21.2.12

ई चकाचक कS बसंत हौS।

प्रस्तुत है  हास्य व्यंग्य के जनप्रिय  कवि स्व0 चकाचक बनारसी की एक कविता। देखिये बसंत को उन्होने कैसे याद किया। काशिका बोली में लिखी कविता का शीर्षक है...

बसंत हौS

जिनगी त जबै मउज में आई बसंत हौS,
मन सब कS एक राग सुनाई बसंत हौS।

खेतिहर जब अपने खून पसीना के जोर से,
सरसो कS फूल जब्बै खिलाई बसंत हौS।

कोयल क कूक अउर पपीहा कS पी कहां,
जब्बै कोई के मन के लुभाई बसंत हौS।

पछुआ के छेड़ छाड़ से कुल पेड़ आम कS,
बउरा के अंग अंग हिलाई बसंत हौS।

भंवरा सनक के, फूल से कलियन से लिपट के,
नाची औ झूम झूम के गाई बसंत हौS।

खेतन में उठल बिरहा कहरवा के टीप पर,
हउवा रहर कS बिछुवा बजाई बसंत हौS।

जड़ई भी अउर साथै पसीना छुटै लगी,
भारी लगै लगी जो रजाई बसंत हौS।

सौ सौ बरस कS पेड़ भी बदलै बदे चोला,
डारी से पात पात गिराई बसंत हौS।

केतनौ रहे नाराज मगर आधी रात के,
जोरू जो आके गोड़ दबाई बसंत हौS।

सूरज कS किरन घूम के धरती पे चकाचक,
जाड़ा के तनी धइके दबाई बसंत हौS।

.............................

24 comments:

  1. चकाचक कविता...मज़ा आ गया होS!

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  2. :-)

    कितने इशारे है...हाँ आया अब बसंत है..

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  3. चकाचक बनारसी जब गाई ,बसंत हौss
    अब ऐसा कहाँ है भाई ,बसंत हौss

    चकाचक जी की स्मृति को नमन !

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  4. :):) बढ़िया है ॥समझने में थोड़ी कठिनाई हुई

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  5. चकाचक जी का चौचक बसंत ,

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  6. कवि चकाचक, कविता चकाचक और प्रस्तुतकर्ता चकाचक.. अब इसके बाद मुदा बसंत निपटान छोड़कर भी अइबे करिहौ भैया!!

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  7. कपार सनकाई देत बा ई बसंत! :-)

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  8. मज़ा आ गया इस बसंती गीत में .. हास्य का पुट लिए गज़ब की रचना है ...

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  9. ("क्षमा" )

    वैसे तो साल भर, आत्मा रहे बेचैन ।

    कवि सचमुच का पगलाई, ता बसंत हौ

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    1. http://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/02/links.html
      दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक

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  10. चारों तरह वसंत का रंग छाया हुआ है और आपने इसमें बनारसी तड़का लगा दिया. क्या बात है...

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  11. vasant ka sundar chakachak rang bhara chitran..sundar rachna..

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  12. ओह...मनवा हरिया गइल...

    खूब सुन्नर रचना...

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  13. बना रहे बसंत! :)

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  14. बाबू बेचैन की कविता जब जब भी ब्लॉग पे आई
    तब तब समझ कि आयल बा चौचक बसंत हौ!

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  15. ये बसंत भी बड़े मजे लूट रहा है इन दिनों :)

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  16. बात तो दमदार है..बसंत तो ऐसे ही आता है..

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  17. मजा आ गया गुरू। ऐसी बसंती रचना पढ़वाने के लिये बहुत शुक्रिया।

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  18. अच्छा लगा इसे पढ़कर शुक्रिया यहाँ बाँटने के लिए !

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  19. बेहद खूबसूरत रचना ... पढ़वाने के लिए आभार

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    1. सुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई.

      कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर पधार कर अपनी अमूल्य राय प्रदान करें, आभारी होऊंगा.

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  20. चकाचक है चकाचकजी की कविता। :)

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  21. धीरेन्द्र पाण्डेयFeb 4, 2014, 5:28:00 PM

    मौज लूट रहे आज सर्दी का अंत है
    फूलों पे मंडराए भंवरा बगरो बसंत है ||----निठल्ल

    तो हियाँ कौन बैठल बा-संत है

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