21.3.10

एक हिंदी गज़ल



क्या तेरा क्या मेरा पगले
चार दिनों का फेरा पगले

छोरी-छोरा छुट जाएंगे
उठ जाएगा डेरा पगले

पत्थर का दिल क्यों रखता है
तन माटी का ढेरा पगले

बिन दीपक ना मिट पाएगा
अंधियारे का घेरा पगले

सूरज सा चमका है जग में
जिसने तन मन पेरा पगले

मूरख क्यों करता गुरुआई
एक गुरु सब चेरा पगले



39 comments:

  1. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

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  2. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  3. एक गुरू सब चेला पगले -बिलकुल सही बात !

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  4. बहुत खूब ..देवेन्द्र जी बेहतरीन भाव प्रस्तुत किए आपने....हर लाइन लाजवाब...बधाई

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  5. पत्थर का दिल क्यों रखता है
    तन माटी का ढेरा पगले

    बिन दीपक ना मिट पाएगा
    अंधियारे का घेरा पगले ...
    बहुत सुंदर.

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  6. "क्या तेरा क्या मेरा पगले
    चार दिनों का फेरा पगले"

    kash ise hum jeevan me utar paate to kitna sukhmay ho ye jeevan!

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  7. मूरख क्यों करता गुरुआई
    एक गुरु सब चेरा पगले

    bahut sahii hai ..

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  8. बहुत खूब........

    उम्दा रचना

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  9. नमस्कार
    पत्थर का दिल क्यों रखता है
    तन माटी का ढेरा पगले

    बहुत सुंदर

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  10. बहुत ही वज़नदार ग़ज़ल है। सभी शे’र बेहतरीन! आभार!

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  11. पत्थर का दिल क्यों रखता है
    तन माटी का ढेरा पगले
    अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।

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  12. अति सुन्दर भाव लिए रचना।
    बस समझ लें तो ।

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  13. behatareen/lajawaab...........anupam rachna.

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  14. bahut sunder baat ko le dil se likhee gazal bahut acchee lagee .
    aabhar Devendrajee .

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  15. देवेन्द्र जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल जीवन के यथार्थ को दर्शाती.हर एक बात लाज़वाब

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  16. jindagi ki sachachi ko yatharthtah bayan kar ti aapki yah post bahut hi achhi lagi.

    poonam

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  17. बहुत उम्दा रचना!

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  18. ek shikashaprad kavita ke liye aabhar aapka

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  19. बिन दीपक ना मिट पाएगा....अंधियारे का घेरा पगले

    सूरज सा चमका है जग में...जिसने तन मन पेरा पगले

    वाह....
    छोटी बहर में बड़ी बात.
    मुबारकबाद..

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  20. छोटी बहर में कमाल किया है आपने...हर शेर अपने आप में मुकम्मल है और बेहद खूबसूरत है...मेरी बधाई स्वीकारें...
    नीरज

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  21. "इस दामन में क्या-क्या कुछ है..."
    सलोनी-सी गज़ल ! आभार ।

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  22. आपकी पिछली कविता जैसा ही असर है इस ग़ज़ल में भी..

    सूरज सा चमका है जग में
    जिसने तन मन पेरा पगले

    बहुत सुन्दर ख्याल..

    बस शीर्षक ही कम पसंद आया हमें...
    एक हिंदी ग़ज़ल के बजाय..
    ''एक ग़ज़ल''...........लिखना ही काफी था जनाब...


    पत्थर का दिल क्यों रखता है
    तन माटी का ढेरा पगले

    ये शे'र तो बहुत ही पसंद आया...
    क्या बात कह दी है...

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  23. बेचैन आत्मा..............
    ऐसा नाम रखा है अपने की लिख्जते हुए संकोच सा रहता है........मगर क्या करें इसके अलावा विकल्प भी तो नहीं...............बहरहाल हिंदी ग़ज़ल पढ़ी.......उन्वान में हिंदी क्यों लिखा समझ में नहीं आया....अरे ग़ज़ल तो ग़ज़ल है, क्या हिंदी क्या उर्दू.....
    क्या तेरा क्या मेरा पगले
    चार दिनों का फेरा पगले


    छोरी-छोरा छुट जाएंगे
    उठ जाएगा डेरा पगले


    लोक भाषा के शब्दों को लेकर प्रभावी रचना कर डाली आपने........बहुत खूब......!

