..................................
एक प्रश्न करना था
बूढ़ी होती जा रही संध्या से
न कर सका
एक प्रश्न करना था
उषा की लाली से
न कर सका
न जाने कैसे
दुष्ट सूरज
जान गया सब कुछ
किरणों से मिलकर
लगाने लगा ठहाके
उत्तर आइनों से निकलकर
जलाने लगे
मेरी ही हथेलियॉं।
सहज नहीं है
कैद करना
धूप को
मुट्ठियों में।
सूरज को मुट्ठियों में बंद करना है कठिन
ReplyDeleteपर
दीप कोई बालकर देखें ज़रा
दो हाथ उसके पास रखकर
उसको बुझने से बचाएँ..
प्रश्न का उत्तर मिलेगा बस वहीं से!!
.
देवेंद्र जी ये तो तुकबंदी है, पर आपकी कविता बड़ी ही सुंदर लगी!!हर बार की तरह अनोखी!!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में।
देवेन्द्र जी, आपकी रचना हमेशा अपना प्रभाव छोड़ती हैं...ये कविता भी बहुत अच्छी लगी.
बहुत ही लाज़वाब रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteयह तपती धूप क्यों तपाती है? सुन्दर प्रश्न और कविता।
ReplyDeletebadiya kavita Devendra jee........
ReplyDeleteसहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में।
सच है न मुमकिन है धूप को मुठ्ठियों में कैद करना
सहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में।
हथेलिया गरम हो रही हैं लोगो की, शायद अपने हिस्से का सूरज कैद कर रहे होंगे
अति उत्तम
ReplyDeleteसहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में।
sunder abhivyakti............
कविता पसंद आई। :-)
ReplyDeleteसहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में ...
बहुत ही लाजवाब पंक्तियाँ हैं ... सच है इस तरक्की को भी प् कर भी सहज रहना आसान नहीं है ....
देवेन्द्र जी,
ReplyDeleteबहुत खूब...हर बार की तरह कम शब्दों में एक बेहतरीन पोस्ट.....सच है जी धूप को बंद करना मुश्किल है....पर एक सवाल ये भी है की क्यूँ धूप को पकड़ना चाहते हैं लोग......क्या वो संसार के हर प्राणी के लिए नहीं है ?
hmm. suraj ka intelligence department agar govt. of india copy kar le to...:)
ReplyDeletethoda sa majak kar raha tha.
kavita sunder lagi
पढ़ तो ली।
ReplyDeleteवाह !!!!
ReplyDeleteमन को छूती प्रभावशाली रचना/चिंतन !!!!
कहाँ मुमकिन है?…………शानदार रचना।
ReplyDeleteबहुत कठिन है.कुछ समझ न पाया की इस कविता में कवि कहना क्या चाहता है.
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, इस बार की रचना तो बहुत ही बढ़िया है...सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई..
ReplyDeleteहमेशा की तरह अनोखे बिम्ब गढे हैं आपने ! खूबसूरत अंदाजे बयान !
ReplyDeleteसहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में ...
waahhhhh....bahut sunder abhivyakti
kavita to khubsurat hai hi, aag (dhoop) se khelne ka andaaz bhi...
सहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में।
बहुत खूब। अच्छी लगी रचना। बधाई।
हार्दिक बधाई ! एक खूबसूरत अनुभव की खूबसूरत अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में।
बहुत खूब, बधाई
ये घड़ी कहाँ से चुराई आपने ......???
ReplyDeleteसुना था पिछली बार आपका कुछ प्लान बन रहा था उड़ाने का ......
उत्तर आइनों से निकलकर
जलाने लगे
मेरी ही हथेलियॉं।
ये जीवन प्रश्नों से भरा है और उत्तर यूँ ही हथेलियाँ जलाते रहते हैं .....ठहाकों के साथ ....
ये आग का दरिया ही तो लांघना है .....!!
सही है...
ReplyDeleteरचना में
ReplyDeleteभाव छिपे हैं ...
पढने से सुकून मिलता है .
शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया .
सहज नहीं है
ReplyDeleteकैद करना
धूप को
मुट्ठियों में
क्या बात है देवेन्द्र जी. आपकी कवितायें पढती हूं, तो देर तक सोचती भी हूं, उनके बारे में.
एक असहज अहसास की सहज अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteदुष्ट सूरज जान गया सब, किरणों से मिलकर.......सुन्दर रचना. मैंने आपको प्रथम बार पढ़ा है, काफी अच्छा लगा, सुन्दर रचना के लिए आपका, धन्यवाद
ReplyDeleteबेहतरीन एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई एवं आभार स्वीकार करें |
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ... असम्भव चाहत पर .... सुन्दर कल्पना . .. आनंद आया पढ़कर ...शुभकामनाएं
ReplyDelete