गुस्सा
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जीवन में अपने सीखो तुम
गुस्से पर काबू करना।
मीठी बोली बोल के बच्चों
दुश्मन का भी मन हरना।।
बाती जलती अगर दिये में
घर रोशन कर जाती है
बनी आग तो स्वयं फैलकर
तहस नहस कर जाती है
बहुत बड़ा खतरा है खुद में,
गुस्सा बेकाबू रहना।
जल्दी से बच्चों सीखो तुम
गुस्से पर काबू करना।।
खिलते हैं गर फूल चमन में
भौरें गाने लगते हैं
बजते बीन सुरीले जब भी
अहि को भाने लगते हैं
कौवे कोयल दोनों काले
एक बोल मधु का झरना।
जल्दी से बच्चों सीखो तुम
गुस्से पर काबू करना।।
सूरज करता क्रोध अगर तो
सोचो सबका क्या होता
कैसी होती धरती अपनी
कैसा यह अंबर होता
करती नदिया क्रोध जब कभी
कैसी होती है धरती
जल थल नभ का प्यार परस्पर
सिखलाता है दुख हरना।
जल्दी से सीखो बच्चों तुम
गुस्से पर काबू करना।।
इसीलिए कहता हूं तुमसे
क्रोध स्वयं सीखो सहना
पानी जैसा किसी रूप में
धूप शीत सीखो बहना
गुस्सा बुरा जहर के जैसा
बस सीखो इसको महना।
जल्दी से सीखो बच्चों तुम
गुस्से पर काबू करना।।
..........@देवेन्द्र पाण्डेय।
गुस्सा बहुत बुरा है। इसमे जहर छुपा है।
ReplyDeleteयकीनन ..
बहुत सुन्दर सन्देश
सुन्दर सीख, शुक्रिया!
ReplyDeleteरचना तो काफी फलसफे वाली है, बच्चों से ज्यादा तो हमें वयस्कों के लिए लगी ... बच्चों को तो बचपने वाली भाषा में ही समझाना चाहिए, ऐसा मेरा मत है....
ReplyDeleteकविता वो दमदार है... लिखते रहिये ....
बहुत हृदयस्पर्शी बाल कविता, आपकी तो काव्य प्रतिभा विलक्षण है आनंद जी ......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना है देवेंद्र जी ,
ReplyDeleteये बच्चों से ज़्यादा हम बड़ों को सीखने की ज़रूरत है ,
इस सार्थक पोस्ट के लिये बधाई
इसीलिए कहता हूँ बच्चों, क्रोध कभी भी ना करना
ReplyDeleteजब तुमको गुस्सा आए तो ठंडा पानी पी लेना।
हर ठोकर सिखलाती हमको, कैसे है बचकर चलना
जल्दी से सीखो बच्चों तुम, गुस्से पर काबू करना।
आज बहुत सुन्दर सन्देश दिया है बच्चों को बाल दिवस पे उपहार अच्छा लगा। नेहरू जी को सादर श्रद्धाँजली।
बहुत अच्छी रचना ...केवल बच्चों को ही नहीं सीखनी हैं यह बातें ..बड़ों के लिए भी उपयोगी
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति....आभार
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, अलग अलग प्राकृतिक उदाहरण के माध्यम से आपने बहुत सुन्दर संदेश दिया है...
ReplyDeleteबाल दिवस का नायाब तोहफ़ा है आपकी रचना.
करता सूरज अगर क्रोध तो सोचो सबका क्या होता
ReplyDeleteकैसी होती यह धरती और कैसा यह अंबर होता ...
सार्थक कविता आज के दिन देवेन्द्र जी ... आपको बाल दिवस ही हार्दिक शुभकामनाएं ...
प्रेरक प्रस्तुति।
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, हम भी कोशिश करेंगे गुस्सा न करने की।
ये गीत बच्चों को गवाने के लिये ठीक है.मगर गुस्सा या क्रोध प्राकृतिक गुण है जो ये समझनेसे खत्म नहीं होता की ये बुरा है.
ReplyDeleteक्रोध सब जला देता है। सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबाल दिवस पर सुन्दर सीख देती कविता ! देवेन्द्र जी आप सुन्दर मन: ब्लागर हैं !
