अस्सी में...पप्पू की अड़ी पर बैठा था। लोकपाल बिल पर बड़ी गरमा गरम बहस के बीच मैने कहा.."खौला चकाचक गुनगुना हो गया है, भारी गदा था झुनझुना हो गया है।" सभी कहने लगे..बहुत सही...आगे ? आगे घर आकर लिखा। अली सा से पूछा कि ठीक है ? वे बोले, "यहां-यहां गड़बड़ है बाकी सब ठीक है।" दूसरे वाले शेर के पहले मिसरे में खामियाँ बता कर वो बोले, "आप गज़ल लिख रहे हो, मतलब मुसीबत में हो। मैं मुसीबत मोल नहीं लेता।" मैने हामी भरी। गज़ल लिखना मतलब मुसीबत मोल लेना ही है। जो कहना चाहते हैं उसे गज़ल में अभिव्यक्त कर पाना बड़ा ही कठिन काम है। उनके कहे अनुसार दूसरे शेर को सुधार दिया। वैसे भी समय कम मिलता है। तीन दिन बाद यह गज़ल पूरी हुई मान कर प्रकाशित कर रहा हूँ। इसमें आप भी प्रयास कर सकते हैं तो करें..और अच्छी गज़ल बन जाय। नव वर्ष 2012 में आप सभी पर ( मेरे बाद ) सरस्वती की कृपा बनी रहे। आप सभी बहुत अच्छा लिख पायें और खूब कमेंट पायें। अभी प्रस्तुत है बड़ी मेहनत से लिखी यह गज़ल ..झूठी तारीफ मत कीजियेगा । सही-सही बताइये कि कैसी है ?
खौला चकाचक
गुनगुना हो गया है
भारी गदा था
झुनझुना हो गया है।
मैली सही पर
डुबकियाँ तो लगाओ
थैला अचानक दो
गुना हो गया है।
गन्दा नहाता ही
कहाँ सर्दियों में
चन्दन लगा कर
चुनमुना हो गया है।
कैसी शरम किसका
रहम-ओ-करम है
अपना 'सरौता' रहनुमा
हो गया है।
हाकिम हमेशा जो कहे
वो सही है
आदेश पढ़कर
कुनमुना हो गया है।
पप्पू दुकनियाँ बड़बड़ाता
बहुत है
घर में अकेले भुनभुना
हो गया है।
देवेंदर जी साल के जाते जाते कमाल करदिया बढ़िया गजल लोकपाल पर
ReplyDelete.......नववर्ष आप के लिए मंगलमय हो
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
सही सही कह रहे हैं, बहुत सुन्दर और सटीक लिखा है आपने. झुनझुने जैसा ही होकर रह गया है ये लोकपाल... नव वर्ष की हार्दिक शुभकमनाएं...
ReplyDeleteमस्त!
ReplyDeleteएक मिसरा हमरी ओर से भी जोड़िये तो...
समझते थे जिसे समझदार, बहस-तलब बुद्धिजीवी
देखो तो कैसे कम्बख्त वह 'निगड़ा' हो गया है :)
# निगड़ - हाथी के पांव में बान्धी जाने वाली लोहे की सिकड़ी।
लोकपाल तो अब अनसुना हो गया है।
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसमझते हैं मसीहा हम जिसे अपना,
ReplyDeleteहुक्काम के लिए वो 'भगोड़ा' हो गया है !
बढ़िया प्रयास ...ग़ज़ल में आज़माइश और अली सा की समझाइस, सोने पे सुहागा !
सतीश जी..
ReplyDeleteमस्त शेर, सही बात लिखी है आपने
मुसीबत फिर काफिये का 'लफड़ा' हो गया है।
शानदार....जानदार ! नए शाल की ढेरों शुभकामनाये आपको !
ReplyDeleteबढ़िया कहें है भाई.....कौनो कमी नाही है.....नया साल मुबारक हो आपको और आपके प्रियजनों को |
ReplyDeleteVaah Devendr Ji .... Prayas kamaal ka hai ... Ab kya kahne ...
ReplyDeleteNaya sher mera banate banate
Bivi se Ab to jhagda ho Gaya hai ....
Aapko naye Saal 2012 ki Bahut Bahut mangal kamnayen ....
काहे जगाते हो यह लोकतन्त्र, अन्नाजी,
ReplyDeleteमौसम हसीं, वह नींद में, कुनमुना हो गया है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!...नववर्ष की मंगल कामना
ReplyDeleteअब गज़ल है कि नहीं यह तो बताने वाले बताएंगे। पर जो भी है गजब है।
ReplyDeleteहमारी मुसीबत से मुंह मोडकर ,
ReplyDeleteजो नेता था वो बदगुमाँ हो गया!
.
जिसे समझा चन्दन लगाया था माथे,
वही दाग इक बदनुमा हो गया.
.
'सलिल'कल जो बन्दर नचाता था वो
मेरा वोट ले रहनुमा हो गया!
/
पांडे जी, बहुत खतरनाक काफिया देये हैं आप.. बहर संभालो तो काफिया तंग पड़ जाता है और काफिया संभालो तो बहर से पाँव बाहर आ जाते हैं!! जल्दबाजी में इतना ही... हो सका तो इसी साल कुछ और अशआर जोड़ने की कोशिश करूँगा!!
आप की प्रतीक्षा में शाम होने को आई
ReplyDeleteकाफिया बहर दुन्नो कठिन हैं बड़े भाई
22 122 212 2122
आज जल्दबाजी में अशआर जोड़ते चले जायेंगे
कभी काफिये में, कभी बहर में उलझ जायेंगे
बदनुमा, बदगुमाँ को बाहर निकालने के लिए शुक्रिया। दुन्नो दिल्ली में थे! और हम यहां बनारस में ढूँढ रहे थे।
kamal ka prawah
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन गजल लोकपाल पर .....
ReplyDeleteनया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
गजल वो भी लोकपाल पर..हुन -हुना है..
ReplyDeleteये ग़ज़ल क्या सुनायी है आपने सारी खुशी हवा हो गयी है :)
ReplyDeleteनए साल पर नए कवित्त फूटें और परिवार चकाचक याहे ...
शुभकामनायें!
शानदार गज़ल! वाह रे लोक-पाल……लोगों को एशो आराम से पलने पालने के तरीके में बैरियर खड़ा करने वाला बिल आसानी से कैसे पास होता………आशा करें वर्ष 2012 देश-वासियों के लिये, सबके लिये सुकून भरा हो……हार्दिक शुभकामनाओं सहित………
ReplyDeleteबढिया.
ReplyDeleteवैसे हमको गजल-वजल की बिल्कुल समझ नहीं है :)