28.1.18

बजट

सभी अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से बजट बनाते हैं। सरकार और व्यापारी साल भर का, आम आदमी महीने भर का और गरीब आदमी का बजट रोज बनता/बिगड़ता है। सरकारें घाटे का बजट बना कर भी विकास का घोड़ा दौड़ा सकती है लेकिन आम आदमी घाटे का बजट बनाकर आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाता है। आम आदमी को सीख दी जाती है कि जितनी चादर हो, उतना ही पैर फैलाओ लेकिन सरकारों को अधिकार होता है कि मनमर्जी पैर फैलाओ। चादर छोटी पड़े तो देश/विदेश जहां देखो वहीं चादर फैलाओ। आम आदमी दूसरों के आगे चादर फैलाते-फैलाते शर्म के मारे धरती पर गड़ने लगता है और जिस दिन चादर फट जाती है, आत्महत्या कर लेता है। गरीब के पास न आय न बजट। रोज कुआं खोदो, पानी पियो। न खोद पाओ, भूखे ही सो जाओ। गरीब माल्या बनकर, बैंक से कर्ज लेकर चादर ओढ़ते हुए विदेश नहीं भाग सकता।

बजट का आधार आय है। आय नहीं तो व्यय नहीं और बिना आय व्यय के बजट कैसा? बजट बनाने के लिए आपको मालूम होना होता है कि रुपया कहां से और कितना आएगा? तभी आप व्यय की भी सोच सकते हैं। जिसके पास आय नहीं वह क्या बजट बनाएगा? नंगा नहाएगा क्या, निचोड़ेगा क्या? पकौड़ी बेचना भी रोजगार है। पकौड़ी बेचने वाला भी बजट बनाता है लेकिन उसका बजट रोज बनता/बिगड़ता है। सरकार का बजट बिगड़ने से सरकार भूखी नहीं सोती, घाटे के बजट से काम चला लेती है लेकिन जिस दिन पकौड़ी वाले का बजट बिगड़ जाता है उसे भूखे ही सोना पड़ता है। हम अपने बच्चों के लिए उस रोजगार का ख्वाब देखते हैं जिसमें उन्हें कभी भूखा न सोना पड़े। सरकार कहती है रोजगार दे दिया न? बस! अब जियादे चूं चपड़ मत करो। जब सरकार की दलील को मीडिया समझ गई तो आम आदमी की क्या औकात है! हां जी, हां जी कहना है।

जाड़े के समय एक दिन मैंने लोहे के घर में एक आदमी को चादर ओढ़ने का प्रयास करते हुए देखा था। पैर ढकता तो मुंह खुला रह जाता, मुंह ढंकता तो पैर खुला रह जाता। जाड़ा इतना कि पैर और मुंह दोनो ढकना जरूरी। अब वह क्या करे? कब तक पैर सिकोड़ता रहे? उसने एक उपाय निकाला। जूता मोजा पहन कर, मुंह ढक कर सो गया। चादर का एक सिरा मुंह को ढके था, दूसरा मोजे तक फैला हुआ था। आम आदमी ऐसे ही बजट बनाता है।

सरकार की आय का मुख्य श्रोत तमाम प्रकार के कर होते हैं जो भिखारी से लेकर अरबपति तक को देने होते हैं। किसी से सीधे टैक्स लिया जाता है किसी से घुमाकर। जो सीधे दे ही नहीं सकता उससे घुमाकर लिया जाता है। जो सीधे दे सकता है उससे सीधे भी लिया जाता है, घुमाकर भी। हर प्रकार से वसूली के बाद सरकार के पास जनता के विकास के लिए खर्च करने की ताकत आ जाती है। अखबार में पूरा हिसाब ग्राफ देकर समझा दिया जाता है। रुपया आए कहां से? रुपया जाए तक? सब लिख्खा होता है। जो समझ में न आए वह घाटा होता है और यह घाटे की भरपाई कैसे होगी आम जनता यही नहीं समझ पाती। काश कि हम भी अपने घर में घाटे का बजट पेश कर खुश हो पाते!

सरकारें पांच साल के लिए चुनी जाती हैं इसलिए पांच बार बजट बनाती है। पहले साल उसे चुनाव की चिंता नहीं होती है इसलिए कठोर बजट बनाती है। जनता नाराज हो तो हो.. ठेंगे से! टैक्स के रूप में इत्ता वसूल लो कि पिछली सरकार ने ठीक चुनाव से पहले जो जाते जाते मुफ्त गिफ्ट वितरण और कर्ज माफी वाला मनमोहक बजट किया था और जिसके कारण गाड़ी पटरी से उतर गई थी वह संभल जाय। फिर हर साल धीरे धीरे अपनी महाजनी सूरत को मनमोहक बनाती जाती है। चुनाव के साल तो धन ऐसे लुटाती है जैसे कहीं से कोई गड़ा खजाना हाथ लग गया हो। अर्थशास्त्रियों ने चेताया तो टका सा जवाब.. सरकार में फिर चुन कर आने दो सब घाटा पहली बजट में ही पूरा कर लेंगे। मतलब वही काम करती है जो पिछली सरकार ने किया था मगर इसका अंदाज अलग होता है। नई सरकार नए अंदाज में आम आदमी की पूंछ उठाती है। जनता नई सरकार के जमाने में नए अंदाज में, पहले धीरे धीरे फिर फुग्गा फाड़कर रोती है।

देश का कोई आदमी ऐसा नहीं है जो टैक्स न देता हो। भिखारी भीख मांग कर एक किलो आंटा खरीदता है तो उस आंटे पर भी टैक्स चुका रहा होता है। मजदूर अपनी मजदूरी से आयकर दे रहा होता है। शेष बचे धन की हर खरीददारी में अप्रत्यक्ष कर दे ही रहा होता है। किसान लाभ कमाता ही नहीं तो सीधे कर कैसे देता! वह तो अन्नदाता शब्द सुनकर ही अपने सभी गम भूल जाता है। आम आदमी का काम सरकार को तमाम प्रकार के कर देकर बजट बनाने में सहयोग करना है। आम आदमी क्या बजट बनाएगा! बजट बनाना तो बड़े लोगों का काम है। 

3 comments:


  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-01-2017) को "है सूरज भयभीत" (चर्चा अंक-2864) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बजट आने से पहले बजट के प्रति सकारात्मक उत्सुकता बढ़ाने के लिए रोचक बजट नामा..बाद में जो होगा देखे लेंगे..

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  3. आम आदमी के लिए ही होता है असली बजट, बाकी सब तो लांग-लपेटा है
    बहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति

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