ReplyDeleteबहुत उपयोगी sikh di है bhai ji aapne |
ReplyDeleteशुभकामनाये
जब तुमको गुस्सा आए तो ठंडा पानी पी लेना।
ReplyDeletebahut sunder.
बहुत बढ़िया सीख दी हैं आपने.
ReplyDeleteनिश्चित रूप से सभी को आपकी इस सीख पर अमल करनी चाहिए.
धन्यवाद.
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बहुत मुश्किल काम है।
ReplyDeleteबच्चों से ज्यादा तो हमें जरुरत है गुस्से पे काबू करने कि बहुत अच्छी प्रेरणादायक पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संदेश.
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
बिलकुल सही बात है देवेन्द्र जी ....क्रोध तो मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है....और गीत के माध्यम से बच्चों को ये सिख बहुत सुन्दर प्रयास....शुभकामनायें|
ReplyDeleteगुस्सा बहुत बुरा है। इसमे जहर छुपा है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सीख दी हैं आपने
बाल दिवस के परिप्रेक्ष में सबों के लिए सन्देश परक व साथर्क रचना .. हमें भी मनन अवश्य करना चाहिए . बधाई .........
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteसुन्दर संदेशप्रद बच्चों बड़ों सबके लिए कल्याणकारी रचना...
वन्दे मातरम,
ReplyDeleteयह सिख केवल बच्चों के लिए ही नहीं वरन हम सभी के लिए उपयोगी है...
सार्थक एवं प्रभावी लेखन के लिए सादर शुभकामनायें |
देवेन्द्र जी! इसे आपने बाल गीत क्यों कहा.. यह तो हम जैसे बूढों को भी सीखनी चाहिए!
ReplyDeleteबच्चों को बहुत अच्छा सन्देश दिया है आपने बाल दिवस पर.
ReplyDeleteये कविता सभी के लिए सार्थक है.
गुस्सा बहुत बुरा है। इसमे जहर छुपा है।
ReplyDeleteसार्थक एवं प्रभावी सन्देश लिए... प्रेरणादायक पोस्ट
बढ़िया सीख....
बाती जलती अगर दिए में, घर रोशन कर देती है
ReplyDeleteबने आग अगर फैलकर, तहस नहस कर देती है।
बहुत बड़ा खतरा है बच्चों, गुस्सा बेकाबू रहना
जल्दी से सीखो बच्चों तुम, गुस्से पर काबू करना।
वाह.....क्या बात है .....!!
करता सूरज अगर क्रोध तो सोचो सबका क्या होता
कैसी होती यह धरती और कैसा यह अंबर होता।
धूप-छाँव दोनों हैं पथ में, किस पर चाहोगे चलना
जल्दी से सीखो बच्चों तुम, गुस्से पर काबू करना।
क्या कहूँ देवेन्द्र जी ....?
हर पंक्ति जीवन का फलसफा सिखाती है .....
कितने सरल सहज शब्दों में आपने जीवन की तमाम सीख दे दी ....
इस बाल कविता के लिए आपको नमन है ......!!
अभी मैं सोच ही रही थी कि पिछली पोस्ट पर आप नहीं आये ..
पता नहीं कहाँ व्यस्त हैं ....कि आप कि हाजरी लग गई ....
सार्थक एवं प्रभावी सन्देश लिए... प्रेरणादायक पोस्ट
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा सन्देश.......
ReplyDeleteयह कविता तो हम सब के लिए है !!!
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ReplyDeleteखिलते हैं जब फूल चमन में, भौंरे गाने लगते हैं
बजते हैं जब बीन सुरीले, सर्प नाचने लगते हैं।
कौए-कोयल दोनों काले किसको चाहोगे रखना
जल्दी से सीखो बच्चों तुम, गुस्से पर काबू करना...
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सार्थक एवं प्रेरणादायक पोस्ट !
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गुस्सा तो बड़ों के लिए भी बहुत बुरा है भाई ।
ReplyDeleteदेवन्द्र जी,
ReplyDeleteआपकी कविता बच्चों के साथ साथ बड़ों को भी सीख देती हुई भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति है !
कविता तो सभी लिखते हैं मगर बच्चों के लिए सहज कविता लिखना बहुत ही मुश्किल है !
बधाई !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Behad sundar kavita!Gussa waqayi sabkuchh raakh kar deta hai!
ReplyDeleteगुस्सा बहुत बुरा है। इसमे जहर छुपा है।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा