14.5.11

दूर देश का शिकारी


दूर देश का शिकारी
घुस गया
एक दिन
जहरीले सर्पों के देश
बदलकर भेष
एक बड़े विषधर को मार
चीखने लगा..
मैने उसे मार दिया जिसने मुझे काटा था !

सर्प दंश से परेशान
सभी उसकी बहादुरी पर ताली पीटने लगे
देखते ही देखते
वह हीरो बन गया !

पड़ोसी देश भी
चाहता है करना
उन सर्पों का शिकार
जो उसे काट कर
जा छुपे हैं
सर्पों के देश
मगर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा

जानता है
वह उतना ताकतवर नहीं
जितना
शिकारी
और यह भी
कि दुष्ट पड़ोसी
खुद को साधु कहता है !

कहता है
नहीं रहते यहाँ
एक भी
साँप-बिच्छू !

दूर देश का शिकारी भी कमाल करता है
जो खुद को साधु कहते हैं
उन्हें दूध पिलाता है
जो फन उठाते हैं
उन्हें कुचल देता है
नाचते हैं बहुतेरे
उसकी बीन पर !

सर्प देश का पड़ोसी
बंदूक ले
अपनी सीमाओं पर पहरे देता है
सर्प दंश से बेहाल
हांकता है
हांफता है
भूले से कभी
पकड़ भी लिया किसी को
तो मार नहीं देता
एक बड़े से जार में कैद कर
खिलाता है दूध-भात
चलाता है मुकदमा ।

41 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर देवेन्द्र जी ! आभार

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  2. इशारों इशारों में बहुत कुछ कह दिया आपने .....

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  3. teenon deshon ki sthitiyon ka sateek chitran
    bahut badhiya vyangy

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  4. पाण्डेय जी जिस देश में सर्प को पहचान कर भी लोग उस इस डर से रस्सी पुकारें की कहीं सर्प की भावनाओं को ठेस न पहुंचें और सत्य का विश्लेषण करने वाले को घमंडी, नासमझ की उपाधि दें उस देश के लोगों से आप क्यों बेकार की उम्मीदें पालते हैं. मासूम साहब से प्रेरणा लें और धीरे से अकेले में सर्प के कान में कह दें की उसके मन में जहर भरा है इससे उसकी इज्जत भी बची रहेगी और वो लोगों को काटना छोड़ देगा जिससे सारे देश का भला होगा. हर प्राणी की भावनाओं को समझें उनकी (विष धारण करने वाली )विशेषताओं का सम्मान करें.

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  5. उच्च कोटि का सटीक व्यंग हमारे देश की लचर व्यवस्थाओं पर ।

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  6. @विचार शून्य जी...
    कान में धीरे से...! अरे धीरे से क्या इधर हम कान में चीख-चीख कर परेशान हो चुके हैं, उधर लोग देख रहे हैं 'कान' में 'गा गा'..

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  7. जो कहना जरूरी था सब कुछ कह दिया आपने .....

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  8. वाह क्या ब्यंग है ! मजा आ गया.

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  9. पांडेयजी !छा गए !जिस देशका प्रधानमन्त्री एक बिजूका (क्रो -स्केयर -बार )हो ,जिससे पक्षी भी न डरतें हों ,वह दाऊद को पकड़ भी लेगा तो उसे "कसाब के पास बिठाकर ज़िमायेगा ,बिरयानी ,पुलाव खिलाएगा "।
    बेहतरीन सर -संधान करती है आपकी रचना .यहाँ तो देश में ही कई ओसामाहैं हम सेक्युलर जो ठहरे ,कहीं से कोई एक ईंट दरक जाए तो उसमे से चार ओसामा निकलेंगें .

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  10. दूर देश वाले पर नो कमेण्ट। पड़ोसी देश वाला लल्लू है!

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  11. सटीक व्यंग। कहाँ एक साँप और साँपों का देश।

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  12. सांप को दूध पिलाने की यहाँ पुरानी रिवाज़ है ।

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  13. सटीक रचना ...
    सटीक व्यंग्य ...
    अन्दाज निराला

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  14. तीखा व्यंग्य किया है ...शुभकामनायें आपको पाण्डेय जी !

