7.3.10

भवानी दीदी



एक थी भवानी दीदी
कहते थे जिसे सभी
पगली !

सुबह-सबेरे
बरामदे में बैठकर
बीनती थी कंकड़
फेंकती थी चावल
गाती थी गीत
"आ चरी आ.... फुर्र उड़ी जा"!

चीखते-चिल्लाते आती थी माँ....

"पगली, यह क्या कर रही है !
सारा चांवल चिड़ियों को ही खिला देगी क्या ?"

ताली पीट-पीट खिलखिलाती थी वह

वैसे ही जैसे
खुशी में पंख फड़फड़ाती है
गौरैया

देखो-देखो
सब मेरे पास बैठी थीं
वह भी...वह भी...वह भी
यहाँ....यहाँ...यहाँ

दिखाती थी वह
माँ को
घर का कोना-कोना
फिर पैर पटक
रूठ जाती सहसा
आपने सब भगा दिया !

उसकी रसीली आँखें
बुदबुदाते होंठ
बिखरे बाल
भूखे-प्यासे पंछी की तरह चहचहाने लगते.

माँ देखती तो बस देखती रह जाती....

दीदी की पुतलियों में 'चाँद'
गालों में 'सूरज'
होठों में 'गुलाब'
और कमर तक झूलते
'काले बादल'

देखते ही देखते
माँ के पलकों की कोरों में सिमटकर
सूप के शेष बचे चावंल में ढरक कर
विलीन हो जाती
'भवानी दीदी'.

तीस साल बाद....
माँ की इच्छा पर
जाते हुए उसके गाँव
उसकी ससुराल
उसके घर
कदम दर कदम
याद आती गयी
बचपन की याद
और भवानी दीदी.

वह दिखी
आँगन में बैठी
बच्चों के साथ खेलती
बुदबुदाती
बड़बड़ाती
वैसी ही
पगली की पगली.

मैं उसके समीप बैठ गया
पूछा...
पहचाना मुझे !
जोर-जोर से चीखा...
"आ चरी आ..फुर्र उड़ी जा.."

वह चिहुंक कर खड़ी हो गई !
घूरती रही देर तक
मैं भी देखता रहा उसे
अपलक!

पुतलियाँ
अंधियारी सुरंग
गालों में
मरुस्थली झुर्रियाँ
होंठ
सिगरेट की जली राख
बाल
जेठ की दुपहरिया में उड़ते छोटे-छोटे बादल

मैंने सिहर कर
ओढ़ा दिया उसपर
माँ का भेजा हुआ 'प्यार'

वह फुदकने लगी सहसा
आँगन-आँगन

वैसे ही जैसे
फुदकती थी कभी
बरामदे में गौरैया
और
भवानी दीदी.

( चित्र गूगल से साभार)

47 comments:

  1. अत्यंत भावप्रवण ...सुन्दर कविता ! सराहनीय कविता ! इतना अच्छा लिखते हैं अच्छा सोचते हैं तो काहे बेचैन आत्मा नाम धर लिए हैं भाई !

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  2. बहुत स्नेहमयी , भावपूर्ण रचना । समय के अंतराल को बहुत अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया है आपने । बहुत बढ़िया भाई।

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  3. बहुत दिनो के बाद ऐसी कविता पड़ने को मिली.बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण.आपको धन्यवाद और बधाई भी. सादर...

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  4. पढ़ कर इक आह निकली और दिल मे टीस सी लगी!

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  5. aapke blog ka naam apanapan ya fir anubhootee hona chahiye .
    bahut bahut bhaopoorn abhivyaktee Devendrajee.................

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  6. अत्यंत भावपूर्ण रचना,स्नेहमयी, सराहनीय.बहुत अच्छा लिखते हैं.

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  7. मार्मिक ... बहुत ही प्रभावी ... भावनाओं का समुंदर है आपकी रचना .... बहुत ही लाजवाब ...

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  8. पुतलियाँ....अंधियारी सुरंग
    गालों में....मरुस्थली झुर्रियाँ
    होंठ....सिगरेट की जली राख
    बाल.....जेठ की दुपहरिया में उड़ते छोटे-छोटे बादल
    ......मैंने सिहर कर....ओढ़ा दिया उस पर....माँ का भेजा हुआ 'प्यार'
    बहुत ही खूब....दिल तक असर करने वाली रचना.

