एक आदमी कुएँ की जगत पर बैठकर रो रहा था । पूछने पर कहने लगा......अभी-अभी नीचे एक कवि कूद गया ! तो..? तुम उसके मरने पर दुःखी हो ? उसने कहा, नहीं...मैं इसलिए रो रहा हूँ कि इसने अपनी कविता सुना दी मगर जब मेरी सुनाने की बारी आई तो कुएँ में कूद गया।
कविता भी पढ़ ला । हौ पुराना.....!
फागुन का त्यौहार
जले होलिका भेदभाव की, आपस में हो प्यार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
हो जाएँ सब प्रेम दीवाने
दिल में जागें गीत पुराने
गलियों में सतरंगी चेहरे
ढूँढ रहे हों मीत पुराने
अधरों में हो गीत फागुनी, वीणा की झंकार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
बर्गर, पीजा, कोक के आगे
दूध, दही, मक्खन को खाये !
कान्हां की बंसी फीकी है
राधा को मोबाइल भाये !
इन्टरनेट में शादी हो पर, रहे उम्र भर प्यार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार
अपने सोए भाग जगाएँ
दुश्मन को भी गले लगाएँ
जहाँ भड़कती नफ़रत-ज्वाला
वहीं प्रेम का दीप जलाएँ
भंग-रंग पर कभी चढ़े ना, महंगाई की मार
तब समझो आया है सच्चा, फागुन का त्यौहार.
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का कहबा ? कमेंट बाक्स बंद हौ ! जब कोई ऐसी चालाकी करे । अपनी सुना दे, दुसरे को कुछ कहने का मौका ही न दे तो बनारस में कहते हैं ....... हौ पुराना...! वैसे भी चुटकुला, गीत दुन्नो....हौ पुराना ।
बुरा न मानो होली है।