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  24. वाह
    आजकल आध्यामिकता का रंग फ़ागुन से चैत्र तक चढ़ा लगता है..नवरात्रि का प्रभाव?..एक बेहद खूबसूरत गज़ल..जिसका जादू उसकी सहजता मे छिपा है..सहेजने लायक
    इस शेर का विरोधाभास बहुत कचोटता है...हम सब उसी की जद मे आते हैं कही न कहीं

    पत्थर का दिल क्यों रखता है
    तन माटी का ढेरा पगले

    और इस शेर का यथार्थ..बहुत दूर तक जाता है..

    सूरज सा चमका है जग में
    जिसने तन मन पेरा पगले

    आखिरी शे’र तो कबीर दास की परम्परा का लगता है..तमाम झगड़ों का इलाज!!!
    कुल मिला कर बुकमार्क करने लायक इस अद्वितीय गज़ल के लिये बहुत शुक्रिया!!
    नत-मस्तक हूँ!!

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  25. एक लाइन ठीक नहीं लगी ,एक गुरु ....सत्य एक है उसे चाहे भगवान कहो,अल्लाह कहो या कुछ और मगर गुरु एक से अधिक होते हैं ,आदमी को उसे पहचानने में कठिनाई होती है उसके अहंकार के कारण.
    वैसे आजकल भक्ती-रस में डूबते जा रहे है क्या ?

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  26. वाह आपका ये नया अंदाज़ बहुत भाया ...
    पत्थर का दिल क्यों रखता है
    तन माटी का ढेरा पगले
    माटी के तन में पत्थर का दिल ... क्या बात है ..

    बिन दीपक ना मिट पाएगा
    अंधियारे का घेरा पगले
    मन का दीपक सदा जलता रहे तो अंधियारा हमेशा के लिए मिट जाता है ...

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  27. क्या तेरा क्या मेरा पगले
    चार दिनों का फेरा पगले
    छोरी-छोरा छुट जाएंगे
    उठ जाएगा डेरा पगले ........... क्या बात है ..
    नत-मस्तक .Truely deserves so many comments.

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  28. सुन्दर बात बहुत ही सुन्दर ढंग से इस रचना के माध्यम से आपने कह दी...वाह !!!

    आपकी रचनाओं तथा यत्र तत्र टिप्पणियों में व्यक्त विचारों ने मुझे अतिशय प्रभावित किया है...परन्तु साथ ही आपके द्वारा प्रयुक्त "बेचैन आत्मा " अत्यंत उत्सुक करती है यह जान्ने के लिए की आपने यह नाम क्यों रखा...

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  29. mere computer se google ka hindi-eng typing kii pad formating ke karan gayab ho gaya hai ...vyastata bhii bahut hai ..yahi karan hai ki main hindi me type nahi kar pa raha hoon...
    sabhi ko sneh banaye rakhne ke liye dhanyvad.

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  30. wah ji guru dev ,natmastak hone ko jee chah raha hain aapke samne ,so is hindi ki mahan gazal ke liye hamara pranam swikar kare
    man andolit ho raha hain ththa aatma baichain ho rahi hain
    jeene k sabke apne tarike hain
    sabko jeevan se jyada ki aas ho rahi hain

    brajdeep

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  31. बहुत ही मार्मिक एवं प्रभावशाली ग़ज़ल है।

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  32. आदरणीय प्रेम जी-

    यहाँ एक गुरू से भी वही आशय है...
    सत्य एक है उसे चाहे भगवान कहो,अल्लाह कहो या गुरू कहो
    भक्त गुरू को ही भगवान मानते हैं और तो और भगवान को ही गुरू मानते हैं--
    हम काशीवासी कहते हैं कि ...बाबा भोलेनाथ से बड़ा गुरू के हौ ?

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  33. बहुत सुन्दर और सरल शब्दों में खूबसूरत ग़ज़ल पेश की है आपने
    यक़ीनन काबिल-ए-दाद

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  34. बहुत बढ़िया रचना , आनंद आ गया !शुभकामनायें !

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