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  9. बहुत सुंदर कविता लगी आप की

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  10. mann ke andar tak bhawani didi chiyon sang ghoom gai......mann darka hai,yaa aankhen barsi hain- maa ki tarah mainr bhi apna pyaar odha diya hai

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  11. Meri rachna ki prashansa ke liye shukriya! Bahut bhaai aapki kriti bhi....Haan ladkiya hoti hi hain chidiya jaisi

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  12. aur haan......kavita ke saath jo picture pesh ki hai wo bhi kamaal hai

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  13. बहुत सुंदर और नाजुक सी रचना, ऐसे लगा कि कहीं आसपास ही भवानी दीदी और गौरैया बैठी है. बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  14. बहुत भोले चरित्र का चित्रण किया है आपने ,अधिकतर भोली-भाली और गावं की कन्याओं का यही हाल तो होता है -पुतलियाँ अंधियारी सुरंग ,गालों में मरुस्थली झुर्रियाँ ....

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  15. बहुत सुन्दर कविता है यह भवानी दीदी ।
    वैसे ही जैसे
    फुदकती थी कभी
    बरामदे में गौरैया
    और
    भवानी दीदी

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  16. क्या कहुं अभी अस्पताल की इमरजेंसी से लेकर लौटा था.सुबह के 4 बज रहे हैं..आपके ब्लॉग पर आया...दिल को छू लेने वाली कविता है..काफी मार्मिक...काहे को भगवान किसी को ऐसी सजा देता है....इंसान गलती करता है, पर भगवान क्यों निर्दयी सा हो जाता है समझ नहीं आता..अपने बच्चे की गलती तो मां-बाप माफ कर देते हैं. फिर परमपिता क्यों नहीं....अपना कोई बीमार होता है या खो जाता है तो टीस होती ही है..

    सच की सजा क्या होती है..उसे भुगत रहा हूं..आखिर कई कशमकश से जूझ रहा हूं .... पर नाम आपका है बैचेन आत्मा....लगता है कि कुछ दिन के लिए आपका नाम मेरे साथ चिपका हुआ है...

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  17. एक भावनात्मक कविता ,मन को छूने वाली और मह्सूस करने वाली
    क्या भवानी दीदी जो चिड़ियों को चावल खिला रही है वो मानसिक रोगी हैं या वो लोग रोगी हैं जो दूसरों के मुंह का निवाला छीन लेते हैं?
    इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई

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  18. आज एक अच्छी रचना पढने मिली

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  19. गहरी महसूसियत से लिखी कविता !
    समय का अंतराल संजोती कविता ।
    भावप्रवणता से आकंठ डूबी कविता !
    बेहतरीन, बहुत शानदार कविता । आभार ।

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  20. बहुत सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति है। एक चरित्र मे कितनी भावनाओं को समेट दिया है। दिल को छू गयी शुभकामनायें

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  21. dil ko chhoo gayi aapaki yah marmik post.thodhi deer ke liye nih shabd ho gayi.
    poonam

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  22. बहुत सुन्दर कविता है यह भवानी दीदी ।
    वैसे ही जैसे
    फुदकती थी कभी
    बरामदे में गौरैया
    और
    भवानी दीदी

    भावमय अभिव्यक्ति ..............!

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  23. आज तो आपने इधर भी आत्मा बेचैन कर दी .....!!

    अब इस बेचैन आत्मा से कुछ कहा नहीं जा रहा ... इस भवानी दीदी के लिए .....!!

    इस महिला दिवस पर आपने तो आँखें नम कर दीं ......!!

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  24. वाह वाह वाह !!!!!!!!!!!!!!पढ़ कर देर तक सोचती रही, जाने कितने ही विचार आँखों के आगे से गुजरते गए और मैं अपनी आँखों की कोर को पोंछती रही

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  25. हिला कर रख दिया आपकी कविता ने..शब्दों मे इतनी मार्मिकता भर दी है कि भवानी दी अपने ही आस-पास की चरित्र लगती हैं..तीस साल के अंतराल मे बिखरी हुई यह व्यथा-कथा भवानी दी के बहाने जीवन की कठोर और निर्मम चारदीवारियों के बीच कुछ निर्दोष और कोमल कामनाओं के क्षरित होने की कथा है..जैसे पंख कटी गौरैया की परवाज की अधूरी ख्वाहिश..
    माँ के पलकों की कोरों में सिमटकर
    सूप के शेष बचे चावंल में ढरक कर
    विलीन हो जाती
    'भवानी दीदी'.

