4.12.13

रोज़ के यात्री



सुबह-शाम
टेशन-टेशन दौड़ते हैं
ट्रेन के
आने-जाने का समय पूछते हैं
कभी पैसिंजर
कभी सुपरफॉस्ट पकड़ते हैं
पैसिंजर पकड़कर दुखी
सुपरफॉस्ट में चढ़कर प्रसन्न होते हैं

रोज़ के यात्री
धीरे-धीरे
जान पाते हैं
कि वे
जिस ट्रेन में सवार हैं
वह पैंसिजर नहीं है
सुपरफॉस्ट भी नहीं
इसकी गति निर्धारित है
इसमें
बस एक बार चढ़ना
इससे                            
बस एक बार
उतरना होता है
यह किसी स्टेशन पर नहीं रूकती
बस..
खिड़की से देखकर होता है आभास
कि वह बचपन था
यह जवानी
अब आगे बुढ़ौती है
कब चढ़े
यह तो
सहयात्रियों से जान जाते हैं
उतरना कहाँ है ?
कुछ नहीं पता।

......................

18 comments:

  1. वाह ! कमाल कर दिया आपने.जीवन की यात्रा को ट्रेन की यात्रा, क्या खूबसूरती से बना दिया !

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  2. कमाल की सुंदर उत्कृष्ट रचना ....!
    ==================
    नई पोस्ट-: चुनाव आया...

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  3. और हम यह ध्यान भी नहीं रखना चाहते कि हमें उतरना भी है !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (05-12-2013) को "जीवन के रंग" चर्चा -1452
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. सलिल वर्मा जी के अनूठे अंदाज़ मे आज आप सब के लिए पेश है ब्लॉग बुलेटिन की ७०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़िये और आनंद लीजिये |
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन 700 वीं ब्लॉग-बुलेटिन और रियलिटी शो का जादू मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. क्या बात है-
    सभी सवारी कर रहे, सबको है एहसास |
    टेशन आयेगा जहाँ, जहाँ समंदर पास ||

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  7. जीवन की ट्रेन तो ऐसे ही चलती है ... पर स्टशन भोगते हुए चलती है ... फिर रूकती है बुढापे पे और सांसों के साथ खत्म होती है ...

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  8. कहाँ उतरना है माना यह तो पता नहीं पर उतरना है, इतना तो याद रहे.. और वहाँ के लिए कुछ विशेष तैयारी भी करनी है क्योंकि उस स्टेशन का नियम कुछ अजीब है..यहाँ का कुछ काम नहीं आता वहाँ...

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  9. भैया रेलगाड़ी में भी दर्शन क्या बात है देव बाबू |

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  10. कल 07/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  11. वाह, जीवन की सच्चाई

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  12. सुन्दर प्रस्तुति.रोज के यात्री, उन्हें भी अपनी मंजिल का पता नहीं.कैसी मशीनी जीवन बन जाता है इंसान का जीवन .दौड़, दौड़ और बस दौड़.यही है अर्जुन की आँख.

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  13. जीवन और रेलगाड़ी में बहुत साम्य है..सुन्दर कविता।

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