.11.09

चिड़िया

आज रविवार है। कविता पोस्ट करने का दिन। पिछली कविता नारी क्रंदन को जो स्नेह मिला इसके लिए मैं सभी का आभारी हूँ। आज जो कविता पोस्ट करने जा रहा हूँ वह इसके पूर्व हिन्द युग्म में प्रकाशित हो चुकी है । इसकी आलोचना भी हुई है लेकित मुझे इतनी प्रिय है कि इसे मैं अपने ब्लाग पर प्रकाशित करने का मोह नहीं छोड़ पा रहा हूँ। मुझे लगा कि बेचैन आत्मा के जन्म के बाद मुझे पाठकों का एक नया समूह मिला है जिन्हें यह कविता अवश्य पढ़ाई जानी जानी चाहिए। प्रस्तुत है कविता जिसका शीर्षक है-चिड़िया।
................................................................................................................................................

चिड़ि़या उडी
उसके पीछे दूसरी चिड़िया उड़ी
उसके पीछे तीसरी चिड़िया उड़ी
उसके पीछे चौथी चिड़िया उड़ी
और देखते ही देखते पूरा गांव कौआ हो गया।

कौआ करे कांव-कांव ।
जाग गया पूरा गांव ।

जाग गया तो जान गया
जान गया तो मान गया
कि जो स्थिति कल थी वह आज नहीं है
अब चिड़िया पढ़-लिख चुकी हैं
किसी के आसरे की मोहताज नहीं है ।

अब आप नहीं कैद कर सकते इन्हें किसी पिंजडे़ में
ये सीख चुकी हैं उड़ने की कला
जान चुकी हैं तोड़ना रिश्तों के जाल
अब नहीं फंसा सकता इन्हें कोई बहेलिया
प्रेम के झूठे दाने फेंक कर
ये समझ चुकी हैं बहेलिये की हर इक चाल
कैद हैं तो सिर्फ इसलिये कि प्यार करती हैं तुमसे ।
तुम इसे
इनकी नादानी समझने की भूल मत करना ।
इन्हें बढ़ने दो,
इन्हें पढ़ने दो,
इन्हें उड़ने दो,
इन्हें जानने दो हर उस बात को जिन्हें जानने का इन्हें पूरा हक़ है ।

ये जानना चाहती हैं
कि क्यों समझा जाता है इन्हें 'पराया धन' ?
क्यों होती हैं ये पिता के घर में 'मेहमान' ?
क्यों करते हैं पिता 'कन्या दान' ?
क्यों अपने ही घर की दहलीज़ पर दस्तक के लिए
मांगी जाती है 'दहेज' ?
क्यों करते हैं लोग इन्हें अपनाने से 'परहेज' ?

इन्हें जानने दो हर उस बात को
जिन्हें जानने का इन्हे पूरा हक है ।

रोकना चाहते हो,
बांधना चाहते हो,
पाना चाहते हो,
कौओं की तरह चीखना नहीं,
चिड़ियों की तरह चहचहाना चाहते हो....
तो सिर्फ एक काम करो
इन्हें प्यार करो।
इतना प्यार करो कि ये जान जायँ
कि तुम इनसे प्यार करते हो !

फिर देखना...
तुम्हारा गांव, तुम्हारा घर, तुम्हारा आंगन,
खुशियों से चहचहा उठेगा।




25 comments:

  1. bahut achchha vichar hai........is achchhi rachna ke liya dhanybaad.

    ReplyDelete
  2. ismen alochna ki gunjaish hi nahin hai, ye to samyik aur aaj ke gaon ke parivesh par bahut karara vyangya hai jismen sachai chhupihui hai. badhaai.

    ReplyDelete
  3. बड़ी सुंदर कविता है यह आपकी..एकदम अलग रंग लिये..बहुत सही प्रतीक लिये आपने..खासकर जमाने का कौवा के साथ..
    ..पाश साहब की एक कविता साड्डा चिड़िया दा चंबा नी याद आती है...

    ReplyDelete
  4. रोकना चाहते हो,
    बांधना चाहते हो,
    पाना चाहते हो,
    कौओं की तरह चीखना नहीं,
    चिड़ियों की तरह चहचहाना चाहते हो....
    तो सिर्फ एक काम करो
    इन्हें प्यार करो।
    इतना प्यार करो कि ये जान जायँ
    कि तुम इनसे प्यार करते हो...touched n impressed...

    ReplyDelete
  5. देवेन्द्र जी,
    प्रतीक रूप में पेश की गई यह भावपूर्ण रचना अपना प्रभाव छोडती है
    सामाजिक बदलाव की दिशा में सभी को बेझिझक अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी..
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

    ReplyDelete
  6. bahut hee sashakt sandesh aur soch walee hai aapakee rachana .
    atyadhik sunder kavita .

    ReplyDelete
  7. PRABHAAVI RACHNA ...... SAMAAJ KE BADALTE PARIVESH KA SAJEEV CHITRAN HAI ....