    जिंदगी की तमाम दुनियादारी के बीच हमारे आसपास भवानी दी का रहना उतना ही जरूरी है, जितनी कि हमारे अंदर के तमाम लालच और स्वार्थ के बीच चिड़ियों को सारा चावल चुगा देने की मासूम ख्वाहिश..

    चित्र भी पोस्ट की भावना के साथ पूरा न्याय करता हुआ...

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  26. आज बहुत दिनों के बाद हास्य से हट कर प्रस्तुत किया आपने बेहतरीन रचना में कोई शक नही..एक भावपूर्ण प्रस्तुति..
    भवानी दीदी और उनके प्यार, मन की चंचलता को बखूबी बयाँ किया आपने कविता के माध्यम से..

    इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें....

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  27. ड्रामेटक कविता... बेहतरीन..."
    amitraghat.blogspot.com

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  28. कमर तक झूलते काले बादल...
    अति सुन्दर...
    प्यारी कविता.

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  29. Is rachana ko baar baar padhneka man hota hai..

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  30. A nice and touching poem.I like your blog.
    God bless.

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  31. aise hi berang aur badhal ho jaati hain goraiya...shaadi ke baad

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  32. बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो दिल को छू गयी! बधाई!

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  33. शुक्रिया आपका....."
    amitraghat.blogspot.com

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  34. शुक्रिया ,
    देर से आने के लिए माज़रत चाहती हूँ ,
    उम्दा पोस्ट .

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  35. एक-एक बिम्ब पहचाने-से लगे। संवेदना हिलकोरे मारनें लगीं और "भवानी दीदियों' की याद ताजा हो गयी। गद्य की आत्मा पर रची गयी उत्कृष्ट कविता। बधाई।

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  36. Kafi sundar bana diyaa aapne is kavita ko.. bhavani didi ki dono sthitiyon ka marmik chitran..
    chitra ko do tarah se dekhna bhi achchha laga..

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  37. दीदी की पुतलियों में 'चाँद'
    गालों में 'सूरज'
    होठों में 'गुलाब'
    और कमर तक झूलते
    'काले बादल'

    नज़र ही नज़ारों की अभिव्यक्ति है , आपकी कविता से यही सिद्ध हुआ.. सचमुच..

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  38. बहुत सुंदर कविता लगी आप की

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  39. कमर तक झूलते काले बादल...
    अति सुन्दर...
    प्यारी कविता.

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  40. दीदी की पुतलियों में 'चाँद'
    गालों में 'सूरज'
    होठों में 'गुलाब'
    और कमर तक झूलते
    'काले बादल'
    after 30 years
    .....................
    ..........................
    ...................

    पुतलियाँ
    अंधियारी सुरंग
    गालों में
    मरुस्थली झुर्रियाँ
    होंठ
    सिगरेट की जली राख
    बाल
    जेठ की दुपहरिया में उड़ते छोटे-छोटे बादल

    "आ चरी आ..फुर्र उड़ी जा.."


    देरी से आने के लिए माफ़ी चाहूंगीपर बहोत खूब पाण्डेय जी

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  41. अभी चार दिन पहले आपका ब्लॉग खोला था...
    शनिवार को...
    ना तो बच्चों ने पढने दिया ठीक से...ना ही कमेन्ट कर पाए.....बस...
    चित्र में उलझ कर रह गयी हमारी फैमिली....
    आज सुबह सुबह फिर तसल्ली से पढ़ा है......


    तलियाँ
    अंधियारी सुरंग
    गालों में
    मरुस्थली झुर्रियाँ
    होंठ
    सिगरेट की जली राख



    तीस साल में क्या से क्या हो गया भवानी दीदी का...
    बहुत गहरे तक छुआ है

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  42. दोबारा आना पडा..
    कहीं कोई गलतफहमी ना हो जाए...

    इस पोस्ट पर जिस चित्र की बात की है..वो भवानी दीदी का है...
    जिमें आँख, नाक, होंठ,,,सब कुछ गौरया से बना है...


    और ऊपर वाली पोस्ट पर बात की है ब्लॉग के मुखप्रष्ठ वाले चित्र की...

    :)
    :)

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  43. अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति ..


    पुतलियाँ
    अंधियारी सुरंग
    गालों में
    मरुस्थली झुर्रियाँ
    होंठ
    सिगरेट की जली राख
    बाल
    जेठ की दुपहरिया में उड़ते छोटे-छोटे बादल

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  44. मार्मिक, मार्मिक!

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