3.12.11

पिता



चिड़ियाँ चहचहाती हैं 
फूल खिलते हैं 
सूरज निकलता है 
बच्चे जगते हैं 
बच्चों के खेल खिलौने होते हैं 
मुठ्ठी में दिन 
आँखों में 
कई सपने होते हैं 
पिता जब साथ होते हैं 

तितलियाँ 
उँगलियों में ठिठक जाती हैं 
मेढक 
हाथों में ठहर जाते हैं 
मछलियाँ
पैरों तले गुदगुदाती हैं
भौंरे 
कानों में
सरगोशी से गुनगुनाते हैं 
इस उम्र के 
अनोखे जोश होते हैं 
हाथ डैने
पैर खरगोश होते हैं 
पिता जब साथ होते हैं। 

पिता जब नहीं होते 
चिड़ियाँ चीखतीं हैं 
फूल चिढ़ाते हैं 
खेल खिलौने  
सपने 
धूप में झुलस जाते हैं 
बच्चे 
मुँह अंधेरे 
काम पर निकल जाते हैं 
सूरज पीठ-पीठ ढोते
शाम ढले 
थककर सो जाते हैं। 

पिता जब नहीं रहते 
जीवन के सब रंग 
तेजी से बदल जाते हैं 
तितलियाँ, मेढक, मछलियाँ, भौंरे 
सभी होते हैं 
इस मोड़ पर 
बचपने
कहीं खो जाते हैं 
जिंदगी हाथ से
रेत की तरह फिसल जाती है
पिता जब नहीं रहते 
उनकी बहुत याद आती है।

पिता जब साथ होते हैं 
समझ में नहीं आते 
जब नहीं होते 
महान होते हैं। 


.......................

35 comments:

  1. कविता बहुत कुछ कहती है।

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  2. होने पर कदर करें न कि खोने के बाद, लेकिन कई बार समझ ही देर से आती है।

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  3. हाथ डैने पैर खरगोश होते हैं
    जब पिता साथ होते हैं

    गज़ब का बिम्ब ....
    सम्पूर्ण कविता ही प्रशंसनीय

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  4. अभिभावक को समर्पित यह कविता आज क्यों ? कोई विशेष बात या बस ऐसे ही रचना धर्म ?

    बहरहाल आपकी कहन सोद्देश्यपूर्ण है ! सुन्दर है !

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  5. अली सा...

    कविता पुरानी है। आज बस ऐसे ही..यूँ ही..मन हुआ इसे पढ़ने का..पढ़ाने का।

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  6. सार्वभौमिक सत्य है जब पास होते हैं तब समझ नहीं आते हैं, जब नहीं होते हैं, महान होते हैं ।

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  7. gahan ....aur arthpoorna .. abhivyakti ...

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  8. बचपन की अनुभूतियाँ- आज भी तारो ताज़ा मगर अब आप पिता हैं बदलाव ला सकते हैं -बच्चों को शुभकामनाएं और उनके बाप को भी !

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  9. एक सहारा सबके सर हो,
    मुक्त गगन हो, उड़ते पर हो,

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  10. आखिरी पंक्तियों में अचानक बड़े हो गए ।
    बहुत सही कहा है । संवेदनाओं के साथ परिपक्वता भी ।

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  11. जज्बातों का दरिया बहा दिया देवेन्द्र जी. लेकिन जो कहा वह शाश्वत सत्य है. बधाई.

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  12. Yahee bhavna mujhe apne dadaa ji ke liye hai...

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  13. दिल के भावों को अक्षर की शक्ल दे दी है,यह अलग बात है कि किसी के न रहने पर ही हम उसको जान पाते हैं !
    पिता को समर्पित अद्भुत रचना !

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  14. किसी के नहीं होने पर ही मोल पता चलता है . तब वो अनमोल हो जाता है.

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  15. पिता को समर्पित सुन्दर रचना ...

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  16. @ देवेन्द्र जी ,
    ना कहूंगा तो गलत होगा ! आज आपका फोटो देखते हुए याद आया कि शायद यह उसी दिन वाला फोटो है जब आप और भाभी सैर को निकले थे और मैंने दोनों की नज़र उतारने कहा था !

    पता नहीं कैसे ये ख्याल आया कि अगर आपके चेहरे पर घनी मूंछे होती जोकि मो सम कौन की तुलना में नीचे की ओर कुछ ज्यादा उतरतीं ( आपने क्रिकेटर ब्रजेश पटेल की मूंछें देखी हों तो वैसी ही ) तो आप किस कदर स्मार्ट दिखते !

    ज़रा भी मजाक नहीं एकदम सीरियसली कह रहा हूं :)

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  17. पिता के संबंधों को दर्शाती हुई रचना और उनके ना होने पर .............सुंदर अतिसुन्दर बधाई

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  18. वाह! पिता पर लिखी सुंदरतम कविताओं में से एक! बधाई, देवेन्द्र भाई!!

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  19. अतिसुन्दर रचना.इसमे बिम्बोका बहुत सुन्दर प्रयोग हुआ है.बधाई है.
    जिन बच्चोंके पिता के अलावा और कोई नहीं होता,उनके जीवन में पिता के बाद यही तो हाल है.

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  20. हृदयस्पर्शी!

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  21. पिता जब होते हैं, तो अनुशासन के चलते भय लगता है। जब नहीं रहते, तो भय भी लगता है और अन्धकार भी! :(

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  22. बहुत खूब ... पिता के लिए पढ़ी गई लाजवाब रचनाओं में से एक ... पिता के होने और न होने के भाव को बाखूबी उतारा है आपने शब्दों में ...

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  23. बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति .....

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  24. बहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!

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  25. मार्मिक यादें उनके स्नेह की हमेशा आएँगी ...वह रिक्त स्थान कभी नहीं भरेगा !
    शुभकामनायें आपको !

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  26. पिता का साया कितना ज़रूरी है शायद ये उनके न होने पर ही पता चल पता है........बहुत सुन्दर और दिल को छू लेने वाली पोस्ट|

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  27. सोचता हूँ जो लोग फादर्स डे की प्रतीक्षा करते हैं ऐसी कविता लिखने के लिए, उनके लिए बस एक उदाहरण कि पिता की स्मृति या उनके प्रति आभार/प्रेम प्रकट करने के लिए वर्ष का कोई अंग्रेज़ी दिन नियत किया जाना अनिवार्य नहीं.. वह जिस दिन ह्रदय से प्रस्फुटित हो वही दिन पित्री दिवस बन जाता है!!
    यह कविता कमेन्ट से परे है!! बस आत्मसात करने योग्य!!
    देवेन्द्र भाई! आभार आपका!!

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  28. vivek rastogi ji ki baat se poori tarah sahamat hoon
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/samay mile kabhi to aaiyegaa meri post par aapka svagat hai

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  29. पिता पर लिखी एक खूबसूरत कविता.. भावुक करती है.. ..
    (नोट : चुहल पर सुबह सुबह आपकी चुहलबाजी अच्छी लगी... वहां कमेन्ट बाक्स बंद है सो यहाँ चुहलबाजी कर रहा हूं.. क्षमा सहित)

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  30. भाई पाण्डेय जी बहुत ही अच्छी कविता बधाई |

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  31. क्या बात कही.....

    मर्मस्पर्शी भावपूर्ण....

    सत्य है,साथ होते मूल्य हीन और न होते अमूल्य हो जाते हैं ये...

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  32. इसके लिए बस धन्यवाद ही बनता है

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  33. पिता का न होना जैसे मई जून की तीखी धूप में नंगे पाँव, उघड़े सिर चलते रहना...

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