    ReplyDelete
  8. प्रिय बन्धु ।झूंठी नही , सम्पूर्ण ह्रदय से तारीफ़ । बहुत पहले एक व्यंग्य कविता पढी थी उसका स्मरण हो आया ।इस वक्त केवल भावार्थ ही याद है कुछ इस तरह थी कि = लडकी है लड्की को बडा मत होने दो /बडी हो जायेगी तो अपने पैर पर खडी भी हो जायेगी ।संविधान देखेगी अधिकार मांगेगी/अपने पिता की पासबुक से कार मागेगी । इसे गुडिया के खेल खेलने दो = ऐसी ही कुछ थी बहुत प्रसिद्ध कवि की रचना थी ।आपकी रचना पढ कर तबीयत खुश हो गई ।इस प्रकार की रचनाओ को , मुझे तो ज्यादा पता नही है मगर शायद छायावादी कहा जाता है ।बहुत बहुत बधाई ।

    ReplyDelete
  9. ना चाहते हो,
    बांधना चाहते हो,
    पाना चाहते हो,
    कौओं की तरह चीखना नहीं,
    चिड़ियों की तरह चहचहाना चाहते हो....
    तो सिर्फ एक काम करो
    इन्हें प्यार करो।
    इतना प्यार करो कि ये जान जायँ
    कि तुम इनसे प्यार करते हो
    bahut behtri rachna

    ReplyDelete
  10. बहुत खूबसूरत कविता..... एक लय और रवानगी में पढ़ता चला गया......


    बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर....... देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.......

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ! बधाई!

    ReplyDelete
  12. ab jyaada kya likhe ,aap ko to pata hi hai ki hm is kavita ke kitne jabadrdast pairokaar thee,aur pairavi karne ki wagah bhi yahi hai ki in kauon ar chidiyon ko bahut kareeb se dekha ar mahsoos kiya hai hmne .

    ReplyDelete
  13. एक सरल और सशक्त रचना. सुन्दर कवितामय सन्देश.

    ReplyDelete
  14. ये जानना चाहती हैं
    कि क्यों समझा जाता है इन्हें 'पराया धन' ?
    क्यों होती हैं ये पिता के घर में 'मेहमान' ?
    क्यों करते हैं पिता 'कन्या दान' ?
    क्यों अपने ही घर की दहलीज़ पर दस्तक के लिए
    मांगी जाती है 'दहेज' ?
    क्यों करते हैं लोग इन्हें अपनाने से 'परहेज' ?

    इन्हें जानने दो हर उस बात को
    जिन्हें जानने का इन्हे पूरा हक है ।
    बहुत सही बात कही बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना है । बधाई

    ReplyDelete
  15. शानदार रचना ! दिल को छू गई ! बधाई!

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर बढ़िया लिखा है आपने ..दिल को छु लेने वाले भाव हैं इस में शुक्रिया

    ReplyDelete
  17. वाह क्या विचार हैं और क्या उन्हें कहना का तरीका दोनों ने मन मोह लिया...हर लड़की का दिल जीत लिया आपने ....

    ReplyDelete
  18. '' ... कैद हैं तो सिर्फ इसलिये कि प्यार करती हैं तुमसे । ''
    इसे समझना मेरे लिए कठिन लगा , बाकी कविता मेरी
    समझ में आयी ... कविता अच्छी है ... आपके ब्लॉग पर
    ऐसी कविताओं को पढ़ने बारम्बार आता रहूँगा ...
    ............ आभार .......................................

    ReplyDelete
  19. कितनी खूबसूरत कविता लिखी है आपने, शुरू से अंत तक एक सांस में पढ गई । इस प्रतीकात्मक कविता ने हर लडकी के भावों को अभिव्यक्ती दी है । आप को बहुत बहुत बधाई ।

    ReplyDelete
  20. कितनी खूबसूरत कविता लिखी है आपने....
    {कैद हैं तो सिर्फ इसलिये कि प्यार करती हैं तुमसे }
    बहुत सुंदर रचना लिखा है....

    ReplyDelete
  21. चिड़िया उडेगी और फिर उसी आँगन में कभी कभी आकर चाहचाहाएगी तो सारा घर खिल उठेगा..हमें कोई हक़ नही की चिड़ियों को क़ैद किया जाय...उन्हे उड़ने दिया जाय वो ऐसे लोग है जिनके उड़ने से पूरा गाँव आसमान छू ने का ख्वाब पाल सकता है और हौसलों से आसमान छू भी सकता है मतलब जो चाहे वो पा सकता है....

    बढ़िया भाव..और कविता में आपका मुकाबला कौन करें...धन्यवाद देवेन्द्र जी

    ReplyDelete
  22. आप की यह कविता बहुत ही प्रभावी है .पसंद आई.
    एक सशक्त रचना.

    ReplyDelete
  23. बहुत ही सार्थक कविता समाज को आइना दिखाती हुई.बेजोड़ बेमिसाल
    आभार

    ReplyDelete