जीवन के रास्ते में कई मुकाम हैं
जैसे
एक नदी है
नदी पर पुल है
पुल से पहले
सड़क की दोनों पटरियों पर
कूड़े के ढेर हैं
दुर्गंध है
पुल के उस पार
रेलवे क्रासिंग बंद है।
क्रासिंग के दोनों ओर भीड़ है
भी़ड़ के चेहरे हैं
चेहरे पर अलग-अलग भाव हैं
अपने-अपने घाव हैं
अपनी-अपनी मंजिल है
सब में एक समानता है
सबको मंजिल तक जाने की जल्दी है
लम्बी प्रतीक्षा-एक विवशता है।
ट्रेन की एक सीटी
सबके चेहरे खिल जाते हैं
ट्रेन की सीटी
आगे बढ़ने का एक अवसर है
अवसर
चींटी की चाल से चलती एक लम्बी मालगाड़ी है।
प्रतीक्षा में
एक हताशा है
निराशा है
गहरी बेचैनी है।
प्रतीक्षा
कोई करना नहीं चाहता
ट्रेन के गुजर जाने की भी नहीं
मंजिल है कि आसानी से नहीं मिलती।
जीवन एक रास्ता है जिसमें कई नदियाँ हैं
मगर अच्छी बात यह है
कि नाव है और नदियों पर पुल भी बने हैं।
रेलवे क्रासिंग बंद है
मगर अच्छी बात यह है कि
ट्रेन के गुजर जाने के बाद खुल जाती है।
( हिन्द युग्म में प्रकाशित )
एक निर्लिप्त पर्यवेक्षण। शांत सा लेकिन गहरे भाव समेटे।
ReplyDelete...कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें पहुँचने की जल्दी नहीं होती बल्कि चाहते हैं कि कभी गंतव्य तक न पहुँचें...
शीर्षक को 'प्रतीक्षा' कर दीजिए। :)
पटिरयों - पटरियों
इस कविता कि अंतिम चार पंक्तियाँ जिन्हें हिन्द युग्म के पाठकों ने बहुत सराहा था, प्रयोग के तौर पर, जानबूझ कर हटा दिया हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि बिना उनके भी बात पूरी हो जाती है।
ReplyDeleteजीवन एक रास्ता है जिसमें कई नदियाँ हैं
ReplyDeleteमगर अच्छी बात यह है
कि नाव है और नदियों पर पुल भी बने हैं।
गंभीर जीवन दर्शन ...जीवन की वास्तविकता यही है ...
पर हम दोनों पुलों को नजर अंदाज कर देते हैं ......
विचारणीय पोस्ट
ट्रेन की सीटी
ReplyDeleteआगे बढ़ने का एक अवसर है
...gahare jeevan-darshan.
रेलगाड़ी की setup में से ये तो जिंदगी का बढिया फलसफा कह गए आप.. बहुत अच्छे, लिखते रहिये ...
ReplyDeleteक्रासिंग के दोनों ओर भीड़ है
ReplyDeleteभी़ड़ के चेहरे हैं
चेहरे पर अलग-अलग भाव हैं
अपने-अपने घाव हैं....
खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
देवेन्द्र जी ..ये ही जीवन है ... चलते रहना ... प्रतीक्षा के लिए कोई स्थान नहीं है न गुंजाईश ... आभार ...
संत-शांत नदी जो बहती रही...केदाराघट वाली गँगा याद हो आयीं.
ReplyDeleteआभार इसे लिखने का.
रेलवे क्रासिंग बंद है
ReplyDeleteमगर अच्छी बात यह है कि
ट्रेन के गुजर जाने के बाद खुल जाती है।
Ye ek santvana hai! Behad gahan rachana hai!
जीवन का एक यह भी दार्शनिक अंदाज़ है सोचने का ...बहुत सूक्ष्म अवलोकन है ...अच्छी रचना ..
ReplyDeleteसार्थक चिन्तन। अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें।
ReplyDeleteकमाल की प्रभावशाली रचना देवेन्द्र भाई !बधाई आपको !!
ReplyDeleteट्रेन की बिम्ब में जीवन की रफ़्तार को ढाल दिया है आपने ... जीवन में भी इस रफ़्तार के उतार चाडाव आते रहते हैं ... बहुत अच्छी रचना है ....
ReplyDeleteहम भी कष्टों की ट्रेन निकल जाने की प्रतीक्षा करते हैं।
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी,
ReplyDeleteजीवन की आपाधापी को केन्द्रित ये रचना बहुत अच्छी लगी.