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  15. सटीक व्यंग ...बहुत बढ़िया ...आभार !

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  16. • इस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है।

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  17. व्यंग की धार तेज है , . सापों के देश के पडोसी को ,शिकारी बनने के लिए आत्मबल टाइप की कोई चीज़ जुटानी होगी .

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  18. बहुत सटीक व्यंग .. साँपों को पाल कर दूध पिलाने की परम्परा रही है ... देश भी पिला रहा है ...अच्छी रचना

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  19. वाह क्या मारा है सपेरे को -सांप भी देर सवेर मारा ही जाएगा :)

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  20. hum jante hain ki ye sanp kaha se ate hai, or apke fenke khajar kidhar jate hain. . . . . . . . Jai hind jai bharat

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  21. दूर देश का शिकारी भी कमाल करता है
    जो खुद को साधु कहते हैं
    उन्हें दूध पिलाता है
    जो फन उठाते हैं
    उन्हें कुचल देता है
    नाचते हैं बहुतेरे
    उसकी बीन पर !
    anupam rachna

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  22. आने वाले समय में शिकार के लिये भी आऊटसोर्सिंग की जायेगी।

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  23. ‘पड़ोसी देश भी
    चाहता है करना
    उन सर्पों का शिकार;

    उसके पास हिम्मत का तीर हो, तब ना :)

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  24. दूर देश का शिकारी खुद भी तो इन सांप से कम नही... इस लिये ऎसे दुष्ट से बच कर रहे,ओर मिल जुल कर उस का अंहकार भी तोडे,अपने मतलब के लिये उस के तलवे ना चाटे, आज वो पडोसी का सर कुचता हे कल हमारा ना० भी आ सकता हे...
    बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

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  25. जेब्बात देवेन्द्र भाई!
    सांप संपोले सब समाप्त हो जायेंगे.. लेकिन हम जो नाग पंचमी डिक्लेयर किये बैठे हैं उसका क्या..!!

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  26. दूर देश की छोडो, यहाँ तो अपने देशी कम है क्या।

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  27. वह रे दूर देश का शिकारी...........:)

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  28. हैट्स ऑफ.....ज़बरदस्त.....

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  29. नक्शा खैंच दिया आपने ... भारत क्षेत्र का ... ये सिलसिला जारी रहेगा जब तक देश जागता नही ... नेता लोग वोट की राजनीति बंद नही करते ...

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  30. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! सटीक व्यंग्य! उम्दा प्रस्तुती!

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  31. पांडेय जी आपकी पूरी कविता पर्यायोक्ति अलंकार है तुलसी बाबा ने मानस में बहुत प्रयोग किया है इस अलंकार का

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  32. बृजमोहन जी,
    आपने छंदमुक्त कविता (अकविता) में भी अलंकार ढूंढ लिया!

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  33. सच कहा ......अच्छी प्रस्तुति
    अपने देश की मजबूरी और पडोसी की बेशर्म सीनाजोरी .....वाकई चिंतनीय है

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  34. Sir ji aapne pucha tha ki me hindi ki tippani padh leta hun kya? Han me padh leta hun , bus hindi me likhne me samsya hai, . . . . . . . Jai hind jai bharat

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  35. सटीक व्यंग ......
    लाजवाब रचना!

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  36. बहुत बहुत सही....

    देखना है सपेरा खुद को कब तक बचाता है अपने ही पोसे इन साँपों से जो दिन बा दिन और भी जहरीले हृष्ट पुष्ट और सबको डंसकर समाप्त कर देने को आतुर होते जा रहे हैं..

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  37. क्या कमाल लिखा है..सांप भी मर गया और आपकी लेखनी भी सलामत है ..दुआ है..... हमेशा रहेगी ...

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  38. सामयिक है। चकाचक!

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  39. वाह क्या मारा है सपेरे को -सांप भी देर सवेर मारा ही जाएगा :)

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