ट्रेन की सिटी और ये कविता दोनों ही अच्छे है !!
ReplyDeleteबेहतरीन बिम्ब , सुघड कविता , और मेरे लिए देवेन्द्र जी कवि से अधिक दार्शनिक साबित हुए ! साधुवाद !
ReplyDeleteवाह क्या चित्र पेश कर दिया...रेलवे क्रासिंग के ज़रिये...हम तो उन्ही चेहरों को पढ़ने में ही मशगूल हो गए. सुंदर रचना.
ReplyDeleteबेहतरीन कविता.
ReplyDeleteअति सूक्षम प्रेक्षण ।
ReplyDeleteहाँ ! सबको मंजिल पर जाने की जल्दी है , लम्बी प्रतीक्षा विवशता ही है . सुन्दर रचना ........ बधाई स्वीकार करें ...
ReplyDeleteदेवेन्द्र भाई, आपकी कलम से बिलकुल नए अंदाज की कविता देखकर अच्छा लगा। आपने जो विषय लिया उसका निर्वाह किया। बधाई। दो सुझाव हैं।
ReplyDeleteअवसर
चीटीं की चाल से चलती एक लम्बी मालगाड़ी है
में- चलती- की जगह -चलता- होना चाहिए।
रेलवे क्रासिंग बंद है
मगर अच्छी बात यह है कि
ट्रेन के गुजर जाने के बाद खुल जाती है।
में -खुल जाती है- की जगह -खुल जाता है- होना चाहिए।
क्या अंदाज़ है... लाजवाब!!! एकदम नयापन लिए हुए. जीवन दर्शन को एक अलग ढंग से प्रस्तुत किया है. बधाई
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी आप अपनी रचनाओं में समकालीन आधुनिक बिम्बों को जिस तरह पिरोते हैं वह बेमिसाल है! ब्रैवो!
ReplyDeleteआप कविता को एक समकालीन संस्कार दे देते हैं एक आधुनिक बोध ....और वह सहज ही समझ आती है !
यह कविता भी जीवन के रास्तों ,रुकावटों की सहज प्रतीति करा जाती है !
देवेन्द्र जी,
ReplyDeleteबस इतना ही कह सकता हूँ ...वाह...वाह और शब्द नहीं मिल रहे......कितने सरल शब्द .....कितना गहरा अर्थ.....वाह |
साहित्य ही एक ऐसा जरिया है जिससे हम समाज की बुराइयों को सामने ला सकतें हैं | और इसमें कवितात्मक अभिब्यक्ति ही ज्यादा प्रभावी होती है|
ReplyDeleteसुन्दर रचना, बहुत - बहुत शुभकामना
जिन्दगी के आपाधापी का सजीव चित्रण ! बहुत सुंदर है ये कविता ! बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गहरे जीवन दर्शन ली हुई रचना !
ReplyDeleteउम्दा कविता के लिए हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteधन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
bahut Majedar...
ReplyDeleteरंजीत जी,
ReplyDelete...क्षमा करें, यह कविता मजेदार तो नहीं है।
रेलवे क्रासिंग बंद है
ReplyDeleteमगर अच्छी बात यह है कि
ट्रेन के गुजर जाने के बाद खुल जाती है।
आज के जीवन की आपा धापी का बडा ही
सजीव चित्र प्रस्तुत करती हुई कविता
रेलवे क्रासिंग बंद है
ReplyDeleteमगर अच्छी बात यह है कि
ट्रेन के गुजर जाने के बाद खुल जाती है।
या फिर शायद अगली ट्रेन की प्रतीक्षा में बन्द भी रहती है बिलकुल मेरे गाँव (फुलवरिया-लहरतारा के नज़दीक) के पास की क्रासिंग.
सुन्दर रचना ..
जीवन दर्शन का एक आयाम है इस कविता में
ReplyDeleteसब में एक समानता है
ReplyDeleteसबको मंजिल तक जाने की जल्दी है
लम्बी प्रतीक्षा-एक विवशता है।
जिन्दगी तभी सुरु होती है जब प्रतीक्ष्या किसी मंजिल की खत्म हो जाती है.यहीं,इसी पल में अस्तित्व के प्रति ह्रदय, धन्यवाद से पूरी तरह सरोबार हो जाए तो जिंदगी आनंद की वर्षा करने लगती है.
ReplyDeleteजीवन की बढ़िया परिभाषा...बड़ी ही सटीक और प्रभावशाली रचना..बधाई
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